कमोडिटी में ऑप्शंस ट्रेडिंग को SEBI से मंजूरी

punjabkesari.in Thursday, Apr 27, 2017 - 09:44 AM (IST)

नई दिल्लीः आज हुई सेबी बोर्ड बैठक में कई अहम फैसले हुए हैं। खासकर विदेशी निवेशकों, म्युचुअल फंड और कमोडिटी बाजार के लिए बड़े फैसले लिए गए हैं। कमोडिटी में ऑप्शंस ट्रेडिंग का रास्ता साफ हो गया है। सेबी ने कमोडिटी ऑप्शंस को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही इक्विटी और कमोडिटी ब्रोकर्स के लिए यूनिफाइड लाइसेंस पर भी फैसला हुआ है। सेबी ने विदेशी निवेशकों के लिए रजिस्ट्रेशन नियमों में ढील को मंजूरी दी है। साथ ही एन.बी.एफ.सी. को क्यू.आई.बी. कैटेगरी में निवेश को भी मंजूरी दी है। वहीं, अब 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के आई.पी.ओ. की मॉनिटरिंग होगी।

मॉनिटरिंग एजेंसी रेगुलर बेसिस पर देगी रिपोर्ट
मॉनिटरिंग एजेंसी रेगुलर बेसिस पर देगी रिपोर्ट मॉनिटरिंग एजेंसी को रेगुलर बेसिस पर कंपनी और उसके ऑडिट कमिटी को रिपोर्ट देनी होगी। रिपोर्ट में यह जानकारी भी देनी होगी कि किन कामों में कितना फंड इस्तेमाल किया गया, इसमें शेयरहोल्डर्स की मंजूरी ली गई या नहीं। इनवेस्टर्स से जिस प्रोजेक्ट के लिए फंड जुटाया गया है, उस प्रोजेक्ट की परफॉर्मेंस पॉजिटिव है या निगेटिव, इस बात की भी जानकारी रिपोर्ट में देनी जरूरी होगी।

इन्हें मिली मंजूरी
-ई-वॉलेट के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश को मंजूरी दी गई है। ई-वॉलेट से म्यूचुअल फंड में 50,000 रुपए रोज निवेश कर सकेंगे। इसके अलावा आगे म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़ाने के लिए कई फैसले लिए जाएंगे। म्यूचुअल फंडों के पेमैंट बैंक और ई-वॉलेट के साथ करार को मंजूरी दी गई है।
-सेबी ने विदेशी निवेशकों के लिए रजिस्ट्रेशन नियमों में ढील को मंजूरी दी है। साथ ही 500 करोड़ रुपए के नैटवर्थ वाले एन.बी.एफ .सी. को क्यू.आई.बी. कैटेगरी में निवेश को भी मंजूरी दी है। वहीं, अब 500 करोड़ रुपए से ज्यादा के आई.पी.ओ. की मॉनीटरिंग होगी।
-मॉनीटरिंग एजैंसी को रैगुलर बेसिस पर कंपनी और उसकी ऑडिट कमेटी को रिपोर्ट देनी होगी। रिपोर्ट में यह जानकारी भी देनी होगी कि किन कामों में कितना फंड इस्तेमाल किया गया, इसमें शेयर होल्डर्स की मंजूरी ली गई या नहीं। इन्वैस्टर्स से जिस प्रोजैक्ट के लिए फंड जुटाया गया है, उस प्रोजैक्ट की परफॉर्मैंस पॉजीटिव है या नैगेटिव, इस बात की भी जानकारी रिपोर्ट में देनी जरूरी होगी।  
बताते चलें कि असल में सेबी ने कई मामलों में यह देखा है कि कई कंपनियों ने आई.पी.ओ. के पैसे का इस्तेमाल अलग कामों में किया है। ऐसा या तो शेयर होल्डर्स की मंजूरी से किया गया या कई बार छिपाकर भी किया गया।


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