अधूरी दास्तां : उद्घाटन पूरे, काम अधूरे

punjabkesari.in Monday, Mar 25, 2019 - 03:12 PM (IST)

चंडीगढ़ (विजय) : स्वच्छ सर्वेक्षण में चंडीगढ़ की हालत खराब हो चुकी है। पिछले साल तीसरे स्थान पर था अब 20वें पर आ गिरा है। पहले सिटी ब्यूटीफुल और फिर 2016 में नाम मिला स्मार्ट सिटी। 

कागजों में चंडीगढ़ की पहचान तो साल दर साल प्रोग्रैस कर रही है लेकिन ग्रासरूट लैवल पर कोई काम सिरे नहीं चढ़ पा रहा है। हकीकत यह है कि जिस तरह से एक के बाद एक शहर की डिवैल्पमैंट से जुड़े प्रोजेक्ट्स डंप हो रहे हैं उसे देखते हुए अब शहर के रैजीडैंट्स को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। 


प्रशासन ने पिछले 10 वर्षों में कईं प्रोजैक्ट्स की घोषणा तो कर दी लेकिन जब बात काम करने की आई तो वित्तीय परेशानी या जमीन की कमी बताकर प्रोजैक्ट्स लटका दिया गया। कई बड़े प्रोजैक्ट घोषणा के वर्षों बाद भी पूरे नहीं हो पाए।     


 

एक सप्ताह में कर दिए 9 प्रोजैक्टों के उद्घाटन
-6  मार्च को प्रशासक वी.पी. सिंह बदनौर ने स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमिशन एंड फोरा के कांफ्रेंस हॉल का उदघाटन किया।
-3 मार्च को बदनौर ने मलोया हाऊसिंग कॉम्प्लैक्स के 4960 लैट्स का उदघाटन किया। जिसकी लागत 250 करोड़ रुपए बताई गई।
-3  मार्च को ही प्रशासक ने ट्रिब्यून चौक पर फ्लाईओवर और अंडरपास का नींव पत्थर रखा। इस प्रोजैक्ट का बजट 386 करोड़ रुपए है।
-3 मार्च को ही सांसद किरण खेर ने सैक्टर-38 वेस्ट में ग्रीन बेल्ट का उदघाटन किया।
-इसी दिन सांसद ने सैक्टर-26 में भी ग्रीन पार्क का उदघाटन कर दिया।
-4 मार्च को सैक्टर-38, 50 और 56 में किरण खेर और बदनौर ने स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स का उदघाटन किया।
-चार मार्च को ही सैक्टर-48 में दोनों ने 28 करोड़ की लागत वाले 100 बेड के अस्पताल का उद्घाटन कर दिया।
-चार मार्च को सैक्टर-32 में मेंटल हेल्थ इंस्टीच्यूट का उद्घाटन किया गया है। इस प्रोजैक्ट की लागत करीब 34 करोड़ रुपए है।
-वहीं, इसी दिन सैक्टर-31 में रिहैबिलिटेशन इंस्टीच्यूट फॉर इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटीज जी.आर.आई.आई.डी. का उद्घाटन किया गया। जिसके ब्लॉक-ए की लागत करीब 9 करोड़ रुपए है।


पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम इंटैलिजैंट नहीं हुआ ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम
वर्ल्ड बैंक ने 2014 में चंडीगढ़ को इंटैलिजेंट पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के लिए चुना था। ट्रांसपोर्ट सिस्टम की मॉर्डनाइजेशन के लिए वल्र्ड बैंक ने फंडिंग करने का फैसला लिया था। 

 

2016 में चंडीगढ़ प्रशासन और वल्र्ड बैंक के बीच इस बारे में एम.ओ.यू. भी साइन हुआ। लेकिन तीन वर्ष गुजर जाने के बावजूद अभी तक यह प्रोजैक्ट सिरे नहीं चढ़ पाया। जिस वजह से शहर का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम अभी भी लच्चर हालात में है। 

 

वर्ल्ड बैंक ने इस प्रोजैक्ट के लिए 14 करोड़ देने के लिए मंजूरी दी थी। इस प्रोजैक्ट के शुरू न होने की एक वजह यह भी है कि अभी तक चंडीगढ़ की सभी मुख्य सड़कों के साथ साइकिल ट्रैक नहीं बन पाए हैं और जहां बने हैं वहां पर दुकानें और ऑटो रिक्शा चालकों का कब्जा है।

 

डंप होने के कगार पर 
2006 में केंद्र सरकार की ओर से चंडीगढ़ प्रशासन को मेट्रो रेल प्रोजैक्ट पर काम करने के निर्देश दिए गए। क्योंकि इससे पहले चंडीगढ़ प्रशासन मोनो रेल को पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेहतर ऑप्शन मान रहा था। मगर मोनो रेल प्रोजैक्ट पर लगभग 2500 करोड़ का खर्चा आ रहा था। 

 

दूसरी ओर मेट्रो रेल प्रोजैक्ट 1000 करोड़ से शुरू हो सकता था। चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली के साथ-साथ मिनिस्ट्री की इस मामले में सैंकड़ों मीटिंग्स हुई। करोड़ों रुपए केवल सर्वे पर ही खर्च कर दिए गए। 

 

लेकिन अब न तो मिनिस्ट्री को यह प्रोजैक्ट वाइबल लग रहा है और न ही चंडीगढ़ प्रशासन के अधिकारियों और शहर के नेताओं को। यही वजह है कि मैट्रो रेल प्रोजैक्ट अब डंप होने के कगार तक पहुंच गया है।

 

बड़ी परेशानी व्हीकल्स के पार्किंग की
चंडीगढ़ का नाम देश के उन शहरों में शुमार होता है जहां पर कैपिटा व्हीकल्स की संख्या सबसे अधिक है। यही कारण है कि आज के समय में सिटी ब्यूटीफुल की सबसे बड़ी परेशानी व्हीकल्स के पार्किंग की है। 

 

जिसके लिए 2017 में टाऊन एंड अर्बन प्लानिंग विभाग ने पहली बार पार्किंग पॉलिसी तैयार की। इस पॉलिसी पर लोगों के विरोध भी आए। दरअसल पॉलिसी में ऐसे नियम बना दिए गए थे जिन्हें मानने के लिए शहरवासी तैयार नहीं थे। अब इस पॉलिसी की फाइल केवल अधिकारियों की टेबल पर ही घूम रही है।

 

पब्लिक बाइक शेयरिंग प्रोजैक्ट भी अटका
पब्लिक बाइक शेयरिंग सिस्टम ऐसा प्रोजैक्ट है जिसके जरिए शहर में साइकिलिंग कल्चर को प्रोमोट करने की शुरुआत की गई थी। 2016 में इस प्रोजैक्ट के लिए पहली बार प्रयास शुरू किए गए। 

 

प्रोजैक्ट के तहत शहर में 5 हजार साइकिलें आनी थीं। 617 डॉकिंग स्टेशन बनाने की भी योजना था। लेकिन इस प्रोजेक्ट को अभी तक शुरू नहीं किया जा सका। हर एक स्टेशन पर 8 से 9 साइकिल रखी जानी थी। 

 

प्रोजैक्ट की लागत लगभग 20 करोड़ बताई जा रही है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर यह प्रोजैक्ट लॉन्च किए जाने की तैयारी थी। लेकिन अभी तक इस प्रोजैक्ट के लिए कोई कंपनी फाइनल नहीं हो पाई।

 

इलैक्ट्रिक बस प्रोजैक्ट ठंडे बस्ते में 
शहर का एयर पॉल्यूशन जब वेरी पुअर कैटेगरी में पहुंच गया तो नवम्बर 2016 में चंडीगढ़ के प्रशासक वी.पी. सिंह बदनौर ने इलेक्ट्रिक बसों के प्रोजैक्ट को अप्रवूल दे दी थी। लगभग 20 बसें पहले चलाई जानी थीं। बजट 32 करोड़ से अधिक का था। इसलिए केंद्र सरकार से फाइनैंशियल असिस्टेंस मांगी गई। 

 

लेकिन केंद्र सरकार की ओर से इस प्रोपोजल को मंजूरी नहीं दी गई। अब जबकि यह प्रोजैक्ट ठंडे बस्ते में पडऩे वाला है ऐसे में ट्रांसपोर्ट डिपार्टमैंट ने फ्रेश प्रोपोजल बनाते हुए किराए पर ही इलैक्ट्रिक बसों को चलाने का फैसला लिया है। जिसके लिए मिडी बसों को चुना गया है। अब यह प्रोजैक्ट कब तक सिरे चढ़ता है यह तो भविष्य ही बताएगा।


 

प्रीपेड मीटर्स
बिजली के अधिक बिल आने पर बार-बार प्रशासन के पास शिकायतें जाने के बाद अधिकारियों ने 2014 में शहर में प्रीपेड मीटर्स की सुविधा देने की मंजूरी दे दी थी। प्रोजैक्ट के जरिए किसी कंपनी को कांट्रेक्ट देकर उसके जरिए कंज्यूमर्स को प्रीपेड मीटर का ऑप्शन दिया जाना था। 

 

यही नहीं, ज्वाइंट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलैट्री कमीशन (जे.ई.आर.सी.) ने भी इस प्रोजेक्ट को अप्रूवल दे दी थी। लेकिन लगभग पांच वर्ष गुजर जाने के बावजूद इस प्रोजैक्ट को शुरू नहीं किया जा सका। जिसकी वजह से बिजली का इंफ्रास्ट्रक्चर अभी भी पुराने तरीके से ही चल रहा है।

 

एजुसिटी
2009 में कुछ कंपनियों ने सारंगपुर में एजुसिटी के लिए एम.ओ.यू. साइन किया। लेकिन जिस तरह से कंडीशंस चंडीगढ़ प्रशासन की ओर सेे तैयार की गई थी कोई भी कंपनी उन्हें मानते हुए प्रोजैक्ट शुरू करने के लिए तैयार नहीं हुई। 

 

नियम तय हुए कि या तो कंपनी की अपनी जमीन यहां होनी चाहिए या फिर जो जमीन सरकार देगी वह 99 साल की लीज पर होगी। जिसके बाद न तो कोई कंपनी सामने आई और न ही एजुसिटी का प्रोजैक्ट शुरू हो पाया। जिसके बाद अब यह प्रोजैक्ट मुल्लांपुर में शिफ्ट हो गया।

 

वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर
2011 में पहली बार चंडीगढ़ प्रशासन ने वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर बनाने का प्रोपोजल तैयार किया। इस कोरिडोर के जरिए सुखना वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी और लेक रिजर्व फॉरेस्ट को आपस में जोड़ा जाना था। बकायदा 50 एकड़ जमीन भी इस प्रोजैक्ट के लिए चिन्हित कर ली गई थी। 

 

इस एरिया में पौधारोपण तो हो गया लेकिन इसके बाद यह प्रोजैक्ट धीरे-धीरे अपनी रफ्तार खोता चला गया। हालांकि इसके बाद मिनिस्ट्री ने भी इस प्रोजैक्ट को शुरू करने के लिए निर्देश दिए। बावजूद इसके प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

 

शिफ्ट नहीं हुआ डड्डूमाजरा डंपिंग ग्राऊंड
डड्डूमाजरा के डंपिंग ग्राऊंड को शिफ्ट करने की योजना अभी भी शुरू नहीं हो पाई। हालांकि नगर निगम की ओर से दावा किया गया कि डड्डूमाजरा के डंपिंग ग्राउंड का कोई न कोई हल निकाल लिया जाएगा। 

 

लेकिन अभी भी यहां रहने वाले लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। हालांकि प्रशासक वी.पी. सिंह बदनौर भी यहां का दौरा कर चुके हैं। लेकिन कोई स्थाई हल निकलने की उ मीद न के बराबर है।

 

सैक्टर-21 की फिश मार्कीट
2009 में लगभग 1 करोड़ की लागत से तैयार की गई सैक्टर-21 की फिश मार्कीट को नगर निगम के हवाले किया गया। जिसके बाद 2010, 2011 और 2015 में बूथों की ऑक्शन भी की गई। लेकिन कोई भी दुकानदार इन बूथों के लिए नहीं पहुंचा। 

 

दरअसल फिश मार्कीट बनाते समय प्लानिंग इतनी गलत ढंग से की गई कि दुकानदारों को यहां फायदे की बजाय नुकसान के आसार दिखने लगे। रिस्क न लेते हुए कोई बूथ यहां नहीं खरीदा गया। अब नगर निगम इस फिश मार्कीट को जनरल मार्कीट में बदलने की मांग कर रहा है। लेकिन प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं है।


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pooja verma

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