क्या कसौटी पर खरे उतरेंगे ‘गुरु नानक चेयर’ को स्थापित करने के कप्तानी दावे

Saturday, Nov 16, 2019 - 02:11 AM (IST)

श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की ओर से प्रथम पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के नाम पर 11 यूनिवर्सिटियों में चेयर स्थापित करने की घोषणा की गई। इनमें से एक यूनिवर्सिटी ईरान की है। 7 पंजाब की तथा 3 भारत के अलग-अलग राज्यों की। इन चेयर के माध्यम से गुरु नानक देव जी के जीवन तथा उनकी विचारधारा के बारे में शोध किया जाएगा। 

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के अनुसार गुरु नानक चेयर पंजाबी यूनिवर्सिटी (पटियाला), आई.के. गुजराल पी.टी.यू. (कपूरथला), महाराजा रणजीत सिंह पंजाब टैक्नीकल यूनिवर्सिटी (बठिंडा), लवली प्रोफैशनल यूनिवर्सिटी (फगवाड़ा), चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी (घड़ुआं), चितकारा यूनिवर्सिटी (राजपुरा), अकाल यूनिवर्सिटी (तलवंडी साबो) के अलावा आई.टी.एम. यूनिवर्सिटी (ग्वालियर), आर.डी.के.एफ. यूनिवर्सिटी (भोपाल), जे.आई.एस. यूनिवर्सिटी (पश्चिम बंगाल) तथा यूनिवर्सिटी आफ रिलीजन (ईरान) में स्थापित की जाएंगी। 

क्या ये सिर्फ राजनीतिक घोषणाएं हैं 
अब कुछ इन सरकारी घोषणाओं के तथ्यों पर नजर दौड़ाते हैं। पहला यह कि क्या यह सिर्फ राजनीतिक घोषणा है? क्या इसके शैक्षणिक मायने भी हैं? क्या चेयर में शोध हवा में किए जाएंगे? क्या प्राइवेट यूनिवर्सिटियां इतनी समर्थ हैं कि वे शोध करवा सकें? क्या इनमें से कुछ यूनिवर्सिटियां वे नहीं जो अपने अस्तित्व की लड़ाई ही लड़ रही हैं? क्या पहले से चल रही गुरु नानक चेयर, गुरु नानक कालेज, लाइब्रेरियां या अन्य शोध केन्द्रों की हालत बारे मुख्यमंत्री पंजाब के पास कोई रिपोर्ट है? उनकी हालत के बारे में कभी पंजाब सरकार ने क्या ध्यान दिया है? 

चेयर के तथ्य पर आने से पहले एक हैरान करने वाले तथ्य से वाकिफ होना बहुत लाजिमी है। 1969 में श्री गुरु नानक साहिब का 500वां प्रकाश पर्व भी यहीं पर बड़ी धूमधाम तथा श्रद्धा से मनाया गया था। उन समारोहों की विशेषता यह थी कि शिक्षा के क्षेत्र को लेकर पंजाबियों की ङ्क्षचता तथा ङ्क्षचतन प्रचंड दिखाई दिया था। सरकारी मंतव्य भी शिक्षा बारे नजर आ रहे थे। यह वही वर्ष है जब पंजाब में गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी बनती है। आज हम इस यूनिवर्सिटी की प्राप्तियां गिनवा सकते हैं। 

यह बता सकते हैं कि यह एक दूर अंदेशी वाला फैसला था जिसका जिम्मा पंजाब के छात्रों ने लिया। यहां पर सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। फिर इसी वर्ष में पंजाब के अंदर करीब 31 गुरु नानक कालेज खुले। पूरे पंजाब भर में इन कालेजों में लोगों ने अपना बहुत सहयोग दिया। शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों तथा अध्यापकों ने लोगों से मिलकर इन कालेजों को चोटी पर पहुंचाया। आज हम इन कालेजों के बारे में सर्वेक्षण कर सकते हैं तथा समाज प्रति इनके योगदान के बारे में तथ्य ढूंढ सकते हैं। इनमें से कुछ कालेज तो लड़कियों की शिक्षा हेतु बनाए गए थे। जिनका महत्व उस समय ही नहीं बल्कि आज भी उतना ही है। लाइबे्ररियां खोली गई थीं। 

अब 50 साल हो चुके हैं, यह ङ्क्षनदनीय बात है कि किसी ने भी इन लाइबे्ररियों या फिर शैक्षणिक अदारों की बात ही नहीं पूछी। नए तो क्या खोलने थे। हमें पता होना चाहिए कि सरकार की अनदेखी के कारण ही हमारा आज का युवक विदेश में पढऩे के लिए जा रहा है। इसके साथ करोड़ों का निवेश भारत से बाहर जा रहा है। गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर शिक्षा की, अध्ययन की, खोज की बात न किया जाना दुखदायी है। हम 50 वर्ष पीछे की ओर ही गए हैं, आगे तो क्या जा पाएंगे। 

पहले से पढ़ी सामग्री सम्भाल ली जाए तो वह ही काफी 
एक और बात है कि किसी भी चेयर को शोध करने के लिए सिर्फ शोधकत्र्ताओं की जरूरत अनिवार्य नहीं होती। पैसे की ही जरूरत नहीं होती। उसके लिए लाइबे्ररियां स्थापित किया जाना जरूरी होता है। वह सामग्री एकत्रित किया जाना लाजिमी होता है जिसके बारे में शोध होना है या फिर करना है। अब यदि हम केवल गुरु नानक देव जी के बारे में ही बात करें तो हमें फिर उसी वर्ष यानि कि 1969 में जाना पड़ेगा, जिसके बाद गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी की गुरु नानक चेयर के चेयरमैन प्रो. प्रीतम सिंह ने जोर देकर शोधकत्र्ताओं को कहा कि तुम सभी उन स्थानों पर निकल जाओ जहां पर बाबा जी उदासियों के दौरान रहते थे या फिर वहां से गुजरते थे। 

गुरु जी से संबंधित तथ्यों को एकत्रित करके लेकर आओ। यह निंदनीय बात है कि 50 साल से वह सामग्री बस्तों में बंद है। उनको खोलने वाला कोई नहीं, शोध तो बाद की बात है। आखिरकार हमारी यूनिवर्सिटियां भी क्यों नहीं इन तथ्यों को उजागर करतीं कि सरकार तक मामले सही दिशा में जाएं। क्यों हमारे प्रबंधक इन मामलों के बारे में चुप्पी साधे रहते हैं। क्या केन्द्रीय लाइब्रेरी पटियाला में पड़े अमूल्य तथ्य शोधकत्र्ताओं को दिए नहीं जाने चाहिएं ताकि वे इस पर कार्य कर सकें। ऐसे तो ये पड़े-पड़े गल-सड़ जाएंगे। क्या चेयरों की स्थापना से पूर्व यह कार्य करना लाजिमी नहीं। 

हम तो सिर्फ राजनीतिक घोषणाएं करते हैं
अब अगर चेयरों के बारे में जानना है तो हमारी बड़ी यूनिवर्सिटियों की ओर देख लिया जाए। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ की शेख बाबा फरीद चेयर, भाई वीर सिंह चेयर, भगत रविदास चेयर, शहीद भगत सिंह चेयर सब ज्यूं की त्यूं बंद पड़ी हैं। वहां पर कोई शोध कार्य नहीं हो रहा। कोई कार्यालय नहीं है, कोई स्टैनो नहीं, कोई सहायक शोधकत्र्ता नहीं। सिर्फ नाममात्र किसी प्रोफैसर को इसका जिम्मा सौंप रखा है। क्या यह सरकार के ध्यान में नहीं। पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला में भाई वीर सिंह चेयर, करतार सिंह सराभा चेयर, महाराणा प्रताप चेयर, डा. रविंद्र सिंह रवि चेयर,भगवान वाल्मीकि चेयर सब बंद पड़ी हैं। यहां पर कभी-कभी कोई समारोह करवा लिया जाता है, बस इसके अलावा कुछ नहीं। कैप्टन सरकार इसको फिर से शुरू करवाए। उसके बाद बाकी की भी खोली जाएं। मगर ऐसा नहीं होगा। हम तो राजनीतिक घोषणाएं करते हैं क्योंकि लोगों को पिछली बात भूल चुकी होती है, वे तो ताजी बात का हुंगारा भरते हैं। आपकी घोषणाओं का महत्व क्या है, हम यह कभी नहीं सोचते। 

अब जो ये चेयर बनेंगी या फिर बन चुकी हैं इनका मंतव्य शैक्षणिक नहीं है। यह राजनीतिक अहं से डिजाइन होती है। हमारा जो 70 वर्ष का अनुभव है वह शैक्षणिक वाला नहीं है। हम कोई शैक्षणिक शख्सियत पैदा ही नहीं कर पाए। कोई यूनिवॢसटी उस स्तर का दावा नहीं कर सकती जो यूनिवर्सिटियों का फर्ज बनता है। हमारी प्रवृत्ति ही शोध से परे की है। हम आजादी के बाद सैंकड़ों लाइब्रेरियां बंद कर चुके हैं विशेषकर पिछले तीन दशकों के भीतर। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार इन्हीं अदारों में है। ये व्यापारिक अड्डे बन चुके हैं। हम मात्र मूकदर्शक हैं। जिसको कभी भी यह सैलाब निगल सकता है।-देसराज काली (हरफ-हकीकी)

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