अमेरिकी टैरिफ ने तोड़ी कालीन उद्योग की कमर, 2,500 करोड़ के ऑर्डर अटके, 7 लाख परिवारों पर संकट
punjabkesari.in Tuesday, Sep 16, 2025 - 03:48 PM (IST)

बिजनेस डेस्कः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी शुल्क ने उत्तर प्रदेश के भदोही-मिर्जापुर के कालीन उद्योग की कमर तोड़ दी है। ‘कालीन बेल्ट’ कहलाने वाले भदोही-मिर्जापुर में कई कारखानों पर ताले लटक गए हैं और कुछ में नाम मात्र का काम चल रहा है।
भदोही के हाथ से बुने कालीन की अमेरिकी बाजार में जबरदस्त मांग थी और सैकड़ों कारोबारी सिर्फ वहीं से मिले ऑर्डरों पर फल-फूल रहे थे लेकिन ‘ट्रंप टैरिफ’ ने तस्वीर बदल दी। करीब 2,500 करोड़ रुपए के ऑर्डर अटक गए हैं और कारखाना मालिक मजदूरों की छंटनी करने को मजबूर हो गए हैं। नतीजतन, कालीन धंधे से जुड़े लगभग 7 लाख परिवारों की रोज़ी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है।
असली खपत अमेरिका में
भारत हर साल करीब ₹17,000 करोड़ के हाथ से बुने कालीन अमेरिका और दूसरे देशों को निर्यात करता है। इनमें से ₹10,500 करोड़ का माल सिर्फ भदोही-मिर्जापुर से जाता है। सबसे अहम बात यह है कि यहां से तैयार होने वाले कालीनों का करीब 60% यानी ₹6,000 से ₹6,500 करोड़ का निर्यात अकेले अमेरिकी बाजार में होता है।
भदोही-मिर्जापुर के पर्शियन स्टाइल वाले हैंड-टफ्टेड और हैंड-नॉटेड कालीन बेहद कीमती होते हैं लेकिन भारत में इनकी खपत न के बराबर है—सिर्फ 2% कालीन ही घरेलू बाजार में बिकते हैं। कालीन कारोबारी इश्तियाक बताते हैं कि देश के होटल, मॉल और थिएटर में ज्यादातर मशीन से बने कालीन ही इस्तेमाल होते हैं। इसलिए भदोही के कारोबारी अमेरिकी डिमांड के हिसाब से ही माल तैयार करते हैं। अब नए बाजार ढूंढना न सिर्फ मुश्किल होगा, बल्कि उसमें वक्त भी लगेगा।
पीक सीजन में पड़ी गाज
हाथ से बुने कालीनों की डिमांड साल में सिर्फ तीन महीने अक्टूबर से दिसंबर तक रहती है। इसके लिए मई-जून से ही उत्पादन शुरू हो जाता है लेकिन इस बार अप्रैल से ही अनिश्चितता बनी रही और जो ऑर्डर मिले भी, वे या तो कैंसिल हो रहे हैं या घाटे में पूरा करने की नौबत आ गई है।
गोदामों में पड़ा माल
ऑर्डर रद्द होने से करोड़ों रुपये के तैयार कालीन गोदामों में अटके पड़े हैं। कई कारोबारी कर्ज लेकर माल तैयार करवा चुके हैं, मगर खरीदार नहीं मिल रहे। कारोबारी सलमान अंसारी के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ का फायदा दूसरे देश उठा रहे हैं और कम कीमत पर माल ऑफर कर रहे हैं। अनुमान है कि करीब ₹700 करोड़ का तैयार माल गोदामों में फंसा है, जबकि उतनी ही कीमत का कच्चा माल भी बेकार हो चुका है।
गोदामों में 700 करोड़ रुपए का तैयार माल पड़ा है, जबकि कच्चे माल में लगा पैसा भी डूब गया है। दूसरी ओर, तुर्किये, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश सस्ते श्रम और कम शुल्क के कारण भारत की हिस्सेदारी छीनने लगे हैं।
हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कई बुनकर दूसरे कामों की ओर रुख कर रहे हैं कोई ई-रिक्शा चला रहा है तो कोई सब्जी बेच रहा है। कारोबारियों का कहना है कि अगर जल्दी समाधान नहीं निकला, तो कालीन उद्योग पूरी तरह चौपट हो सकता है।