गंदे पानी को ड्रेनेज कर खेती करना जरूरी- संत सीचेवाल
punjabkesari.in Friday, Feb 08, 2019 - 07:48 PM (IST)

चंडीगढ़ (रश्मि हंस): साफपानी को पीने के लिए रखा जाए और गंदे पानी को साफ करने के लिए खेती की जाए तो इससे पानी की कमी ही न हो। अभी साफ पानी से खेती हो रही है और वैस्ट पानी और गंदा हो रहा है। इससे साफ पानी की कमी हो रही है।
आम लोगों तक गंदा जहरीला पानी पहुंच रहा है। यदि गंदे पानी को ड्रेनेज कर खेती के लिए प्रयोग किया जाए तो साफ पानी बचेगा। यह कहना है पद्मश्री अवॉर्डी संत बलवबीर सिंह सीचेवाल का।
वह पंजाब यूनिवर्सिटी में हरियणा सरस्वती हैरीटेज डिवैलपमैंट बोर्ड के सहयोग से पी.यू. में आयोजित तीसरी इंटरनैशनल कॉन्फ्रैंस में लेने के लिए आए थे। यह कॉन्फ्रैंस एग्रीकल्चर प्रैक्टिस एंड ऑर्किलॉजिकल एवीडैंस एंड एक्सप्लोरेशन विषय पर थी। इसका मकसद सरस्वती नदी को वापस धरती पर लाना है।
जहरीला हो रहा लगातर पानी, खेत व मिट्टी
संत सीचेवाल ने बताया कि वह पंजाब केकई गांवों में पानी पर काम कर रहे हैं। धरती पर पानी की कमी नहीं है। लेकिन धरती का पानी जहरीला हो रहा है। बल्कि हमारी मिट्टी और खेती भी जहरीली होती जा रही है।
हम सभी लोग अपना सोच रहे हैं। आने वाली पीढिय़ों के बारे में कोई सोच नहीं रहा है। हमें जल, धरती और हवा को दूषित होने से बचाना होगा। कस्बों-शहरों से निकलने वाले कूड़े-कचरे का उचित प्रबंधन करना होगा।
सरस्वती के राजस्थान, गुजरात जाने के लिए सबूत
रिसर्च एडवायजरी बोर्ड फॉर इंडियन रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर इंटीग्रेटिड मैडीसंस के चेयरमैन प्रो. रामगोपाल ने कहा कि इसरो और डी.आर.डी.ओ. की पहल से सरस्वती के हरियाणा से होते हुए राजस्थान के थार मरुस्थल और गुजरात जाने के सबूत मिले हैं।
सरस्वती हमारे लिए न केवल पवित्र थी, बल्कि एक वृहद नदी भी थी। जो आज से हजारों साल पहले इस धरा पर बहती थी। उन्होंने आई.एस.आर.ओ. और डी.आर.डी.ओ.की ओर से राजस्थान मेंं सरस्वती के पालियों चैनल और वाटर रिर्सोसिज मैनेजमैंट की सैटेलाइट टैक्नोलॉजी पर प्रकाश डाला।
सरस्वती हड़प्पा काल की नदी है
एच.एस.एच.डी.बी. के सी.ई.ओ. के अजीत बालाजी जोशी ने सरस्वती प्रोजैक्ट पर चर्चा की। हरियाणा सरकार अदी-बादरी नाम जगह पर तीन बांध बनाने की योजना पर काम कर रही है। प्रो. बलराम सिंह ने कहा कि उद्गम स्थल आदिबद्री से सरस्वती को धरा पर लाने के प्रयास हो रहे हैं।
यह नदी हड़प्पा काल की नदी है। इसका हमारे जीवन में ही नहीं, बल्कि सभ्यता में भी बड़ा महत्व है। राखीगढ़ी में हड़प्पा संस्कृति के कई अवशेष मिले हैं। जिनसे पता चलता है कि ये हमारी लोकचेतना, लोकमानस और लोक साहित्य का किस तरह से अभिन्न हिस्सा बन गई थी।
वेदों में सरस्वती का बार-बार जिक्र आता है। भारत विश्वगुरु ऐसे ही नहीं बना, हजारों साल पहले नियोजित ढंग से बस्तियां बसी थीं। जो लोग कहते हैं कि सरस्वती कभी थी ही नहीं, वे तो फिर वेदों को भी नहीं मानेंगे। क्योंकि ये तो सरस्वती के किनारे ही रचे गए थे।
वाइस चांसलर प्रो. राज कुमार ने कहा कि सरस्वती त्रिवेणी का हिस्सा है, जिनका प्रयागराज में संगम होता है। सरस्वती का हमारी सभ्यता और संस्कृति में खास स्थान है। इसलिए हमारा प्रथम कर्तव्य बनता है कि हम इसे फिर से पुनरुजीवित करें।