तंत्र, मंत्र, यंत्र की शक्तियों में छुपे रहस्यों को जानें

punjabkesari.in Friday, Jun 05, 2015 - 08:35 AM (IST)

मानव शरीर को संचरित रखने वाली दो मुख्य वस्तुएं हैं तन एवं प्राण। पांच तत्वों अग्रि, पृथ्वी, वायु, जल एवं आकाश के सामूहिक निश्चित अनुपात से बना यह पंच भौतिक शरीर-प्राण वायु से संचरित होने के कारण क्रियाशील रहता है अथवा निष्क्रिय होने पर मृत घोषित कर दिया जाता है। जब किसी कारणवश इन तत्वों के अनुपात में गड़बड़ आ जाए तो यह अस्वस्थ अथवा रोगी हो जाता है।

इस पंच भौतिक शरीर को निरोग हृष्ट-पुष्ट एवं सक्रिय रखने के लिए हम जो भी उपयोग अथवा सेवन करते हैं उसी से शरीर के अवयव सुचारू रूप से क्रियाशील रहते हैं तथा प्राण वायु द्वारा हमारे शरीर में प्राण सुचारू रूप से संचरित रहते हैं।

तंत्र के तीन भाग हैं- तंत्र, मंत्र, यंत्र।
तंत्र जिससे शरीर में प्राणों का सुचारू रूप से संचार होता रहे। इस पंच भौतिक शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिस भी खाद्य पदार्थ का हम सेवन करते हैं चाहे वह जल अथवा खाद्य सामग्री हो, किन्हीं कारणों से यदि हम अस्वस्थ हो जाते हैं और उपचार के लिए किसी वैद्य-डाक्टर से उपचार कराते हैं, किसी भी कारणवश यदि चिकित्सक के उपचार से आपके शरीर की व्याधि-पीड़ा में कोई अंतर नहीं आता और आप स्वस्थ नहीं होते तो आप किसी तांत्रिक की शरण लेते हैं।

यदि वह सिद्ध नि:स्वार्थ तांत्रिक है तो वह अपनी सात्विक साधना से अर्जित शक्ति द्वारा आपको तीन उपायों से स्वस्थ कर सकता है। ये हैं दृष्टि, स्पर्श व इच्छाशक्ति। दृष्टि-वह आपकी दृष्टि से अपनी दृष्टि मिलाकर अपनी धनात्मक मानसिक तरंगों से आप को निरोग कर सकता है। वह आप में इच्छाशक्ति भर कर हीन भावना मिटा सकता है। आप को अपने रोग की पीड़ा को सहने के लिए सहनशक्तिप्रदान करके निरुत्साही को उत्साही बना सकता है। आपको कोई भी विभिन्न मंत्रों द्वारा अर्जित अपनी साधना शक्ति से अभिमंत्रित खाद्य पदार्थ जल, इलायची, मिश्री, लौंग इत्यादि अथवा देव शक्ति की आराधना से प्राप्त आशीर्वाद रूपी शक्ति से अभिमंत्रित वस्तु सेवन कराता है जिसके परिणामस्वरूप आपको उस खाद्य पदार्थ से नहीं अपितु उसमें निहित मंत्र शक्ति की तरंगों के प्रभाव से लाभ होता है।

इसके विपरीत यदि कोई ढोंगी अथवा तामसिक विद्या से अर्जित शक्ति प्राप्ति वाला तांत्रिक हो तो वह इन्हीं ढंगों से आप पर सम्मोहन-वशीकरण का प्रयोग करके स्वयं तो नरक का रास्ता चुनता ही है आपको भी स्वयं लज्जित होने के लिए छोड़ देता है, ऐसे ढोंगी तांत्रिकों से बचना चाहिए। तंत्र मानव कल्याण, जन कल्याण हेतु हमारे ऋषियों, मनीषियों से अति घोर उपासना-अनुष्ठानों से अनुसंधान करके हम कलिकाल में जीवों के कल्याण हेतु प्रेषित किए हैं।

तंत्र क्रियाओं में दूसरी विधि है स्पर्श। सात्विक तंत्र विशेषज्ञ अपनी साधना के बल पर विशेष आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर लेता है जिससे उसके शरीर में विद्युत की तरंगों के समान, तरंगें संचरित रहती हैं। जिस तरह एक लोहे के टुकड़े को चुम्बक (मैगनेट) अपनी तरंगों द्वारा अपनी ओर आकर्षित कर लेता है अथवा उसी लोहे के टुकड़े पर यदि बार-बार मैगनेट (चुम्बक) को रगड़ा जाए तो उसमें आकर्षण शक्ति का समावेश हो जाता है और वह लोहे का टुकड़ा भी मैगनेट (चुम्बक) बन जाता है, ऐसे ही जब एक कुशल नि:स्वार्थ तांत्रिक किसी भी रोगी चाहे वह मानसिक रोग अथवा जो अपने आपको ओपरी कसर जिसे अंग्रेजी में बायोसाइकलोजिकल रोगी भी कहते हैं, उनको अपनी इस मंत्र शक्ति द्वारा स्वास्थ्य लाभ करा देता है। यहां तक कि ऐसे रोगी में अगर कोई पर काया भी प्रवेश की हो जो उसे रात-दिन अपने वश में रखती है, ऐसे रोगी को मुक्ति दिला सकता है। ऐसे तांत्रिकों ने यह सिद्धि, भैरव साधना एवं शक्ति साधना आदि द्वारा घोर-जटिल साधना तपस्या से अर्जित की होती है। इसके विपरीत यही साधनाएं यदि कोई अघोरी अथवा तांत्रिक तामसिक साधनाओं द्वारा शक्तियां अर्जित करके उनका उपयोग जनहित कल्याण की बजाय अथवा निजी स्वार्थ हेतु करता है, तो उसके जीवन का अंत अति दुखद होता है। उसके शारीरिक अंग भंग होते हैं, वह मृत्यु को प्राप्त करने के लिए कराहता है मगर उसके द्वारा प्राप्त शक्तियां ही उसे घोर यातनाएं देती हैं। ऐसे तांत्रिक, मारण-मोहन उच्चारण जैसे दुष्कर्मों के लिए जीवन भर अपनी शक्तियों और ऊर्जा का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे तांत्रिकों से दूसरों का बुरा कराने वालों का भी अंजाम बुरा होता है।

इच्छा शक्ति शक्ति साधना एवं तंत्र की पराकष्ठा है, तंत्रशास्त्र में जहां एक साधक सात्विक विधि से देवी-देवता, चिरंजीवियों की, सौम्य शक्तियां देवियों की, हनुमान जी की घोर उपासना से शक्ति प्राप्त करता है-किसी को देखते ही उसके भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बतलाता है, सात्विक उपाय अथवा आशीर्वाद अथवा कृपामय वचनों से शरण आए का उद्धार कर देता है।

ऐसे तांत्रिक सिद्ध संत महात्मा पूर्णत: नि:स्वार्थी सांसारिक भोगों से दूर सदा ईश्वरी उपासना में मस्त रहते हुए दूर-दराज के जंगलों-गुफाओं में निवास करते हैं, शांतचित्त रह सांसारिक जीवों को ईश्वरीय उपासना की प्रेरणा देते उनका इस जीवन में उद्धार एवं मरणोपरांत भी देव लोक गमन का मार्ग प्रशस्त करा देते हैं। आजकल ऐसे विरले औघड़, संत, तांत्रिक बहुत कम उपलब्ध हैं।

    —ज्योतिष मर्मज्ञ भगतराम हांडा


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