Ahoi Ashtami katha: संतान की सलामती के लिए पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत कथा
punjabkesari.in Thursday, Oct 24, 2024 - 06:43 AM (IST)
Ahoi Ashtami Vrat Katha: पुराने जमाने में भारत के दतिया नाम के नगर में चंद्र भान नामक एक सेठ रहता था। उसकी बहुत गुणवत्ती, सुंदर, चरित्रवान तथा पवित्र पत्नी का नाम चन्द्रिका था। उसके कई संतानें हुईं मगर वे छोटी आयु में ही स्वर्ग सिधार जातीं। इस कारण पति-पत्नी बहुत दुखी थे। एक दिन वे दोनों जंगलों में निवास करने का निर्णय करके सब कुछ छोड़ कर जंगल की ओर चल पड़े। चलते-चलते पति-पत्नी बद्रिका आश्रम के पास शीतल कुंड के किनारे पहुंचे और वहां मरने का मन बनाकर अन्न-जल त्याग कर बैठ गए। इसी तरह बैठे सात दिन बीत गए तो आकाशवाणी हुई कि तुम अपने प्राण नहीं त्यागो-यह दुख तुम्हें पिछले जन्म के पाप कर्मों से मिला है और कहा कि ए सेठ, अब तू अपनी पत्नी से आने वाले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को व्रत करवाना जिसके प्रभाव से अहोई नाम की देवी प्रकट हो कर तुम्हारे पास आएंगी। तुम उससे अपने पुत्रों की दीर्घायु मांगना और व्रत के दिन रात को राधा कुंड में स्नान करना।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि आने पर चंद्रिका ने बड़ी श्रद्धा से अहोई देवी का व्रत धारण किया तथा रात को सेठ ने राधा कुंड में जाकर स्नान किया। जब सेठ स्नान करके वापस आ रहा था तो रास्ते में अहोई देवी ने दर्शन देकर कहा कि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं। कुछ भी वर मांगो।
सेठ अहोई देवी के दर्शन करके अति प्रसन्न हुआ और कहा कि मां मेरे बच्चे छोटी आयु में ही स्वर्ग सिधार जाते हैं इसलिए उनकी दीर्घायु के लिए वर दीजिए। अहोई देवी ने कहा कि ऐसा ही होगा। यह वर देकर अहोई देवी अंर्तध्यान हो गई। कुछ दिन के बाद सेठ के घर पुत्र पैदा हुआ और बड़ा होकर विद्वान, शक्तिशाली तथा प्रतापी हुआ।
इस महिमा के कारण ही अहोई माता के व्रत का प्रभाव बना। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि थी इसलिए सभी माताएं इस दिन अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं तथा विधि अनुसार पूजा-आराधना करती हैं तथा अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना करती हैं।