पुस्तकें लिखकर परिवार पालते थे आचार्य चाणक्य!
punjabkesari.in Saturday, Mar 26, 2022 - 03:51 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक दिन आचार्य चाणक्य अपनी कुटिया में थे, तभी एक महात्मा वहां पधारे। शाम के भोजन का समय था अत: चाणक्य ने महात्मा से भोजन करने का आग्रह किया। महात्मा तैयार हो गए। भोजन परोसा गया। महात्मा ने देखा कि चाणक्य की कुटिया में बहुत ही साधारण भोजन बना है। महात्मा ने भोजन किया और हाथ धोने के बाद चाणक्य से पूछा, ‘‘आप इतने बड़े साम्राज्य के शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं, फिर यह सादा जीवन क्यों बिताते हैं?’’
चाणक्य ने कहा कि जनता की सेवा के लिए मैं प्रधानमंत्री बना हूं। इसका अर्थ यह नहीं कि राज्य की सम्पत्ति का अपने लिए उपयोग करूं। यह कुटिया भी मैंने अपने हाथों से बनाई है।
महात्मा ने फिर पूछा, ‘‘क्या आप अपनी आजीविका के लिए भी कुछ करते हैं?’’
चाणक्य ने उत्तर दिया, ‘‘हां, मैं परिवार पालने के लिए पुस्तकें लिखता हूं। मैं हर रोज आठ घंटे राज्य के लिए और चार घंटे परिवार के लिए काम करता हूं।’’
महात्मा समझ गए कि जिस राज्य का प्रधानमंत्री चाणक्य हो, वहां की जनता कभी दुखी नहीं रह सकती।
यहां जानें आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र के कुछ श्लोक-
‘ज्ञान’ आलसी को नहीं हो सकता
नास्त्यलसस्य शास्त्राधिगम:।
अर्थ : आलसी व्यक्ति कभी ज्ञान पाने का इच्छुक नहीं होता। ऐसे व्यक्ति से उसका परिवार भी दुखी रहता है और समाज के लिए भी ऐसे व्यक्ति बोझ होते हैं।
अधर्म की राह है ‘काम वासना’
न स्त्रैणस्य स्वर्गाप्तिर्धर्मकृत्यं च।
अर्थ : स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाले पुरुष को न स्वर्ग मिलता है, न धर्म-कर्म। जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों के वशीभूत होकर काम वासना में लिप्त रहता है और सदैव स्त्री को भोग्या ही बनाए रखता है ऐसा व्यक्ति न तो स्वॢगक सुख प्राप्त करता है और न ही उसका मन धर्म-कर्म में प्रवृत्त होता है।
बनाए रखें जल की शुद्धता
नाप्सु मूत्रं कुर्यात्।
अर्थ : जल में मूत्र त्याग न करें। जल स्नान करने, पीने व शरीर को स्वच्छ करने के लिए होता है। जल चाहे बहता हुआ ही क्यों न हो, उसमें मूत्र त्याग कभी नहीं करना चाहिए।
बच कर रहें जल के कीटाणुओं से
न नग्नो जलं प्रविशेत्।
अर्थ : नग्न होकर जल में प्रवेश न करें। जल में कितने ही ऐसे कीटाणु होते हैं जो नग्न शरीर के कोमल अंगों पर चिपक कर शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते हैं।