‘नए शीत युद्ध’ की लपेट में विश्व

punjabkesari.in Saturday, Nov 07, 2020 - 04:14 AM (IST)

द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों के दौरान जबकि पश्चिम में जर्मनी में जनरल व्हाइट डी एसनहावर  के नेतृत्व में मित्र देशों का अभियान दल और पूर्व में मार्शल जियोॢज जूखोव तथा ईवान कोनेव के नेतृत्व में सोवियत रैड आर्मी अगले संघर्ष के लिए मंच को तैयार कर चुके थे। इन दोनों का मकसद यह तय करना था कि इस युद्ध की समाप्ति पर यूरोप को कौन सा गुट प्रभावित करेगा? लोकतांत्रिक उदारवाद तथा सोवियत माक्र्सवाद 9 नवम्बर 1989 को बॢलन की दीवार के गिरने तक साढ़े 4 दशकों के लिए लागू रहा। 

उन स्मरणीय दिनों के दौरान, जोकि 20वीं शताब्दी के खूनी संघर्ष की समाप्ति के बाद के हैं, ग्रेट ब्रिटेन के युद्ध के समय प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चॢचल ने 5 मार्च 1946 को अमरीका में यह भविष्यवाणी की कि, ‘‘बाल्टिक में स्टेटिन और एड्रियाटिक में ट्राइस्टी तक पूरे महाद्वीप में एक लोहे का पर्दा डाल दिया गया है। वारसा, बॢलन, प्राग, बुड्डापेस्ट, वियना,  बेल्ग्रेड, बुखारेस्ट तथा सोफिया जैसे सभी मशहूर शहर और उनके इर्द-गिर्द रहने वाली आबादी को मुझे सोवियत क्षेत्र कहना चाहिए और ऐसे सभी विषय एक रूप या फिर दूसरे रूप में सोवियत के प्रभाव में हैं। इन्हें मास्को से ही नियंत्रित किया जाता है।’’ यह शायद शीत युद्ध का पहला विवरण था। 

‘शीत युद्ध’ शब्द का पहला इस्तेमाल शायद 16 अप्रैल 1947 के बाद बर्नार्ड बारूच जोकि एक अरबपति वित्त पोषक तथा वुड्रो विल्सन से लेकर हैरी एस. ट्रूमैन जैसे अमरीकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रहे, ने घोषणा की कि ‘हम छले न जाएं।’ बारूच ने कहा कि, ‘‘आज हम शीत युद्ध के मध्य में हैं। हमारे दुश्मन विदेश तथा घर में मिल सकते हैं। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए।’’शीत युद्ध के बारे में यह बात पूरे विश्व में फैल गई। उसके बाद सितम्बर 1947 में अपने ‘न्यूयार्क हेराल्ड ट्रिब्यून’ के एक अंक में प्रसिद्ध स्तम्भकार वाल्टर लिप्पमैन ने इसे एक नया रूप दिया और इस शब्द ने जल्द ही दुनिया के प्रशंसकों को पकड़  लिया। इसके तुरन्त बाद ही इस छद्म युद्ध को लड़ा गया। 

कोरिया, वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया, क्यूबा, लातीनी अमरीका के देशों, अफ्रीका और अंत में अफगानिस्तान से लेकर दुनिया भर के पश्चिमी सहयोगियों ने 45 सालों तक छद्म युद्ध लड़ा। 4 अप्रैल 1949 को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) बनाकर यूरोप के पूर्व युद्ध के मैदान में सुरक्षित कर लिया। अपने मूल आर्टीकल पांच में नाटो ने कहा कि, ‘‘सभी पक्ष यह तय करते हैं कि किसी एक के खिलाफ यूरोप या फिर उत्तर अमरीका में सैन्य हमले को सबके खिलाफ हमला माना जाएगा।’’ सोवियत संघ ने अपनी सामूहिक सुरक्षा वास्तुकला के साथ इसका पालन किया।  और 14 मई 1955 को वारसा पैक्ट हुआ। 1 जुलाई 1991 को वारसा पैक्ट को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और सोवियत यूनियन इसके बाद रेत में बिखर गया। 

चूंकि मित्र देश इतिहास के अंत का जश्न मना रहे थे। फरवरी 1989 को क्षितिज पर एक नई शक्ति उभर कर आई जिसका नाम चीन था। 1979 को चीन ने माओ त्से तुंग के माक्र्सवाद को डेंग शियाओपिंग के अधिनायकवादी पूंजीवाद के शासन माडल में बदलना शुरू कर दिया। चीन तीन दशकों के अंतराल में महान शक्ति आकांक्षाओं के साथ वैश्विक मंच पर एक खिलाड़ी के रूप में उभरा। हालांकि नवम्बर 2012 में शी जिनपिंग द्वारा कार्यालय में बैठने के बाद चीन ने अपने पंख फैलाने शुरू कर दिए। 

वैश्विक प्रभुत्व के लिए रणनीति के केंद्र में कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में 7 सितम्बर 2013 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा औपचारिक रूप से बैल्ट एंड रोड पहल (बी.आर.आई.) रखी गई। चीन ने कोरोना वायरस युद्ध के तरीकों का पूरा फायदा उठाया। निश्चित तौर पर कोरोना वायरस को चाइना वायरस के नाम से पुकारा जाना चाहिए। 

चीन के साथ शीत युद्ध होने का मतलब आर्थिक, सैन्य, साइबर, स्पेस, संस्कृति तथा सभ्यता के रूप में घिर जाना है। 21वीं शताब्दी के अगले 3 दशकों में चीन का प्रयास अपनी बेइज्जती का बदला लेने का होगा। वैश्विक प्रतिक्रिया अभी तक कमजोर हो चुकी है। एशिया में क्वाड के रूप में अमरीका, जापान, आस्ट्रेलिया तथा भारत का गठजोड़ है। लोकतंत्र, उदारवाद तथा वैश्विक आदेशों पर आधारित नियमों को मानने वाले राष्ट्रों को निश्चित तौर पर अब जागना होगा। ड्रैगन हमारा अतिक्रमण करने वाला है।-मनीष तिवारी


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