क्या रुके हुए कृषि सुधारों को बढऩे का एक और मौका मिलेगा

Saturday, Apr 09, 2022 - 06:14 AM (IST)

भारतीय जनता पार्टी के प्रभाव में उत्तर प्रदेश के आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक, कुछ प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री तथा अन्य लोग यह सोच रहे हैं कि आॢथक सुधारों की एक गंभीर खुराक के लिए जमीन तैयार है। 2014 के चुनावों में बड़ी जीत के बाद हुई प्रत्येक चुनावी जीत के दौरान यह एक दिनचर्या की बात है। इस समय यह सवाल किए जा रहे हैं कि क्या भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए रुके हुए सुधारों को एक और मौका मिलेगा? 

उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद प्रधानमंत्री के आंतरिक सर्कल में एक कैबिनेट मंत्री के साथ एक ऑफ रिकार्ड बातचीत में पता चलता है कि संसद द्वारा निरस्त कृषि कानूनों पर फिर से विचार नहीं किया जाएगा। यह मंत्री अपनी बात को लेकर स्पष्ट थे कि पिछले नवम्बर में कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों के दबाव में सरकार का रुख इस साल के चुनाव परिणामों से अप्रभावित रहा इसलिए जब तक राज्य सरकारें बात को आगे नहीं बढ़ातीं तब तक कृषि सुधार समाप्त ही रह सकते हैं। 

तकनीकी रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को एक न्यूनतम मूल्य माना जाता है, जिसके नीचे बाजार  मूल्य नहीं गिरना चाहिए लेकिन एम.एस.पी. भारत में फ्लोर प्राइज सिस्टम की तरह व्यवहार नहीं करता है। इसकी बजाय यह एक बाजार प्रतिस्थापन मूल्य बन गया है क्योंकि साल-दर-साल एम.एस.पी. राजनीतिक कारणों से बाजार समाशोधन कीमतों से ऊपर निर्धारित किए जाते हैं। किसान गलती से मानते हैं कि उच्च एम.एस.पी. उनके लिए अच्छे हैं यह महसूस किए बिना कि सरकारी वसूली एजैंसियों की दया पर वे निर्भर रहते हैं जोकि गैर-प्रभावी, अयोग्य तथा आमतौर पर भुगतान में देरी करती हैं। 

प्रत्येक मौसम के बाद किसान गेहूं और चावल का अधिक उत्पादन करते हैं जिनके परिणामस्वरूप अधिकता होती है और इसलिए बाजार की कीमतों में गिरावट आती है। अतिरिक्त आपूर्ति को बाहर जाने देने के लिए निर्यात नीतियां बहुत ही दोषपूर्ण हैं और दिल्ली में सरकारें केवल किसान हितैषी दिखने और वोट बैंक की राजनीति को बनाए रखने के लिए एम.एस.पी. में बढ़ौतरी कर रही हैं। बाजार से संकेत मिलता है कि किसान को क्या और कितना उत्पाद करना है। किसानों को फसलों में विविधता लाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। यदि राजनेता किसानों की मदद करने के लिए उत्सुक हैं तो उन्हें उनकी आय के समर्थन से इस बात को आगे बढ़ाना चाहिए। 

अलग से उपभोक्ता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) खाद्यान्न के स्थान पर नकद हस्तांतरण प्राप्त करने का विकल्प दिया जाना चाहिए। इससे अवांछित पी.डी.एस. खाद्यान्न का मुद्रीकरण समाप्त हो जाएगा जो पूरे भारत में व्याप्त है। लाभाॢथयों को निम्र  श्रेणी का खाद्यान्न प्राप्त हो रहा है जिसे उन्होंने कभी नहीं मांगा। वे उन्हें भेज देते हैं और कभी-कभी तो मवेशियों के चारे के रूप में भी दे देते हैं। ऐसा करने से केंद्र को भारत की वास्तविक खाद्य आवश्यकताओं का अंदाजा भी हो जाएगा। 

किसानों को उनकी ऊपज के भुगतान में 2 अलग-अलग हिस्से शामिल हो सकते हैं। एक तो बाजार स्थिरीकरण मूल्य और दूसरा आय हस्तांतरण। पहले वाले को पिछले वर्ष के औसत मूल्य से अधिक नहीं होना चाहिए। स्थिरीकरण मूल्य को कैबिनेट की मंजूरी की आवश्यकता भी नहीं होनी चाहिए। इसे राजनीतिक विचारों से मुक्त कर देना चाहिए। इसे खरीद एजैंसी द्वारा सी.ए.सी.पी. अनुमोदन के साथ निर्धारित किया जाना चाहिए। 

किसानों को आय हस्तांतरण का दूसरा घटक पानी, बिजली, बीज, उर्वरक इत्यादि जैसी सभी कृषि सबसिडी और सरकारी स्कीमों को भी शामिल करना चाहिए। आय हस्तांतरण के स्तर को समायोजित किया जा सकता है जिसे राजनेता चाहते हैं। इन सुधारों से यह सुनिश्चित हो सकता है कि एक स्वस्थ कृषि अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक बाजार संकेतों को बाधित किए बिना किसानों को वह आय समर्थन प्राप्त हो जिसके वह हकदार हैं। (लेखक ‘द लास्ट डैकेड’ 2008-2018 की लेखिका है)-पूजा मेहरा

Advertising