सरकार को इस समय कर्ज पर नहीं, आर्थिक पुनरूत्थान पर ध्यान देने की जरूरत: वित्त आयोग
punjabkesari.in Saturday, Jun 27, 2020 - 02:47 PM (IST)
नई दिल्लीः सरकार को इस समय राजकोषीय सुदृढीकरण अथवा बढ़ते सार्वजनिक ऋण के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसे अर्थव्यवस्था के जल्द से जल्द पुनरुत्थान के संभावित तौर तरीकों पर ध्यान देना चाहिए। पंद्रहवें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वृद्धि दर काफी कमजोर रहने तथा राजस्व संग्रह कम होने से केंद्र और राज्य सरकारों के ऊपर वित्त को लेकर काफी दबाव है।
आर्थिक सलाहकार परिषद के साथ आयोग की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, सिंह ने कहा कि इस साल राजकोषीय आंकड़े उन तरीकों से अलग होंगी, जैसा उन्हें समझा जाता रहा है। वित्त मंत्रालय ने खुद रिजर्व बैंक से उधारी बढ़ाई है। वहीं राज्य सरकारें भी अधिक उधार लेने जा रही हैं। उन्होंने आगे कहा, "यह राजकोषीय स्थिति सुदृढ़ बनाने को लेकर बात करने का समय नहीं है। यह वह समय है, जिसमें दुनिया मानती है, मुझे लगता है कि राजकोषीय घाटे के बजाय व्यय को बनाए रखने की आवश्यकता है और केंद्र सरकार ने यही किया है।''
सिंह ने कहा, "उन्होंने इस मुद्दे को संबोधित किया है कि धन और वित्त कहां जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान और अगले वित्त वर्ष से आगे देखकर चलें, इस मामले में केंद्र सरकार सचेत है, हर कोई सचेत है रास्ते पर कैसे लौटना है और किस तरह की वापसी वित्तीय घाटे और कर्ज दोनों मोर्चे पर उचित मानी जा सकती है।” पंद्रहवें वित्त आयोग के गठन की शर्तों में एक महत्वपूर्ण शर्त यह भी है कि आयोग 2021-22 से 2025-26 के दौरान सरकार को घाटे, वित्त और कर्ज के संदर्भ में अनुशासित रास्ते का सुझाव दे।
सिंह ने कहा, "इस साल हमें राजकोषीय घाटे या ऋण पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। हमें अर्थव्यवस्था के सबसे संभावित तेज पुनरुद्धार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।'' रेटिंग एजेंसियों ने भारत के राजकोषीय घाटे (संयुक्त केंद्र और राज्यों) का चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 11-12 प्रतिशत के बराबर रहने का अनुमान लगाया है। सरकार का कुल ऋण पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी के 71 प्रतिशत से बढ़कर 84 प्रतिशत को छूने वाला है।
पंद्रहवें वित्त आयोग की सलाहकार परिषद ने वित्त आयोग के साथ 25-26 जून को वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये बैठकों में महसूस किया कि अर्थव्यवस्था तथा केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति पर महामारी का प्रभाव अभी भी बहुत अनिश्चित है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "सलाहकार परिषद ने केंद्र और राज्य सरकारों के कर राजस्व संग्रह पर अर्थव्यवस्था में लॉकडाउन के कारण प्रतिकूल प्रभावों पर भी चर्चा की। परिषद के कुछ सदस्यों ने यह माना कि कर संग्रह पर महामारी का काफी असर हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि कर संग्रह पर महामारी का असर काफी अलग तरह का भी हो सकता है।''