क्या राजनीति में ‘अपशब्दों’ का प्रयोग बंद होगा

punjabkesari.in Tuesday, Dec 12, 2017 - 04:07 AM (IST)

आज राजनीतिक विरोधियों व कट्टर दुश्मनों के बीच की लाइन धूमिल हो गई है और इस बात को गुजरात विधानसभा चुनावों में चला चुनाव प्रचार बखूबी बयान करता है जिसमें गाली-गलौच का खूब प्रयोग हुआ है। 

शिष्टता और गरिमा की बुनियादी सीमाएं लांघी गईं तथा स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता के बीच सम्मान और भाईचारा समाप्त हुआ। महात्मा गांधी की भूमि में हर चीज एक खेल बन कर रह गई है। देशभक्त से लेकर देशद्रोही। कांग्रेस अपने जनाधार के बारे में भ्रमित है। उसे चुनावी मुद्दे का पता नहीं है और वह हर कीमत पर अपनी विरोधी भाजपा की सत्ता में वापसी को रोकना चाहती है इसलिए वह अपने चिर-परीक्षित फार्मूले गाली-गलौच करने और जातिवाद पर उतर आई। 

दूसरी ओर भगवा संघ के लिए यह अपने गुज्जू पोस्टर ब्वॉय प्रधानमंत्री मोदी हेतु करो और मरो की लड़ाई है। कांग्रेस के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी को यह कहकर एक बड़ा विवाद पैदा किया, ‘‘यह आदमी बहुत नीच किस्म का है। इसमें कोई सभ्यता नहीं है और ऐसे मौके पर इस किस्म की गंदी राजनीति करने की क्या आवश्यकता है।’’ अय्यर ने यह टिप्पणी दिल्ली में अम्बेदकर इंटरनैशनल सैंटर का उद्घाटन करते हुए गांधी परिवार पर किए गए हमले के प्रत्युत्तर में की। हालांकि जब उनकी सार्वजनिक रूप से भत्र्सना की गई और राहुल ने उन्हें पार्टी से निलम्बित किया तो उन्होंने अपने इस बयान पर खेद व्यक्त किया। राहुल ने उन्हें खूब फटकार लगाई किंतु तब तक गुजरात चुनाव में पार्टी के लिए जो नुक्सान होना था, वह हो चुका था। 

इसका प्रत्युत्तर मोदी ने यह कहकर दिया, ‘‘उन्होंने मुझे गाली दी या आपको? उन्होंने मुझे गाली दी या गुजरात को? उन्होंने भारत के सभ्य समाज को गाली दी या मुझे? वह मुझे नीच कह सकते हैं किंतु मैं ऊंचे कार्य करता रहूंगा।’’ यही नहीं, मोदी ने कहा, ‘‘कांग्रेस के एक नेता ने अपनी पाकिस्तान यात्रा पर भारत और पाकिस्तान के बीच शांति सुनिश्चित करने हेतु मुझे रास्ते से हटाने की सुपारी दी। यह कांग्रेस के मुगल मूल्यों का उदाहरण है जो जातियों में भेद करना बताता है तथा उच्च और नीची जातियों की बात करता है।’’ इसमें नई बात कौन-सी है? क्या हम राजनीतिक विरोधियों और राजनीतिक दलों के बीच तू-तू, मैं-मैं, गाली-गलौच आदि के आदी नहीं हो गए हैं? क्या हम राजनीतिक विरोधियों की काली करतूतों पर से आए दिन पर्दा हटते नहीं देखते हैं? 

आज हम अय्यर को दोषी बता सकते हैं किंतु क्या हम भूल गए कि कांग्रेस ने 2002 में गोधरा दंगों के बाद मोदी को एक से बढ़कर एक गाली दी? सोनिया ने उन्हें 2007 के चुनावों में मौत का सौदागर कहा। इसके अलावा उन्हें यमराज, रावण, गंदी नाली का कीड़ा, रैबीज ग्रस्त, गंगू तेली अनेक नामों से पुकारा गया। किंतु प्रश्न उठता है कि क्या इस सबके बावजूद इन अपशब्दों का प्रयोग बंद होगा? इसकी संभावनाएं कम ही दिखती हैं क्योंकि सभी एक ही रंग से रंगे हुए हैं। आज अय्यर के बयान से भाजपा परेशान हो किंतु वह भी इस खेल में बराबर की दोषी है। एक बार मोदी ने सोनिया के लिए कहा था कि मुझ पर इटली का कीचड़ नहीं चिपक पाएगा।

सोनिया हिन्दुओं से घृणा करती हैं। वह हिन्दुओं के विरुद्ध बोलती हैं और जब हिन्दू समुदाय पर अत्याचार होते हैं तो मौन रहती हैं। एक अन्य नेता ने मोदी के लिए कहा था कि मोदी एक आतंकवादी हैं, एक पागल हैं, वह लोकतंत्र के लिए आपराधिक चुनौती हैं और गुजरात हिन्दू आतंकवादियों का केन्द्र बन गया है।2009 के चुनाव प्रचार के दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता अडवानी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निकम्मा कहा था। विश्व हिन्दू परिषद के कट्टरवादी तोगडिय़ा ने सोनिया को इटालियन कुतिया कहा तो द्रमुक के करुणानिधि ने राम सेतु मुद्दे पर भगवान राम को शराबी कहा था। वरुण गांधी ने मुसलमानों के विरुद्ध घृणा भरा भाषण दिया था। भाजपा के स्व. नेता प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी की तुलना क्लिंटन की मोनिका लेविंस्की से की थी जिसके चलते कांग्रेस ने कुंवारे पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के विरुद्ध औलाद नहीं, दामाद का अभियान छेड़ा था। 

समाजवादी नेता अमर सिंह द्वारा कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध और कांग्रेस नेताओं द्वारा उनके विरुद्ध दिए गए बयान हमेशा सुर्खियों  में रहे हैं। भाजपा के एक नेता द्वारा बसपा की मायावती को वेश्या कहा गया और यहां तक कहा गया कि जब एक वेश्या किसी आदमी के साथ समझौता करती है तो वह उससे बंधी रहती है किंतु उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री टिकट बेचने के मामले में किसी से नहीं बंधतीं। यदि उन्होंने कोई टिकट 1 करोड़ में बेच दिया और फिर उसके 2 करोड़ मिल जाएं तो वह उसे 2 करोड़ वाले को बेच देंगी। भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों के बीच यह खेल हमारी राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालता है और बताता है कि हमारी राजनीति कितनी गिर गई है जिसमें गलत और सही के बीच कोई अंतर नहीं है। 

हमारे राजनेता अपनी सनक और आवश्यकतानुसार नैतिकता में गिरावट लाने व अपने लोभ को बढ़ाने में महारत हासिल कर चुके हैं जिसमें गाली-गलौच करना एक नया राजनीतिक संवाद बन गया है। हर पार्टी और हर नेता द्वारा इसका प्रयोग किया जाता है तथा सभी अपने-अपने अनुसार राजनीतिक सौहार्द की परिभाषा देते हैं। वोट खींचने के लिए वे नए-नए मंत्र देते हैं जिनमें वे गरिमा और शालीनता की कोई परवाह नहीं करते हैं। क्या अपशब्दों का प्रयोग लोकतंत्र का आधार बनेगा? कब तक हम ऐसी गाली-गलौच को सहते रहेंगे? भारत और इसके हित में क्या है? 

यह सच है कि आप कह सकते हैं कि चुनावों में सब कुछ जायज है किंतु खासकर जब प्रधानमंत्री पद की बात आती है तो हमें एक लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए क्योंकि वह राष्ट्र की शक्ति का प्रतीक है और उसके पद की गरिमा हमारे लोकतंत्र के लिए सर्वोच्च है। भाजपा, कांग्रेस और विपक्षी दलों को इस बात को ध्यान में रखना होगा कि चुनाव प्रचार के मुद्दों पर एक गरिमापूर्ण वाद-विवाद बनाया जाए, न कि उसे व्यक्तित्व केन्द्रित किया जाए।-पूनम आई. कौशिश


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