उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद रेरा के क्रियान्वयन में सुधार आने की उम्मीद: FPCE

punjabkesari.in Saturday, Mar 12, 2022 - 04:07 PM (IST)

नई दिल्लीः घर खरीदारों की शीर्ष संस्था एफपीसीई ने उम्मीद जताई है कि उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्देश के बाद अब रियल्टी कानून ‘रियल एस्टेट नियामकीय प्राधिकरण (रेरा)’ का क्रियान्वयन बेहतर तरीके से होगा। उच्चतम न्यायालय ने 14 फरवरी को केंद्र को यह पता लगाने का निर्देश दिया था कि विभिन्न राज्यों में रियल एस्टेट नियामकीय प्राधिकरण (रेरा) के तहत बने नियमों में क्या एकरूपता है और कहीं वे मकान खरीदारों के हितों की अनदेखी तो नहीं करते हैं।

पिछले महीने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने केंद्र को यह पता लगाने के लिए तीन महीने का समय दिया था कि राज्यों ने जो रेरा कानून बनाए हैं, वे केंद्र के 2016 में बने रेरा अधिनियम से अलग तो नहीं हैं। पीठ ने इस संदर्भ में मई, 2022 के पहले सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा था।

फोरम फॉर पीपल्स कलेक्टिव एफर्ट (एफपीसीई) के अध्यक्ष अभय कुमार उपाध्याय ने इस विषय पर कहा, ‘‘रेरा का क्रियान्वयन पूरी तरह से शुरू हुए को पांच साल हो चुके हैं लेकिन यह अब भी अपने तय लक्ष्य के करीब तक नहीं पहुंचा है।’’ उन्होंने कहा कि इसकी प्रमुख वजह यह है कि राज्य जिनके पास इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी होती है वे सामान्य रियल एस्टेटस कानूनों और बिक्री समझौता नियमों में किसी तरह की एकरूपता का पालन नहीं करते हैं।

उपाध्याय ने कहा, ‘‘राज्यों के नियम रेरा के प्रावधानों के दायरे में नहीं आते, इससे कानून कमजोर हो जाता है और घर खरीदारों को रेरा के लाभ नहीं मिल पाते।’’ उन्होंने कहा कि बिल्डर इसका पूरा फायदा उठाते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि ‘‘उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद चीजें सही दिशा में बढ़ेंगी और कई घर खरीदारों को इसका लाभ मिलेगा।’’ कॉलियर्स इंडिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रमेश नायर ने कहा कि राज्यों के रेरा नियमों की परख करने का उच्चतम न्यायालय का आदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि विभिन्न राज्यों के रेरा नियमों में बिल्डर-खरीददार समझौतों को लेकर एकरूपता नहीं है।

शीर्ष अदालत ने इस पर गौर किया था कि केंद्र सरकार ने रेरा कानून के अस्तित्व में आने के बाद 2016 में बिक्री के लिये समझौते के मसौदे को सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया था। फिलहाल पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों ने ये नियम अधिसूचित नहीं किए हैं। पीठ ने कहा था, ‘‘मौजूदा स्थिति में न्यायालय के लिए यह जानना जरूरी है कि राज्यों ने जो रेरा नियम बनाए, उसमें केंद्र के 2016 में बनाए कानून के जरूरी प्रावधानों को रखा गया है या नहीं। क्या उसमें कोई अंतर है, जिससे खरीदारों के हित प्रभावित हों।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि केंद्रीय आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय केंद्रीय स्तर पर राज्यों के नियम की जांच करेगा और इस बारे में रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश करेगा। हम अधिवक्ता देवाशीष भरूका से न्याय मित्र के रूप में मामले में शीर्ष अदालत की मदद का आग्रह करते हैं। वह नियमों की जांच में मंत्रालय की भी सहायता करेंगे।’’ 


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Content Writer

jyoti choudhary

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