इस दिशा में करें रोकड़े का काम, होगी कारोबार में उन्नति

punjabkesari.in Saturday, Nov 05, 2016 - 12:26 PM (IST)

किसी भी औद्योगिक संस्थान के उत्तर-पूर्वी भाग में स्वागत कक्ष व जल के साधन प्रशस्त हैं। अग्रि कोण में अग्रि कर्म यथा जैनरेटर, बिजली के कंट्रोल पैनल, भट्टिठयां इत्यादि हों। इस भाग में यदि कार्यालय हो तो कर्मचारी अच्छा काम करेंगे, परन्तु उनमें अग्रि तत्व का प्रवेश होने लगेगा। इस स्थान पर नियुक्त कर्मचारियों का स्थान बदलते रहना चाहिए। अग्णि कोण में बैठने वाले स्टाफ को कुछ वर्ष बाद ईशान कोण में स्थानांतरित कर दें। दक्षिण मध्य से नैऋत्य कोण तक ऐसी मशीने जो बहुत भारी हों, उन्हें स्थापित किया जा सकता है। 


पश्चिम भाग में भी मशीनें या कर्मचारियों के बैठने की जगह बना सकते हैं। यह जगह सबसे उपयुक्त तैयार माल की पैकिंग के लिए मानी जाती है क्योंकि इसके बाद वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिमी कोने में तैयार माल को रखने से उनकी मार्कीटिंग के लिए श्रेष्ठ स्थान मिल जाता है। औद्योगिक भूखंड के उत्तरी भाग में रोकड़ा (कैश का कार्य) किया जाना उचित है। 


उत्तर-पूर्वी भाग में भारी निर्माण न कराके पानी का भूमिगत टैंक या पूजा स्थल अवश्य बनाएं। उपयुक्त वास्तु नियमों का पालन करके यदि किसी औद्योगिक संस्थान का निर्माण किया जाए तो उद्योग अच्छी उन्नति करता है। 

वृह्तसंहिता के अनुसार जो भूखंड पूर्व या उत्तर दिशा में ऊंचा हो, अर्थात वास्तु पुरुष के सिर पैर से ऊंचा हो तो धन क्षय होता है। दुर्गंधयुक्त भू-भाग हो या टेढ़ा प्लाट हो तो बंधुनाश करता है। यदि पूर्व में भू-भाग अधिक बढ़ा हुआ हो तो मित्रों के साथ शत्रुता, दक्षिण में बढ़ा हुआ हो तो धन-नाश तथा उत्तर की ओर बढ़ा हुआ हो तो चित्त में समताप होता है। पूर्व व उत्तर दिशा में बढ़ा हुआ भूखंड बुरे फल नहीं देता तथा ईशान कोण में बढ़ा हुआ भूखंड प्राय: शुभ फल देते पाए जाते हैं। ब्रह्मस्थान (प्लाट का करीब-करीब मध्य भाग) पर गंदी वस्तुओं व जूठन आदि डाली जाए तो स्वामी को क्लेश होता है। वास्तु पुरुष के अंग पूर्ण हो तो उस भूखंड के स्वामी को मान व धन मिलता है।
 


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