2030 का भारत: सूरज से चलने वाला आत्मनिर्भर राष्ट्र!
punjabkesari.in Wednesday, May 21, 2025 - 03:18 PM (IST)

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए एक ऐसा भारत जहां हर घर, हर फैक्ट्री और हर उपकरण कोयले या गैस से नहीं, बल्कि सीधे सूरज की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त कर रहा हो। ना कोई नया थर्मल पावर प्लांट, ना ही गैस पाइपलाइन- सिर्फ सौर ऊर्जा, समुद्री हवाएं और अत्याधुनिक बैटरियां। यह कोई दूर का सपना नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भर ऊर्जा यात्रा की एक ठोस और व्यावहारिक रूपरेखा है।
सौर ऊर्जा की धीमी शुरुआत: चुनौतियां क्या हैं?
सौर पैनलों की कीमतें भले ही गिर गई हों लेकिन उन्हें अपनाना केवल पैनल लगाने तक सीमित नहीं है। इसमें इनवर्टर, वायरिंग, बैटरी, परमिट और तकनीकी अनुपालन जैसे पहलुओं को शामिल करना होता है। ग्रामीण भारत में जहां अब भी कोयले पर सब्सिडी मिलती है, वहां सौर ऊर्जा की ओर बढ़ना महंगा और जटिल लगता है।
समाधान: 'सोलर फॉर ऑल' मॉडल की जरूरत
सरकार और वित्तीय संस्थानों को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें सौर ऊर्जा को मोबाइल सिम की तरह सुलभ और आसान बना दिया जाए- कम कीमत, तेज इंस्टॉलेशन और अधिकतम सरकारी समर्थन के साथ।
बैटरियों का बढ़ता महत्व
दिन में सूरज चमकता है, लेकिन रात की बिजली के लिए हमें ऊर्जा को स्टोर करना होता है। इसके लिए Battery Energy Storage Systems (BESS) बेहद अहम हैं। ये सिर्फ बड़े शहरों को ऊर्जा देने की क्षमता रखते हैं, बल्कि अब इनसे बनी बिजली की लागत नए कोयला संयंत्रों की तुलना में आधी है। ऐसे में बैटरियों के निर्माण और पुनर्चक्रण में निवेश अब समय की मांग बन गया है।
भौगोलिक विविधता और ISTS की भूमिका
भारत की विविध जलवायु के बावजूद, 'इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम' (ISTS) एक राज्य से दूसरे राज्य तक बिजली पहुंचाने की व्यवस्था को सशक्त बना रहा है। इससे "वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड" जैसी वैश्विक अवधारणा भी साकार हो सकती है।
जमीन की चुनौती और नवाचार
बड़े सोलर प्लांट्स के लिए ज़मीन चाहिए, लेकिन खेती, वन और आबादी को हटा पाना संभव नहीं। इसका हल है:
- थार रेगिस्तान का उपयोग
- जलाशयों पर तैरते सोलर पैनल
- नहरों के ऊपर सौर संयंत्र
- एग्रीवोल्टाइक मॉडल- जहां पैनल के नीचे भी खेती संभव है
स्मार्ट ग्रिड की ज़रूरत
भारत की मौजूदा ग्रिड प्रणाली कोयले के लिए डिज़ाइन की गई है, जो धीमी और एकतरफा है। सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए स्मार्ट मीटरिंग, AI आधारित एनर्जी मैनेजमेंट और दो-तरफा डिजिटल ग्रिड की जरूरत है।
मानसिकता में बदलाव: आखिरी मोर्चा
लोग अब भी पूछते हैं- "क्या सोलर से फैक्ट्रियां चलेंगी?" या "रिन्यूएबल से नौकरियां जाएंगी?"
सच ये है कि मेट्रो, स्टील प्लांट और डेटा सेंटर्स पहले ही सौर ऊर्जा से चल रहे हैं। इसके अलावा, प्रति मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन में कोयले से ज़्यादा रोजगार उत्पन्न होते हैं। मिथकों को तोड़ने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान की जरूरत है।
निष्कर्ष: सूरज तैयार है, क्या हम हैं?
भारत के पास न केवल संसाधन हैं, बल्कि स्पष्ट दृष्टि भी है। नीति, तकनीक, निवेश और सोच- इन चार स्तंभों के सहारे भारत सौर ऊर्जा महाशक्ति बन सकता है। भारत को किसी बाहरी चमत्कार की जरूरत नहीं है, क्योंकि सबसे बड़ा चमत्कार—सूरज—हर दिन हमारे सिर पर चमक रहा है।