खस्ताहाल भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब एनडीए सहयोगी भी उठाने लगे सवाल!

punjabkesari.in Saturday, Nov 30, 2019 - 04:10 PM (IST)

नई दिल्लीः 2019-20 की दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी दर में गिरावट दर्ज की गई है। शुक्रवार को जारी की गई रिपोर्ट में जीडीपी दर 4.5 फीसदी दर्ज की गई है। यह 6 साल में सबसे निचले स्तर पर है। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था पर अब एनडीए सहयोगी भी सरकार पर सवाल उठाने लगे हैं। जनता दल यूनाइटेड और अकाली दल ने मौजूदा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।

एक सहयोगी ने इसकी वजह 'प्रतिभा की कमी' तो दूसरे सहयोगी ने तुरंत प्रभाव से राजनेताओं और अर्थशास्त्रियों की बैठक बुलाने की बात कही है। शिरोमणी अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात खतरे की घंटी है हम सभी इसपर चिंतित हैं। बेरोजगारी की वजह से ग्रोथ में कमी आ रही है। बीजेपी सरकार ने अबतक अपने सहयोगी दलों के साथ इस समस्या से निकलने के लिए बैठक नहीं की है। सहयोगी दल इसपर नाखुशी जता चुके हैं। एनडीए की पुरानी सहयोगी शिवसेना पहले ही अपनी राहें अलग कर चुकी हैं और अन्य सहयोगी भी इसका इंतजार कर रहे हैं। सहयोगी पदों के लिए मर नहीं रहे हैं, लेकिन सरकार को परामर्श करना होगा। हमने देखा है कि सक्षम मंत्रियों द्वारा संचालित मंत्रालय अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के पास कुशल लोगों की कमी है। हालांकि सरकार में कुछ मंत्रियों का दबदबा है।'

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा, 'हमारी पार्टी गिरती अर्थव्यस्था पर चिंतित है। पीएसयू संपत्तियों को प्राइवेट कंपनियों को सौंपना चिंता का विषय है। वहीं कृषि क्षेत्र में उदासी गांव से पलायन को बढ़ावा दे रहा है। सरकार को अर्थशास्त्रियों या भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर की चेतावनी की उपेक्षा या उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। बातचीत के रास्ते खोले जाने चाहिए। राजनीतिक नेताओं और अर्थशास्त्रियों की बैठक होनी चाहिए। (पूर्व पीएम) मनमोहन सिंह जैसे लोगों को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाया जाना चाहिए। क्योंकि यह टकराव का मामला नहीं है, यह परामर्श का विषय है।'

उन्होंने आगे कहा कि पीएसयू की संपत्ति निजी कंपनियों को बेची जा रही है। समाजवादी पार्टी होने के नाते जेडीयू इसको लेकर चिंतित है। राजस्व संग्रह के लिए पीएसयू की संपत्ति बेचना आर्थिक संकट से निपटने का एक गलत तरीका साबित हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में, इसके लिए एक मंत्रालय था, लेकिन इसका सकारात्मक परिणाम नहीं मिले। यहां तक ​​कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी ऐसा हुआ लेकिन कोई परिणाम नहीं मिले।

बीजेपी के पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'बीजेपी नेता अर्थव्यस्था पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से परहेज कर रह है। जब एनएसएसओ ने बेरोजगारी और ग्रामीण उपभोग की रिपोर्टों पर प्रकाश डाला, तो हमारे लोगों ने ऑटोमोबाइल बिक्री, ओला/ उबर सेवाओं, हवाई अड्डों, काउंटर पर कमाई के लिए वैकल्पिक आंकड़ों का हवाला दिया। पार्टी के पदाधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्री मंदी को स्वीकार करने की स्थिति में आ गईं हैं।
 


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jyoti choudhary

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