भारत के साथ संघर्ष छेड़ कर शी जिनपिंग ने खुद को फंसा लिया है

punjabkesari.in Sunday, Jul 25, 2021 - 05:41 AM (IST)

दुनिया ने परमाणु हथियारों से लैस चीन और भारत के बीच उनकी लंबी और विवादित हिमालयी सीमा पर सैन्य टकराव पर बहुत कम ध्यान दिया है। लेकिन कई जगहों पर उनके सैन्य गतिरोध तीव्र हो रहे हैं और दोनों पक्षों ने हजारों अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की है, जो दुनिया के अगले बड़े संघर्ष के बीज थामे हुए हैं। 

हाल ही में, सार्वजनिक रूप से जारी की गई अमरीकी खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘चीन अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन करने के लिए समन्वित, संपूर्ण सरकारी उपकरणों का उपयोग करना चाहता है और क्षेत्रीय पड़ोसियों को पेइचिंग की प्राथमिकताओं से सहमत होने के लिए मजबूर करता है, जिसमें विवादित क्षेत्र ताइवान पर इसके दावे और संप्रभुता के दावे शामिल हैं।’’ 

शी का बाहुबली संशोधनवाद जाहिर तौर पर उनके इस विश्वास से प्रेरित है कि चीन के पास अवसर की एक रणनीतिक खिड़की है, जिसके बंद होने से पहले उसे छीन लेना चाहिए। यह सी.सी.पी. के हाल के शताब्दी समारोह के दौरान शी के उग्र भाषण की व्या या कर सकता है, जब उन्होंने विदेशी ताकतों को चेतावनी दी थी कि अगर चीन के उदय को रोकने की कोशिश की गई तो वे ‘उनका सिर फोड़ेंगे और खून बहाएंगे’। चीन द्वारा सैन्य बल के प्रदर्शन से भारत के साथ उसके संबंध आज पतन की ओर हैं। दुर्गम हिमालयी सीमा पर प्रतिद्वंद्वियों द्वारा नए हथियार और अतिरिक्त बल तैनात होने से स्थानीय झड़पों के कारण युद्ध का खतरा बढ़ गया है। 

चीन ने 1950 के दशक की शुरूआत में तत्कालीन स्वायत्त तिब्बत पर कब्जा करके खुद को भारत के पड़ोसी के रूप में थोपा था, जो ऐतिहासिक तौर पर  एक विशाल प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता था। इसके अलावा, प्रतिद्वंद्वियों द्वारा हिमालयी सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य बलों की तैनाती इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी है। बड़े पैमाने पर निर्माण के साथ-साथ चीन द्वारा युद्ध सुविधाओं सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में नए सैन्य बुनियादी ढांचे के उन्मादी निर्माण किए गए हैं। कभी हल्के में गश्त की जाने वाली सीमा एक स्थायी गर्म सीमा में बदलने के लिए तैयार है। सैन्य टकराव मई 2020 में शुरू हुआ, जब चीन ने दुनिया के सबसे स त कोविड-19 लॉकडाऊन लागू करने की भारत की व्यस्तता का फायदा उठाया और लद्दाख के उत्तरी भारतीय क्षेत्र में कई प्रमुख सीमा क्षेत्रों पर चोरी-छिपे घुसपैठ की और कब्जा कर लिया, जहां शक्तिशाली हिमालय कराकोरम रेंज से मिलता है। 

पिछली गर्मियों के उन संघर्षों, जिनमें चीन को चार दशकों से अधिक समय में अपनी पहली युद्ध मौतों का सामना करना पड़ा, शी के शासन को आगे की झड़पों को रोकने के लिए दो टकराव क्षेत्रों में बफर जोन बनाने के लिए सहमत होने पर मजबूर किया। लेकिन अन्य अतिक्रमित क्षेत्रों में, चीनी सेना ने अच्छी तरह से खंदकें खोदी हुई हैं, पेइचिंग अपनी घुसपैठ को वापस लेने या इस तरह के बफर जोन को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। अधिक मौलिक रूप से, शी की आक्रामकता न केवल क्षेत्र को हथियाने के लिए डिजाइन की गई थी, यह औपनिवेशिक शैली की युद्धपोत कूटनीति का भी एक रूप था, जिसका उद्देश्य भारत को आकार में छोटा करना और चीन के एशियाई वर्चस्व का प्रदर्शन करना था।

शी का मानना था कि अगर उसने भारत को चकमा देने के लिए धोखे और आश्चर्य का इस्तेमाल किया और नए लक्ष्य हासिल किए तो यह छोटे एशियाई राज्यों को कतार में खड़ा कर देगा। लेकिन शी रणनीतिक तौर पर यह अनुमान लगाने में विफल रहे कि भारत एक जोरदार सैन्य प्रतिक्रिया देगा, जो चीन की तैनाती से कहीं अधिक होगी। वास्तव में ‘युद्ध-कठोर’ भारतीय सेनाओं के साथ संघर्ष ने चीन को यह अहसास कराया कि उसकी सेना को वियतनाम पर 1979 के विनाशकारी आक्रमण के बाद से युद्ध के बहुत कम अनुभव के साथ, आगे की करीबी लड़ाई से बचना चाहिए। हालांकि, भारत को नीचे गिराने में सफल होने से कहीं दूर, चीन आज खुद को अपने सबसे बड़े पड़ोसी के साथ तनावपूर्ण सैन्य गतिरोध में बंद पाता है।

यदि शी युद्ध के साथ गतिरोध को तोडऩे का प्रयास करते हैं तो उनके द्वारा निर्णायक जीत हासिल करने की संभावना नहीं है। युद्ध के खूनी गतिरोध और दोनों पक्षों को भारी नुक्सान के साथ समाप्त होने की अधिक संभावना है। लेकिन द्विपक्षीय सीमा-शांति समझौतों को तोड़कर शी की आक्रामकता पहले ही अधिक प्रतिरोधी और सैन्य रूप से मजबूत भारत के उदय को निश्चित कर चुकी है। भारत अब चीनी शक्ति का मुकाबला करने के लिए पहले से कहीं अधिक दृढ़ है और चीन के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को सीमित करने के लिए अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी समान मानसिकता वाली शक्तियों के साथ काम करता है।

हांगकांग स्थित साऊथ चाइना मॉॄनग पोस्ट के एक हालिया लेख ने भारत को अलग-थलग करने के लिए चीन को फटकार लगाते हुए कहा, ‘‘अगर पेइचिंग नई दिल्ली को और दूर नहीं धकेलने या भारत को एक स्थायी दुश्मन में न बदलने के बारे में गंभीर है तो इसे सीमा विवाद और गतिरोध की शिकायतों को परे रख कर शुरूआत करनी चाहिए।’’  हालांकि, शी ने खुद को एक कोने में खड़ा कर लिया है- वह न तो पीछे हट सकते हैं और न ही एक खुला युद्ध छेड़ सकते हैं। भारत को भड़काकर, स्पष्ट रूप से वह जितना चबा सकते थे, उससे कहीं अधिक काट चुके हैं।-ब्रह्म चेलानी


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