ऐसे डूबता गया फोर्टिस के सिंह भाइयों का सितारा
punjabkesari.in Saturday, Apr 07, 2018 - 11:46 AM (IST)
नई दिल्लीः रैनबैक्सी कंपनी को 2008 में जब मलविंदर और शिविंदर सिंह ने जापान की कंपनी दाइची सैंक्यो को 2.4 अरब डॉलर में बेचा था, तब यह देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी थी। कंपनी को बेचने के बाद सिंह बंधुओं के सितारे खाक में मिले चले गए।
फंड की हेराफेरी का आरोप
आज सिंह बंधु रेलिगेयर के फंड की हेराफेरी के आरोप का सामना कर रहे हैं। 2008 में जिस रैनबैक्सी डील की वाहवाही हुई थी, वह आगे चलकर उनके गले की फांस बन गई। डील के बाद 2014 तक रैनबैक्सी के चार प्लांट्स पर गलत मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस और दवाओं से जुड़े गलत डेटा की वजह से अमेरिकी ड्रग्स रेग्युलेटर बैन लगा चुका था।
इसके बाद डील के दौरान जानकारियां छिपाने का आरोप लगाते हुए दाइची ने सिंह बंधुओं के खिलाफ इंटरनैशनल आर्बिट्रेशन कोर्ट में मुकद्दमा शुरू किया। इसमें जापान की कंपनी की जीत हुई और कोर्ट ने सिंह बंधुओं से दाइची को 3,500 करोड़ रुपए देने को कहा। सिंह बंधुओं ने इससे बचने के लिए आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी।
भारी भरकम कर्ज ले डूबा
2011 तक सिंह बंधुओं को अहसास हो गया था कि कर्ज उन्हें ले डूबेगा। इसके बाद इसे कम करने के लिए उन्होंने एक-एक करके ग्रुप के बिजनेस को बेचना शुरू किया। पहले ऑस्ट्रेलियाई इकाई डेंटल कॉर्पोरेशन को बेचा गया। उसके बाद सिंगापुर में लिस्टेड रेलिगेयर हेल्थ ट्रस्ट को 2,200 करोड़ रुपए में। फिर डायग्नोस्टिक बिजनेस एसआरएल में 3,700 करोड़ रुपए की इक्विटी अलग की गई। इन सबसे फोर्टिस पर कर्ज घटकर 2,300 करोड़ रुपए रह गया।
इसके बावजूद सिंह बंधुओं का कारोबारी सूरज डूबने को है। फोर्टिस में उनकी 98 फीसदी हिस्सेदारी फाइनैंशल सर्विसेज संस्थानों के पास गिरवी पड़ी है, जो नए निवेशक को बेची जाएगी। सिंह बंधुओं की बर्बादी की इस दास्तां के केंद्र में बिजनस बढ़ाने के जुनून में जरूरत से अधिक कर्ज लेना और फाइनैंशल सर्विसेज जैसे बिजनेस में कदम रखना जैसी चीजें शामिल हैं, जिसका उन्हें कोई तजुर्बा नहीं था।