आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर, धारण करती है नवीन शरीर

punjabkesari.in Sunday, Jan 24, 2021 - 01:00 PM (IST)

श्लोक
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्वाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्य-न्यानि संयाति नवानि देही।।
PunjabKesari
अनुवाद एवं तात्पर्य : जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है।

अणु-आत्मा द्वारा शरीर-परिवर्तन एक स्वीकृत तथ्य है। आधुनिक वैज्ञानिक तक, जो आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, पर साथ ही हृदय से शक्ति साधन की व्याख्या भी नहीं कर पाते, उन परिवर्तनों को स्वीकार  करने को बाध्य हैं, जो बाल्यकाल से कौमारावस्था और फिर तरुणावस्था तथा वृद्धावस्था में होते रहते हैं। वृद्धावस्था से यही परिवर्तन दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाता है।
PunjabKesari
अणु आत्मा का दूसरे में स्थनांतरण परमात्मा की कृपा से संभव हो पाता है। परमात्मा अणु आत्मा की इच्छाओं की पूर्ति उसी तरह करते हैं जिस प्रकार एक मित्र दूसरे  की इच्छापूर्ति करता है। मुंडक तथा श्वेताश्वतर उपनिषदों में आत्मा तथा परमात्मा की उपमा दो मित्र पक्षियों से दी गई है जो एक ही वृक्ष पर बैठे हैं। इनमें से एक पक्षी (अणु आत्मा) वृक्ष के फल को खा रहा है और दूसरा पक्षी (कृष्ण) अपने मित्र को देख रहा है। यद्यपि दोनों पक्षी समान गुण वाले हैं परंतु इनमें से एक भौतिक वृक्ष के फलों पर मोहित हैं जबकि दूसरा अपने मित्र के कार्यकलापों का साक्षी मात्र है।
PunjabKesari
कृष्ण साक्षी पक्षी हैं और अर्जुन फल भोक्ता पक्षी। यद्यपि दोनों मित्र (सखा) हैं किन्तु फिर भी एक स्वामी है और दूसरा सेवक है। अणु आत्मा द्वारा इस संबंध की विस्मृति ही उसके एक वृक्ष से दूसरे पर जाने या एक शरीर से दूसरे में जाने का कारण है। जीव आत्मा प्राकृत शरीर रूपी वृक्ष पर अत्यधिक संघर्षशील है, किन्तु ज्यों ही वह दूसरे पक्षी को परम गुरु के रूप में स्वीकार करता है जिस प्रकार अर्जुन कृष्ण का उपदेश ग्रहण करने के लिए स्वेच्छा से उनकी शरण में जाता है-त्यों ही परतंत्र पक्षी तुरंत सारे शोकों से विमुक्त हो जाता है।    (क्रमश:)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News