वॉशिंगटन में होगी अंतिम दौर की बातचीत, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर निगाहें
punjabkesari.in Friday, May 16, 2025 - 01:49 PM (IST)

बिजनेस डेस्कः भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से प्रतीक्षित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement - BTA) पर 8 जुलाई 2025 से पहले हस्ताक्षर होने की पूरी संभावना है। यह वह तारीख है जब अमेरिका द्वारा घोषित 90 दिनों की टैरिफ छूट की अवधि समाप्त हो रही है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और भारत के मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका के साथ अंतिम दौर की बातचीत के लिए वॉशिंगटन रवाना हो रहा है। वार्ता सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही है और उम्मीद है कि समझौता तय समय सीमा से पहले ही हो जाएगा।
अमेरिका द्वारा टैरिफ में राहत की पृष्ठभूमि
2 अप्रैल 2025 को अमेरिका ने स्टील पर 25% और एल्युमिनियम पर 10% टैरिफ की घोषणा की थी। हालांकि, भारत जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों को 90 दिन की छूट दी गई थी, ताकि समझौते के लिए समय मिल सके। यदि 8 जुलाई से पहले समझौता हो जाता है, तो भारत को अमेरिकी टैरिफ से राहत मिल सकती है और द्विपक्षीय व्यापार संबंध ज्यादा स्थिर आधार पर आ सकते हैं।
भारत का रुख: डेयरी और कृषि उत्पादों पर समझौता नहीं
सूत्रों के अनुसार, भारत ने डेयरी और कृषि क्षेत्र जैसे संवेदनशील सेक्टरों पर कोई समझौता नहीं किया है। यह स्पष्ट किया गया है कि भारत इन क्षेत्रों को विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं खोलेगा।
WTO में भी सक्रिय है भारत
भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट की है और ‘प्रतिशोधात्मक कार्रवाई का अधिकार’ सुरक्षित रखा है। यह कदम बहुपक्षीय व्यापार नियमों के तहत भारत के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है।
"ट्रम्प के बयान में सच्चाई नहीं"
अधिकारियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस बयान को खारिज किया जिसमें कहा गया था कि भारत अधिकतर अमेरिकी उत्पादों पर ज़ीरो टैरिफ देने को तैयार है। भारत का रुख यह है कि चयनात्मक आधार पर टैरिफ कम करने की बातचीत चल रही है, ना कि व्यापक तौर पर।
भारत अमेरिका से अब भी ज्यादा प्रतिस्पर्धी
हालांकि अमेरिका और चीन के संबंधों में थोड़ी नरमी दिख रही है, लेकिन चीन पर प्रभावी टैरिफ दरें अभी भी करीब 50% हैं, जो भारत से अधिक हैं। इससे स्पष्ट है कि भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाज़ार अब भी प्रतिस्पर्धी बना हुआ है।