कमजोर रुपए से आयात ‘बिल’ में भारी वृद्धि, निर्यात पर पड़ा सीमित असर: GTRI रिपोर्ट
punjabkesari.in Friday, Jan 17, 2025 - 02:52 PM (IST)
बिजनेस डेस्कः रुपए की विनिमय दर में गिरावट कच्चे तेल, कोयला, वनस्पति तेल, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और रसायनों के लिए अधिक भुगतान के कारण देश के आयात ‘बिल' को बढ़ाएगा। आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई ने शुक्रवार को कहा कि घरेलू मुद्रा में गिरावट से भारत के सोने के आयात ‘बिल' में वृद्धि होगी। खासकर जब वैश्विक सोने की कीमतें सालाना आधार पर 31.25 प्रतिशत बढ़कर जनवरी 2025 में 86,464 डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई हैं। जनवरी 2024 में कीमत 65,877 डॉलर प्रति किलोग्राम थी।
‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव' (जीटीआरआई) ने अपनी रिपोर्ट में कहा, भारतीय रुपया (आईएनआर) पिछले वर्ष 16 जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.71 प्रतिशत कमजोर होकर 82.8 रुपए से 86.7 रुपए पर आ गया है। वहीं पिछले 10 वर्षों में यानी जनवरी 2015 से 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 41.3 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 41.2 रुपए से टूटकर 86.7 रुपए पर आ गया है। इसकी तुलना में, चीनी युआन में 3.24 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 7.10 युआन से घटकर 7.33 युआन हो गया।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर कमजोर रुपए से आयात ‘बिल' बढ़ेगा, ऊर्जा तथा कच्चे माल की कीमतें बढ़ेंगी जिससे अर्थव्यवस्था में दबाव बढ़ेगा। पिछले 10 वर्षों के निर्यात आंकड़ों से पता चलता है कि कमजोर रुपए से निर्यात को कोई मदद नहीं मिलती है, जबकि अर्थशास्त्रियों की राय इससे उलट है।'' उन्होंने कहा कि हालांकि आम राय के अनुसार कमजोर मुद्रा से निर्यात को बढ़ावा मिलना चाहिए लेकिन भारत के दशक भर के आंकड़े एक अलग कहानी बयां करते हैं। उच्च आयात वाले क्षेत्र फल-फूल रहे हैं, जबकि कपड़ा जैसे श्रम-गहन, कम आयात वाले उद्योग लड़खड़ा रहे हैं।
श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘2014 से 2024 तक के व्यापार आंकड़े भी अलग कहानी दर्शाते हैं। 2014 से 2024 की अवधि में कुल वस्तु निर्यात में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और कंप्यूटर जैसे उच्च आयात वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई।'' उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 232.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई और मशीनरी तथा कंप्यूटर निर्यात में 152.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। श्रीवास्तव ने कहा कि इस बीच, परिधान जैसे कम आयात वाले क्षेत्रों में कमजोरी आई, जबकि कमजोर रुपए के कारण उनके सामान वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए होंगे। उन्होंने कहा, ‘‘इन प्रवृत्तियों से पता चलता है कि कमजोर रुपया हमेशा निर्यात को बढ़ावा नहीं देता है। यह श्रम-गहन निर्यात को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है और कम मूल्य संवर्धन के साथ आयात-संचालित निर्यात को बढ़ावा देता है।''
जीटीआरआई ने सुझाव दिया कि भारत को दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए वृद्धि विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना होगा तथा साथ ही रुपया प्रबंधन व व्यापारिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, वास्तविक स्थिति गंभीर है। भारत के 600 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार का अधिकतर हिस्सा का ऋण/निवेश है, जिसका ब्याज सहित भुगतान किया जाना है जिससे रुपए को स्थिर करने में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।''