भगवान विष्णु के छठे अवतार ने किया था अपनी माता का वध

punjabkesari.in Thursday, Jan 29, 2015 - 08:16 AM (IST)

शास्त्रानुसार परशुरामजी भगवान विष्णु के छठे अवतार कहलाए गए हैं। परशुरामजी के पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। पुरानों में परशुरामजी के चार बड़े भाईयों का उल्लेख आता है। पुराणोक्त परशुरामजी कि माता रेणुका एक दिन हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई तथा गंगा तट पर रेणुकाजी में गन्धर्व राज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करते देखा जिससे रेणुका दृश्य से आसक्त हो गई और कुछ देर तक वहीं रुक गई। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी रेणुका के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दे दी परंतु माता से मोहवश किसी भी पुत्र ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई। अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान मांगे।

1. माता रेणुका पुनर्जीवित हो जाएं।

2. माता रेणुका का वध करने कि स्मृति न रहे।

3. भाई चेतना-युक्त हो जाएं।

पिता जमदग्नि ने परशुरामजी को तीनों वरदान दे दिए। माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया। 

राजस्थान के चितौड़ जिले में स्तिथ मातृ कुण्डिया वह जगह है जहां परशुराम जी अपनी मां की हत्या (वध) के पाप से मुक्त हुए थे। यहां पर विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था।

शिव वरदान अनुसार मातृकुण्डिया के जल में स्नान करने से उनका पाप धूल गया था। यह स्थान महर्षि जमदगनी की तपोभूमि से लगभग 80 किलो मीटर दूर हैं। मातृकुण्डिया से कुछ मील की दुरी पर ही परशुराम महदेव मंदिर स्थित है इसका निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयं भू शिवलिंग है। पूरी गुफा एक ही चट्टान में बनी हुई है। ऊपर का स्वरूप गाय के थन जैसा है। प्राकृतिक स्वयं-भू लिंग के ठीक ऊपर गोमुख बना है, जिससे शिवलिंग पर अविरल प्राकृतिक जलाभिषेक हो रहा है।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 


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