क्या निकोटीन से कैंसर होता है? मिथकों से बचें

punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2024 - 03:46 PM (IST)

चंडीगढ़। सोशल मीडिया आने के बाद जानकारी की बाढ़ सी आ गई है। लेकिन इनमें से कौन सी जानकारी सही है और कौन सी नहीं, यह समझ पाना आसान नहीं होता। ऐसी की एक गलत धारणा यह फैली हुई है कि निकोटीन कार्सिनोजन होता है, जो कैंसर का मुख्य कारण है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के अनुसार, निकोटीन कैंसर का या फेफड़ों की बीमारी का मुख्य कारण नहीं है। तम्बाकू से होने वाला कैंसर मुख्यतः सिगरेट के जलने से निकलने वाली विषैली पदार्थों के कारण होता है। 

यूके नेशनल हैल्थ सिस्टम (एनएचएस) ने भी कहा है कि निकोटीन लत पैदा करता है, लेकिन यह तुलनात्मक रूप से स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक नहीं है। धूम्रपान से होने वाला लगभग पूरा नुकसान तम्बाकू के धुएं में मौजूद विषैले तत्वों के कारण होता है। निकोटीन स्वयं कैंसर, फेफड़ों की बीमारी, हृदयाघात या हृदय रोग नहीं करता है, और इसका उपयोग सालों से लोगों को धूम्रपान त्यागने में मदद करने के लिए दवाओं में सुरक्षित रूप से हो रहा है। 

अक्सर यह मान लिया जाता है कि निकोटीन केवल तम्बाकू में पाया जाता है और कैंसर करता है। लेकिन क्या यह सही है? निकोटीन कई पौधों में पाया जाने वाला प्राकृतिक तत्व है। यह विभिन्न सब्जियों, जैसे बैंगन, टमाटर, आलू आदि में मामूली मात्रा में पाया जाता है। 

सिगरेट के धुएं में 7,000 से ज्यादा कैमिकल्स होते हैं। इनमें से कम से कम 250 स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होते हैं, जिनमें हाईड्रोजन सायनायड, कार्बन मोनोऑक्साईड और अमोनिया शामिल हैं। कुछ तम्बाकू के पौधे के प्राकृतिक तत्व होते हैं, लेकिन अधिकांश नुकसानदायक पदार्थ केवल तम्बाकू के जलने से उत्पन्न होते हैं, न कि निकोटीन से।

निकोटीन वाले उत्पादों का उपयोग अक्सर चिंता, तनाव या अवसाद को कम करने के लिए किया जाता है। ‘तम्बाकू नियंत्रण का मानव-केंद्रित दृष्टिकोण’ रिपोर्ट में किए गए सर्वे में सामने आया कि तनाव और चिंता से टियर 1 शहरों में 62 प्रतिशत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं तम्बाकू सेवन के लिए प्रेरित होते हैं। 

सिगरेट से निकलने वाला निकोटीन धुएं के साथ फेफड़ों में चला जाता है। शरीर में प्रवेश करने के बाद निकोटीन हमारे खून के माध्यम से 20 सेकंड के अंदर दिमाग में पहुँच जाता है, जिससे नसों में उत्तेजना आती है और आनंद की अनुभूति होती है।

कैंसर और तम्बाकू से संबंधित बीमारियों का भार काफी बड़ा है। डब्लूएचओ की हाल ही के एक रिपोर्ट में सामने आया है कि 2050 में कैंसर के नए मामले बढ़कर कम से कम 3.5 करोड़ हो जाने का अनुमान है, जो 2022 में सामने आए मामलों के मुकाबले 77 प्रतिशत ज्यादा है। भारत में इसी साल कैंसर के अनुमानतः 14 लाख मामले दर्ज किए गए थे, जबकि हर नौ में से एक नागरिक अपने जीवनकाल में कैंसर का शिकार हो सकता है।

आम तौर से तम्बाकू के सुरक्षित विकल्पों, जैसे निकोटीन गम्स, पैचेस, लॉजेंजेस, एवं अन्य टेक्नोलॉजी, जैसे हीट-नॉट-बर्न (एचएनबी) में निकोटीन की कम खुराक का उपयोग किया जाता है, जिससे सिगरेट के धुएं में मौजूद कार्सिनोजन और अन्य नुकसानदायक पदार्थों का संपर्क बहुत कम हो जाता है। यह ध्यान देने वाली बात है कि यदि निकोटीन की वजह से कैंसर होता, तो विशेषज्ञ और प्रोफेशनल धूम्रपान से मुक्ति पाने के लिए निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एनआरटी) का परामर्श क्यों देते। 

निकोटीन विकल्पों में दहन नहीं होता है, इसलिए नुकसानदायक पदार्थों का स्तर बहुत कम हो जाता है। ये धूम्रपान का त्याग करने की प्रक्रिया के लिए बहुत आवश्यक हैं, इसलिए जनस्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए इन्हें तम्बाकू नियंत्रण की नीतियों में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Diksha Raghuwanshi

Related News