Anmol vichar: आज से शुरु करें ये काम, रामराज्य आने में देर नहीं लगेगी
punjabkesari.in Thursday, Nov 30, 2023 - 08:39 AM (IST)
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Best Life Anmol Vachan: विश्वभर में अधिकांश लोगों के अंदर दूसरों के दोष देखने व ढूंढने की बड़ी बुरी आदत होती है। इसी कारण आज समस्त विश्व में जैसे नकारात्मकता का राज हो गया है क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी भी बात में या किसी में कुछ अच्छा देखता ही नहीं, बस देखता है तो केवल सामने वाले के दोष व नैगेटिव चीजें। परंतु हममें से कितने लोग ऐसे होंगे कि जिन्हें दूसरों के दोष देखने के साथ-साथ खुद के दोष भी दिखते हैं ? शायद बहुत कम ! भला ऐसा क्यों ?
जिस प्रकार दूसरों के दोष हमें अप्रिय लगते हैं, उसी प्रकार हममें भी तो अनेक दोष होंगे जो दूसरों को अप्रिय लगते होंगे। तो क्यों न, हम दूसरों के दोषों को देखते हुए थोड़ी स्वयं की भी जांच कर लें और उन दुर्गुणों को अपने अंदर से भी निकालें ! हो सकता है कि जो दोष हमें सामने वाले में दिखते हैं, वे हमारे अंदर न भी हों, तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे अंदर कोई भी दोष नहीं है ?
नहीं ! दुनिया में हर किसी में ज्यादा नहीं तो कम, प्रत्यक्ष नहीं तो गुप्त, कोई न कोई दोष तो अवश्य होता ही है और इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि वह दूसरों के दोष देखने की बजाय अपने दोषों को ढूंढ कर निकाल दे। हमारे ऋषि-मुनियों के मतानुसार ‘दोषी का दोष देख कर उससे घृणा करना शुभ-चिन्तन नहीं कहलाता।’ यदि किसी मनुष्य को कांटा लगा हुआ हो तो हमें उससे घृणा करनी चाहिए या उस पर दया रखनी चाहिए ?
सर्वशक्तिमान परमात्मा हम सभी मनुष्यों के ऊपर सदैव दया की दृष्टि रखते हुए हमारे अनेक जन्मों की भूलें व पाप को माफ करते हैं, तो फिर हमें क्या अधिकार है कि हम किसी से घृणा करें और यदि हम फिर भी इस तरह का व्यवहार करते हैं तो यह हमारे निर्दयी स्वभाव को ही प्रकट करता है।
स्मरण रहे ! किसी के दोष निकाल कर उससे घृणा करना अथवा सारा समय दोषों की ही दृष्टि अथवा स्मृति में रहना स्वयं एक दोष है इसलिए बेहतर यह होगा कि हम पहले स्वयं अपने में से दोष निकालें, उसके बाद दूसरों को भी उनके दोषों को निकालने में मदद करें।
दोषों से मनुष्य दुष्ट बनता है और निर्दोषता से इष्ट। दुष्ट सबको अप्रिय और इष्ट सबको प्यारा लगता है इसीलिए हम सभी अपने-अपने इष्ट देवताओं को बड़े दिल से मानते भी हैं और उनकी पूजा-अर्चना भी करते हैं क्योंकि वे सम्पूर्ण निर्दोष और पवित्र हैं। गुरुओं एवं महात्माओं का वंदन भी इसीलिए होता है क्योंकि उनमें दोष कम हैं।
वर्तमान समय में एक ‘दोष’ ऐसा है जो सामान्यत: सभी के अंदर है और उसके कारण ही अन्य सभी दोष भी विराजमान हैं। वह दोष है ‘सर्व शक्तिमान परमात्मा की विस्मृति’। जी हां ! मनुष्य आज परमात्मा को ही भूल गया है और उसी भूल के कारण आज वह अनेक प्रकार के अकर्तव्य करता रहता है। अत: यह विस्मृति ही एक ऐसा दोष है जिससे संसार में दोष और द्वेष फैला है।
अब इस दोष से कौन बचा है ? अत: विचारवान मनुष्य को चाहिए कि यह दोष निकालने का पुरुषार्थ करे, अन्यथा चारों ओर दुष्टता का साम्राज्य बन जाएगा।
जब समस्त सृष्टि के मनुष्य दोष-रहित दृष्टि से देखने वाले अर्थात निर्दोष बन जाएंगे, तब सारी सृष्टि ही निर्दोष बन जाएगी अर्थात राम-राज्य (सतयुग) आ जाएगा।