घर के अंदर अशुभ ग्रहों के प्रवेश पर रोक लगाता है भवन का मुख्य द्वार

punjabkesari.in Sunday, Jun 07, 2015 - 10:05 AM (IST)

अन्य दरवाजों की तुलना में मुख्य द्वार काफी महत्वपूर्ण होता है। इसे वैसे तो लोग अपनी सुविधा के अनुसार बनवाते हैं लेकिन वास्तु के नियमानुसार भूखंड की दिशा के अनुसार इसे कहां बनाना चाहिए यह जान लेना उपयोगी होगा।

* यदि भूखंड पूर्वमुखी हो तो पूर्वी भुजा के मध्य में ईशान कोण तक का भाग उच्च कोटि का माना जाता है। इसमें कहीं भी मुख्य द्वार रखा जा सकता है।

* दक्षिणमुखी भूखंड की भुजा के मध्य बिंदू से आग्रेय कोण तक का भाग मुख्य द्वार के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

* पश्चिममुखी भूखंड की पश्चिमी भुजा के मध्य से वायव्य कोण तक का भाग मुख्यद्वार के लिए उच्च कोटि का माना गया है। साथ ही मध्य भाग में नैऋत्य कोण के बीच भी मुख्य द्वार बना सकते हैं।

* उत्तरमुखी भूखंड की उत्तरी भुजा के मध्य से ईशान तक का भाग मुख्य द्वार के लिए उत्तम माना गया है।

* वास्तु के अनुसार मुख्यद्वार के लिए उत्तरी ईशान, पूर्वी ईशान, दक्षिणी आग्नेय एवं पश्चिमी वायव्य कोण अधिक शुभ माने जाते हैं।

* वास्तु-शास्त्रीय सिद्धांतों का अक्षरश: पालन संभव नहीं है इसलिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएं।

* यदि मुख्य द्वार पश्चिम में हो तो पूर्वी दिशा में भी एक द्वार बनाया जा सकता है।

* यदि मुख्य द्वार दक्षिण में हो तो उत्तर दिशा में एक द्वार बना लें। इससे घर वालों की गति पूर्वोन्मुखी अथवा उत्तरमुखी रहेगी जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है।

* भवन में चारों ओर द्वार बनाए जा सकते हैं किंतु ध्यान रहे कि द्वार शुभ स्थान पर
ही हों।

* जहां तक संभव हो, कमरे का दरवाजा दीवार के मध्य न बनाएं अन्यथा कमरे का सही-सही उपयोग नहीं हो सकेगा।

* मुख्य द्वार दो पल्लड़क (डबल डोर) वाला कलात्मक लगवाना अच्छा रहता है।

* मुख्य द्वार अन्य दरवाजों से थोड़ा बड़ा हो। चौड़ाई साढ़े तीन या चार फुट रखी जा सकती है।

* प्रवेश द्वार का किवाड़ अंदर की ओर खुले।

* दरवाजा स्वत: खुलने व बंद होने वाला नहीं हो।

* मुख्य द्वार पर बाहर की ओर गणेश जी की मूर्त लगाएं एवं अंदर की तरफ गणेश का चित्र या मूर्त अवश्य लगाएं, जिसका मुंह अंदर की तरफ हो।

* घर में कुल दरवाजों की संख्या सम होनी चाहिए।

* भवन के मुख्य द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक का चिन्ह बना देने से घर के अंदर अशुभ ग्रहों तथा अशुभ कारक तत्वों का प्रवेश नहीं हो पाता। स्वस्तिक का निर्माण किसी योग्य पुरोहित द्वारा ही कराना चाहिए।


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