क्यों करना पड़ा भगवान शिव को अपने ही भक्त अर्जुन से युद्ध
punjabkesari.in Monday, Apr 20, 2015 - 07:48 AM (IST)

महाभारत पर्व में यह प्रसंग तब का है जब अर्जुन अपने पांडव भाइयों के साथ वनवास भोग रहे थे। एक दिन पांडु पुत्र अर्जुन हिमालय पर्वतमाला पर बसे "इन्द्रकील" स्थल पर पहुंचे। वहां पहुंचकर अर्जुन ने शिवलिंग के समक्ष घोर तप करना शुरू किया जिससे दिशाएं धूमिल होने लगीं और उनके शरीर से तेज़ निकलकर वातावरण को गर्म करने लगा। तब भगवान शंकर ने अर्जुन की परीक्षा लेने हेतु किरात रुपी भील का रूप धारण कर इन्द्रकील पहुंचे। इन्द्रकील पर "मूकासुर दैत्य" विकराल शूकर के रूप मे ऋषिमुनियों मे उत्पात मचाया करता था। शिव के इन्द्रकील पर पहुंचते ही शूकर ने इन्द्रकील पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जिससे ऋषिमुनियों मे हडकंप मच गया जिससे अर्जुन का ध्यान भंग हो गया।
जिस पर किरात भेषधारी शिव और अर्जुन दोनों ने शूकर पर बाण चला दिए। शूकर के शरीर में एक साथ दो तीर आ घुसे। एक किरात भेषधारी शिव का और दूसरा अर्जुन का। दो-दो तीर खाकर शूकर भेषधारी मूकासुर ढेर हो गया। जमीन पर गिरते ही उसका असली रूप प्रकट हो गया। शूकर का वद्ध किसने किया इस विषय पर अर्जुन और किरात भील के रूप मे भगवान शिव मे युद्ध छिड़ गया। लेकिन कुछ ही देर बाद अर्जुन का तूणीर बाणों से खाली हो गया था। अर्जुन के बाणों को किरात ने काट डाला था तथा किरात को खरोंच तक नहीं लगी थी। अर्जुन ने तलवार से किरात के सिर पर हमला किया जिससे अर्जुन की तलवार टूट गई । निहत्थे अर्जुन ने पेड़ उखाड़ कर किरात पर फैंका। परंतु किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ तिनके की भांति टूटकर गिरा गया।
तब अर्जुन निहत्थे ही किरात पर टूट पड़ा। किंतु किरात ने अर्जुन को उठाकर जमीन पर फैंक दिया। जिससे अर्जुन बेसुध होकर गिर पड़े और मूर्छित हो गए। होश आने पर अर्जुन ने वहीं रेत का शिवलिंग बनाकर शिव-पूजन प्रारम्भ किया। जिससे अर्जुन के शरीर में नई शक्ति आ गई तथा अर्जुन ने उठकर फिर से किरात को ललकारा, परंतु जैसे ही अर्जुन की नजर किरात के गले में पड़ी फूलमाला पर पड़ी, वह स्तब्ध होकर खड़े-के-खड़े रह गए, क्योंकि यही फूलमाला तो अर्जुन ने शिवलिंग पर चढाई थी। यह देखकर अर्जुन समझ गए कि भील के रूप में कोई और नहीं स्वयं भगवान भोलेनाथ हैं। अर्जुन किरात के चरणों में गिर पड़े, और अपने अश्रुओं से शिव के चरण धोकर उनसे क्षमा मांगी। तब शिव अपने असली रूप में प्रकट हुए। अर्जुन ने वहीं शिव पूजन करके उन्हें प्रसन्न किया तथा बाबा भोले भंडारी ने अर्जुन को उसकी भक्ति और साहस से प्रसन्न होकर अभेद पाशुपत अस्त्र प्रदान किया।
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com