चिंताजनक कृषि विकास दर, नीति-समर्थित दखल की दरकार

punjabkesari.in Wednesday, Mar 13, 2024 - 05:35 AM (IST)

वित्त वर्ष 2023-24 में देश की अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत बढऩे की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर कृषि क्षेत्र की विकास दर 1 प्रतिशत से भी नीचे होना चिंताजनक है। अप्रैल से दिसंबर तक तीन तिमाहियों में कृषि की 0.8 प्रतिशत विकास दर 31 मार्च को समाप्त होने वाले मौजूदा वित्त वर्ष में 0.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो पिछले 10 वर्ष में सबसे कम होगी। 65 प्रतिशत परिवारों को रोजगार देने वाला देश का कृषि सैक्टर कई चुनौतियों से जूझ रहा है।

परिवारों में बंटती कृषि भूमि व छोटे किसानों की पहुंच से दूर आधुनिक टैक्नोलॉजी के परिणामस्वरूप घटती उपज से खेती घाटे का सौदा है। इस वित्त वर्ष के खरीफ व रबी सीजन के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खाद्यान्न उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 41 लाख टन घटने की आशंका जताई है। देश में कृषि संकट की जड़ें बहुत गहरी हैं। इसके टिकाऊ समाधान के अभाव में संकट बढ़ता जा रहा है। पांच बड़ी समस्याएं भारत के कृषि विकास में रुकावट हैं।

पहला संकट किसानों की घटती आय है। देश के 86 प्रतिशत छोटे किसान परिवारों की आय घट रही है या स्थिर है, जिससे पारंपरिक पारिवारिक खेती में सुधार के लिए पूंजी निवेश नहीं हो पा रहा। परिवार चलाने के लिए ये किसान दूसरे के खेतों में मजदूरी के लिए मजबूर हैं। दूसरा, प्राकृतिक संसाधन, विशेषकर मिट्टी व जल की गिरती गुणवत्ता भविष्य की खेती के लिए बड़ा संकट है। तीसरा, किसानों की युवा पीढ़ी को एक आकर्षक रोजगार के रूप में खेती पर निर्भर रहने में भरोसा नहीं, इसलिए वे छोटी-मोटी नौकरी के लिए शहरों व विदेशों की ओर भाग रहे हैं।

चौथा, जलवायु संकट किसानों की बरसों की कड़ी मेहनत से हासिल की गई खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है। पांचवां, कृषि क्षेत्र की बहुमुखी चुनौतियों का समाधान करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की असरदार व कारगर पॉलिसी नहीं है। कृषि क्षेत्र की तमाम चुनौतियों से पार पाकर किसानों को सक्षम व समृद्ध बनाने के लिए एक सही पॉलिसी के दखल की दरकार है।

कृषि भूमि : भारतीय किसानों को छोटी जोत के कारण बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो दशक में देश में औसत भूमि जोत घटकर 1.08 हैक्टेयर रह गई है, जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। छोटी जोत के रकबे में पैदावार बढ़ाने के लिए नए तरीके अपनाने की जरूरत है। छोटी जोत वाले किसान मिलकर अपने सामूहिक नैटवर्क के दम पर खेती के लिए कर्ज से लेकर खाद, बीज व अन्य संसाधनों पर लागत घटा सकते हैं। इस पहल से कृषि को और अधिक फायदेमंद बनाने में मदद मिल सकती है। छोटी जोत के लिए उपयुक्त आधुनिक टैक्नोलॉजी व मशीनीकरण का उपयोग करने के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में किसानों को जागरूक करने से लाभ मिलेगा।

टैक्नोलॉजी का उपयोग : हमेशा मौसम के मिजाज पर निर्भर रहने वाले किसान खेती पर जलवायु परिवर्तन के असर के कारण आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। इन हालात में कृषि की उत्पादकता बढ़ाने व इसे फायदेमंद बनाने के लिए निर्णायक कदम उठाना जरूरी है। सरकार को रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट (आर. एंड डी.) पर खर्च बढ़ाना चाहिए। देश के कृषि बजट का केवल 0.3-0.5 प्रतिशत आर. एंड डी. पर खर्च होता है, जबकि अमरीका में 2.8, चीन 2.1, दक्षिण कोरिया 4.3 व इसराईल अपने कृषि बजट का 4.2 प्रतिशत आर. एंड डी. पर खर्च करते हैं। आर. एंड डी. में कम निवेश कृषि सैक्टर की कई चुनौतियों से निपटने में एक बड़ी बाधा है।

हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं, जहां टैक्नोलॉजी कृषि क्षेत्र में नई क्रांति ला सकती है। हाइब्रिड टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी, संरक्षित खेती, सटीक खेती, बायो एनर्जी, फसलों का बायोफोॢटफिकेशन, रिमोट सैंसिंग, इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टैक्नोलॉजी आदि के इस्तेमाल को तत्काल बढ़ाना होगा। पूर्वानुमानित विश्लेषण, ड्रोन, सैंसर, आॢटफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) और इंटरनैट ऑफ ङ्क्षथग्स (आई.ओ.टी.) जैसी नई टैक्नोलॉजी किसानों को प्राकृतिक संसाधनों की संभाल के साथ सटीक कृषि पद्धतियों को अपनाकर आपदाओं से निपटने में सक्षम बनाया जा सकता है।

जिन देशों ने ‘जैनेटिकली इंजीनियर्ड’ टैक्नोलॉजी को अपनाया है, वहां के किसानों को उपज बढ़ाने व लागत घटाने में मदद मिली है। भारत का 30 प्रतिशत अनाज उत्पादन अभी भी पारंपरिक किस्मों पर अटका है। समय की मांग है कि देशभर के अधिक से अधिक किसानों तक उन्नत बीज टैक्नोलॉजी की पहुंच हो। विभिन्न कृषि कार्यों से जुड़े तनाव को कम करते हुए खाद, बीज, कीटनाशक और प्राकृतिक संसाधनों के कुशलतापूवर्क प्रयोग से उपज बढ़ाने की राह आसान होगी।
 

कृषि उद्यमी की तरह तैयार करें युवाओं को : देश की 25 प्रतिशत आबादी 15 वर्ष से कम उम्र की है। कृषि व्यवसाय के वैश्वीकरण व खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में कृषि क्षेत्र में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है। बायो-टैक्नोलॉजी और जैनेटिक इंजीनियरिंग जैसी नए युग की टैक्नोलॉजी आधारित शिक्षा से खाद्यान्न उत्पादन में आ रही समस्याओं और उनके समाधान समझने में मदद मिल सकती है। युवा पीढ़ी को सफल कृषि उद्यमियों के रूप में विकसित करने के लिए कृषि के व्यावहारिक कौशल व उद्यमशीलता की क्षमताओं को सबसे अधिक महत्व देना देश के आॢथक व सामाजिक विकास के लिए जरूरी है। खेती की साख बनाए रखने के लिए  इसे युवाओं के बीच एक आकर्षक करियर का विकल्प बनाए जाने की जरूरत है।

‘दॅ फ्यूचर एग्रीकल्चरल लीडर्स ऑफ इंडिया’ (एफ.ए.एल.आई.) कार्यक्रम जैसी पहल युवाओं को खेती से जोडऩे में कुछ सफल रही है। इस पहल ने एक दशक से भी कम समय में किसान परिवारों के करीब 13,000 छात्राओं को खेती से सफलतापूर्वक जुडऩे के लिए सशक्त बनाया है। खेती क्षेत्र में उच्च शिक्षा के साथ इन्हें खेतों के दौरे, किसानों से बातचीत, खेती संबंधी बिजनैस योजनाओं की प्रतियोगिताओं और अत्याधुनिक कृषि व इससे संबंधित व्यवसाय की ट्रेङ्क्षनग सुविधा से यह संभव हो सका है।

निचोड़ यह है कि एक साथ कई चुनौतियों का सामना कर रहे देश के कृषि सैक्टर को संकट से निकालने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जिसमें किसानों, नीति निर्माताओं, कृषि वैज्ञानिकों और प्राइवेट सैक्टर समेत सभी हितधारकों को शामिल करने से ही चुनौतियों से पार पाया जा सकता है। कृषि संबंधी तमाम सरकारी पॉलिसी व प्लाङ्क्षनग को असरदार ढंग से लागू करने में किसानों की भूमिका केवल लाभार्थी तक सीमित रखने की बजाय उन्हें भागीदार बनाए जाने की जरूरत है। - डा. अमृत सागर मित्तल (वाइस चेयरमैन सोनालीका) (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News