मानो या न मानो: जन्म देने वाली माता से बढ़कर है गौ माता

punjabkesari.in Wednesday, Sep 11, 2019 - 12:13 PM (IST)

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गाय हमारी माता है, उसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवी-देवता तथा सभी तीर्थ निवास करते हैं। गाय के गोबर में श्री लक्ष्मी जी का तथा गौमूत्र में श्री गंगा जी का वास है। गौमाता सर्वदा वन्द्य तथा पूज्य है। इन सब मान्यताओं के बाद भी हमारे देश में गाय की स्थिति अत्यंत दयनीय है। पूरी दुनिया में गाय की सबसे बुरी दशा भारत देश में है, यह महान विडम्बना है। गाय के प्रति हमारा पूज्यभाव तो है, पर प्रियभाव नहीं है। गौपालन शास्त्रीय तरीके से नहीं है। यूरोप में जहां गाय का मांस खाया जाता है, गाय को पूजते नहीं, परंतु प्रिय मानकर वैज्ञानिक तरीके से उसकी पूरी देखभाल करते हैं। पूरे यूरोप में एक भी गाय लावारिस घूमती दिखाई नहीं देगी।

जन्म देने वाली माता तो कुछ वर्ष ही दूध पिलाती है, परन्तु गाय तो मानव को जीवनपर्यन्त बिना किसी धार्मिक भेदभाव के दूध पिलाती है। विश्व-स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मां के दूध के पश्चात गाय का दूध ही मानव के लिए सबसे उपयोगी है। जिस बच्चे की मां की मृत्य हो जाती है उसे गाय के दूध पर ही पाला जाता है, किसी अन्य के दूध पर नहीं।

गाय के गोबर से गोबर गैस और भूमि की आवश्यक खुराक खाद मिलती है। गोबर गैस से खाना पकाया जा सकता है, घर को गर्म रखा जा सकता है। विद्युत उत्पादित की जा सकती है। गोबर गैस को सिलैंडर में रिफिल करने में सफलता मिलने के पश्चात यह आज शक्ति का प्रमुख स्रोत बन गया है।

विश्व के 65 देशों को भारत गौमांस का निर्यात करता है, यह अत्यंत शर्मनाक बात है। जिस देश में गाय को मां माना जाता हो, जिस देश में गौचारण और गौपालन के लिए स्वयं परब्रह्म परमात्मा अवतार लेते हों, वह देश गौमांस निर्यात करे- इससे बढ़कर विडम्बना और क्या हो सकती है?

गाय के विभिन्न अंगों से विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं, जैसे सींग से आभूषण, कान के झुमके, गले का हार, कंघी, कोट के बटन, अग्रिशमन प्रोडक्ट आदि। उसकी चमड़ी से जूते, चप्पल, बैल्ट आदि बनाए जाते हैं। जिलेटिन एक बाई प्रोडक्ट है जिसका प्रयोग जेली और दूसरे खाद्य उत्पादों, कड़वी दवाओं की कोटिंग के लिए होता है।

इसकी हड्डी का उपयोग साबुन, टुथपेस्ट, बोन चायना के उत्पादों तथा शक्कर को सफेद बनाने में होता है। इसकी आंतों का उपयोग सर्जरी में सिलाई के लिए प्रयुक्त होने वाले धागे में किया जाता है। मांस को सिलने तथा आपस में जोडऩे में भी इसका प्रयोग होता है। बैडमिंटन और टैनिस के रैकेट, वॉयलिन के तार तथा अन्य संगीत यंत्रों में इसका प्रयोग होता है।

इसकी पूंछ के बाल से पेंट ब्रश और डस्टर बनते हैं। इसकी चर्बी से बिस्कुट पपड़ीदार और कुरकुरे बनते हैं। इसके रक्त से बनने वाले सीरम का प्रयोग हीमोग्लोबिन में ऑयरन टॉनिक तथा जानवरों के टीके बनाने में किया जाता है। इसकी ग्रंथी से इंसुलिन, ट्रिप्टेन, हेपेरिन बनता है।

मुगलकाल के अनेक कालखंडों में गौहत्या बंद थी। 1857 ई. में 2500 मुसलमानों ने एक विजार (सांड) की प्राणरक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। अंग्रेज शासकों ने मुसलमानों से विचार (सांड) की सवारी करने को कहा। मुसलमानों ने कहा कि विजार शंकर जी के बेटे हैं, हम विजार की सवारी नहीं करेंगे। इस पर अंग्रेजों ने बंदूक और तोप चलवाकर 2500 मुसलमानों को मरवा दिया था।

गौहत्या को धर्म भ्रष्ट अंग्रेजों ने प्रश्रय दिया। उन्होंने मुफ्त में चाय पिलाई। विलायती घी की पूड़ियां मुफ्त में बांटीं। अब चाय और विलायती घी के हम गुलाम हो गए। गौहत्या और गौमांस का प्रयोग भी उन्हीं की एक चाल है जबकि गाय इतनी उपयोगी है कि इसका दूध तो अमृत है ही, गौमूत्र और गोबर भी अद्भुत उपयोगी है। वर्तमान परीक्षणों से यह साबित हो गया है कि गाय के गोबर से लिपे घरों पर आणविक विकिरण का प्रभाव नहीं पड़ता।

एट्मी परीक्षण से जो विकिरण होता है उसे गाय का गोबर नष्ट कर देता है इसीलए आज सम्पूर्ण अमेरिका में गौशालाएं बन रही हैं। वहां आदमी गाय को नहीं पालता, बल्कि गाय आदमी को पालती है। सऊदी अरब के अलरियाज में 38 हजार गायों की गौशाला बनी है। इसके कर्मचारी भी हैं। यहां 5 हजार भारतीय देसी नस्ल की गायें हैं। गौवंश को मरने पर आदर के साथ दफन किया जाता है। गौमूत्र से शूगर, ब्लड प्रैशर, कैंसर, पेट के रोग, पीलिया, जिगर के रोग आदि ठीक हो जाते हैं। गाय के गोबर से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।  मांसाहार सभी पापों एवं रोगों का जनक है।  यहां तक कि गौमांस तो कोढ़ रोग उत्पन्न करता है। अत: गाय को मारकर नहीं बल्कि पालकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है।  


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Jyoti

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