मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ फ्लॉप, 2017-18 में GDP में निर्यात का हिस्सा 14 वर्षों में सबसे कम

punjabkesari.in Wednesday, Apr 18, 2018 - 05:19 AM (IST)

नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था दिन-प्रतिदिन बर्बादी की ओर जाती दिख रही है। नोटबंदी और जी.एस.टी. के दुष्प्रभाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। बीतते समय के साथ ये अधिक उभरकर सामने आ रहे हैं। 

2017-18 वित्तीय वर्ष के जो आंकड़े आए हैं वे भी इन दुष्प्रभावों से अछूते नहीं हैं। ‘मेक इन इंडिया’ को लेकर सत्ता में आई मोदी सरकार के कार्यकाल में देश का निर्यात इतना ज्यादा गिर चुका है कि जी.डी.पी. में उसका हिस्सा इस वर्ष पिछले 14 वर्षों में सबसे कम है। यानी कि मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ का नारा फ्लॉप हो चुका है। नोटबंदी के बाद निर्माण क्षेत्र में भारी नुक्सान हुआ है। हजारों लोगों को अपने काम बंद करने पड़ गए। इसके अलावा एक्सपोर्टर्स जी.एस.टी. में इनपुट टैक्स क्रैडिट फंसने की वजह से ऑर्डर पूरे नहीं कर पा रहे हैं। 

टैक्सटाइल सैक्टर भी दुर्दशा का शिकार
टैक्सटाइल सैक्टर की तरफ नजर मारें तो इसकी दुर्दशा भी बताती है कि एक्सपोर्ट में गिरावट आई है। इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन कौंसिल (ई.जी.पी.सी.) के चेयरमैन रवि सहगल ने बताया कि इंजीनियरिंग सैक्टर किसी समय पर वस्तुओं की एक्सपोर्ट में सबसे अग्रणी था परन्तु मार्च में इसने सिर्फ 2.62 प्रतिशत विकास दर दिखाई है। 

लगातार जी.डी.पी. में कम हो रही निर्यात की हिस्सेदारी
सैंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) के आकड़ों के अनुसार 2017-18 में देश की जी.डी.पी. में निर्यात की हिस्सेदारी 11.65 प्रतिशत रही है। मोदी सरकार आने के बाद निर्यात की हिस्सेदारी जी.डी.पी. लगातार कम हो रही है। 2013 में जी.डी.पी. में निर्यात की हिस्सेदारी 25.43 प्रतिशत थी। 2014 में घटकर 23.01 प्रतिशत हो गई, 2015 में 19.94 प्रतिशत, 2016 में 19.18 प्रतिशत और अब 2017 में यह 11.65 प्रतिशत रह गया है। प्रधानमंत्री मोदी मेक इन इंडिया से देश के निर्माण को बढ़ाने और जी.डी.पी. को डबल डिजिट करने यानी कि 10 प्रतिशत या उससे ऊपर पहुंचाने के वायदे के साथ सत्ता में आए थे लेकिन हकीकत उसके विपरीत नजर आ रही है। अमरीका में विदेशी व्यापार को लगाए जाने वाले टैक्सों ने एक्सपोर्ट का भविष्य और भी धुंधला कर दिया है। इस संबंधी कुछ समय पहले यू.एस. ट्रेड प्रतिनिधि आफिस ने बताया था कि इसके साथ जांच-पड़ताल आरंभ हो गई है कि क्या भारत जर्नलाइज्ड व्यवस्था ऑफ प्रैफरैंस के नियमों का पालन कर रहा है, जिसके साथ उत्पादों की भारत से ड्यूटी फ्री प्रविष्टि हो सके। 

विश्व बैंक और आई.एम.एफ. ने बढ़ाया भारतीय जी.डी.पी. का अनुमान
विश्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। साथ ही उसने यह भी कहा है कि भारत को अपनी रोजगार दर बरकरार रखने के लिए हर साल 8.1 मिलियन नौकरियां सृजित करनी होंगी। इसके अलावा वल्र्ड बैंक का मानना है कि आने वाले 2 वर्षों में भारत की ग्रोथ रेट बढ़कर 7.5 प्रतिशत के स्तर पर आ जाएगी। देश में वर्ष 2016 में लागू हुई नोटबंदी और एक जुलाई 2017 को लागू वस्तु एवं सेवाकर के क्रियान्वयन के नकारात्मक असर से बाहर आ चुका है। साल में 2 बार जारी होने वाली साऊथ एशिया इकोनॉमिक फोकस (एस.ए.ई.एफ.) रिपोर्ट जिसका नाम जॉबलैस ग्रोथ है, में कहा गया है कि देश की विकास दर 2019-20 और 2020-21 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो जाएगी। 

उधर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.)का अनुमान है कि 2018 में भारत की वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहेगी, जो 2019 में बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो जाएगी। वहीं इन 2 वर्षों के दौरान चीन की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की वृद्धि दर क्रमश : 6.6 और 6.4 प्रतिशत रहेगी। आई.एम.एफ. ने अगले 2 वर्षों में वैश्विक वृद्धि दर 3.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। आई.एम.एफ. का कहना है कि मजबूत रफ्तार, अनुकूल बाजार धारणा के साथ अन्य कारणों से वैश्विक वृद्धि दर बेहतर रहेगी।  


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Pardeep

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