नहाने से मिलता है आध्यात्म‍िक लाभ, जानें जबरदस्त फायदे

punjabkesari.in Friday, Dec 09, 2016 - 03:42 PM (IST)

स्नान यानि शरीर को शुद्ध करने की एक क्रिया, जिसके उपरांत व्यक्ति का तन रोगों से मुक्त रहता है और मन प्रफुल्लित होता है। नहाने के उपरांत चेहरे पर चमक आती है और शरीर पर गजब का विकर्षण सुंदरता में चार चांद लगाता है। प्रतिदिन किए जाने वाले इस कर्म पर थोड़ा ध्यान केंद्रित करेंगे तो आध्यात्म‍िक फायदे देखेंगे


स्नान किए बिना जो पुण्यकर्म किया जाता है वह निष्फल हो जाता है। उसे राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। (न हि स्नानं पुंसां प्राशस्त्यं कर्मसु स्मृतम्...लघुव्याससंहिता1/7)


तेल लगाने के बाद, श्मशान से लौटने के बाद, स्त्री संग करने पर और क्षौरकर्म (दाढ़ी बनवाने के बाद) जब तक मनुष्य स्नान नहीं करता तब तक वह अशुद्ध बना
रहता है। (तैलाभ्यंगे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि...चाणक्य नीति 8/6)


यदि नदी हो तो जिस ओर से उसकी धार आती हो, उसी ओर मुंह करके तथा दूसरे जलाशयों में सूर्य की ओर मुंह करके स्नान करना चाहिए।  (स्रवन्ती चेत् प्रतिस्रोते प्रत्यर्कं...महाभारत, आश्व 92)


कुएं से निकाले हुए जल की अपेक्षा झरने का जल पवित्र होता है। उससे पवित्र सरोवर का जल तथा उससे भी पवित्र नदी का जल होता है। तीर्थ का जल उससे भी पवित्र तथा गंगा जल सबसे पवित्र माना गया है। (भूमिष्ठादुद्धृतं पुण्यं तत:...गरुड़ पुराण, आचार, 205/113)


बिना शरीर की थकावट दूर किए और बिना मुख धोए स्नान नहीं करना चाहिए (नावितक्लमो नानाप्लतवदनो...चरक संहिता सूत्र. 9/19)


जो दोनों पक्षों की एकादशी को आंवले से स्नान करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। वह विष्णुलोक में सम्मानित होता है। (एकादश्यां पक्षयुगे...पद्यपुराण, सृष्टि 13/10-11)


स्नान के समय पहने हुए भीगे वस्त्र से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए ऐसा करनेे से शरीर कुत्ते से चाटे हुए के समान अशुद्ध हो जाता है जो पुन: स्नान करने से शुद्ध होता है। (स्नानवस्नेण य:  कयद्दिेहस्य...वाधूलस्मृति 71)


बिना स्नान किए कभी भी चंदन नहीं लगाना चाहिए। (नानुलेपनमादद्यान्नास्नात:...मार्कंडेयपुराण 34/43)


रविवार, श्राद्ध, संक्रांति, ग्रहण, महादान, तीर्थ, व्रत-उपवास, अमावस्या व षष्ठी तिथि को गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। (रविसंक्रांतिवारेषु...ब-हत्पराशर स्मृति 2/112)


नग्न होकर कभी स्नान नहीं करना चाहिए। (न नग्न: स्नातुमर्हति...महाभारत, अनु, 104/67)


 


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