क्या मोदी की पार्टी सफलता हासिल कर पाएगी

punjabkesari.in Friday, May 17, 2024 - 05:14 AM (IST)

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बी.एस.ई.) और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एन.एस.ई.) ने बात की है। बी.एस.ई. का सैंसेक्स, जो लोकसभा चुनाव के पहले दौर के बाद लडख़ड़ाना शुरू हुआ, तीसरे दौर के बाद 1000 अंकों की जोरदार गिरावट के साथ गिर गया! सैंसेक्स और बी.एस.ई. का निफ्टी राजनीतिक भाग्य के लिए काफी विश्वसनीय मार्गदर्शक हैं। शुरूआत में सैंसेक्स बहुत तेज गति से आगे बढ़ा और फिर स्थिर गति पर आ गया, जब तक कि दस साल बाद यह आकाश की ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच गया, जब मोदी ने घोषणा की कि वह 18वीं लोकसभा में 400 सीटों का लक्ष्य बना रहे हैं। 

रिलायंस इंडस्ट्रीज, एच.डी.एफ.सी. बैंक, एल एंड टी और टी.सी.एस. जैसे शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट। सभी बाजार अग्रणी, अशुभ के अलावा और कुछ नहीं हैं। बाजार को लगता है कि मोदी/शाह की जोड़ी संकट में है। मुझे संदेह है (कृपया ध्यान दें कि मेरा संदेह बस इतना ही है- एक संदेह) कि मतदान के रुझान ‘एग्जिट’ पोलस्टर्स की सेना की सेवा करने वाले पैदल सैनिकों से प्राप्त हुए होंगे। उन्हें ई.सी.आई. द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है, अपने निष्कर्षों को प्रचारित करने से लेकर डेढ़ महीने की लंबी लड़ाई के अंतिम दिन अंतिम मतदान होने तक। 

इस बार मतदाताओं को उत्साहित करने में भाजपा की असमर्थता हमारे शहरों और कस्बों की सड़कों पर घूम रही है। यह भी स्पष्ट है कि इस बार कोई ‘लहर’ नहीं है। चुनाव के समय किसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के नेता को कैद करने जैसी अनुचित, असभ्य रणनीति का इस्तेमाल उस घबराहट का एक और स्पष्ट संकेत है, जो हावी हो गई है। यहां तक कि अयोध्या में राम मंदिर के शानदार उद्घाटन से भी कोई मदद नहीं मिली, जैसा कि अब हम बाद में देखते हैं। जिसे हम ‘देशी’ लोग ‘मसाला’ कहते हैं, उसे कथा में जोडऩे के लिए, जमानत पर रिहा होने पर अरविंद केजरीवाल ने जो पहला आरोप लगाया था, वह यह था कि नरेंद्र मोदी अगले साल सितंबर में 75 साल की उम्र में पद छोड़ देंगे और उनके बाद अमित शाह प्रधानमंत्री बनेंगे। इस संभावना ने, जिसकी भविष्यवाणी सामान्य आदमी ने पहले ही कर दी थी, भाजपा के होश उड़ गए। उनमें से चार बड़े लोग, जिनमें खुद शाह और राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण तथा जे.पी. नड्डा शामिल थे, ने मुखर होकर इसका विरोध किया। उन्होंने दावा किया कि मोदी अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। 

ऐसा करके उन्होंने दो परिकल्पनाओं की पुष्टि की, जिन पर अक्सर पार्लरों और बाजारों में बहस होती थी और हमारे संदेह दूर हो गए। पहली यह कि मोदी का यह निर्देश कि नेताओं को 75 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होना चाहिए, केवल उनके सहयोगियों पर लागू होता है, उन पर लागू नहीं होता। दूसरी, जो हम नागरिकों के लिए अधिक प्रासंगिक है, वह यह कि अमित शाह शीर्ष पद के लिए लोगों की पसंद या यहां तक कि भाजपा की पसंद नहीं हैं। जैसा कि हमने अभी देखा है, एक कट्टर शत्रु (केजरीवाल) द्वारा उस संभावना के उल्लेख से ही खतरे की घंटी बजने लगी है। अरविंद केजरीवाल 2 जून को तिहाड़ लौटने वाले हैं। उस तारीख से पहले उन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से कुछ और सच्चाई जानने के लिए अपनी ‘आप’ पार्टी से कुछ और खरगोश निकालने चाहिएं। केजरीवाल की भविष्यवाणी पर पर्दा डालने के लिए चारों को एक-दूसरे से भिड़ते हुए देखना सुखद था। 

जब केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खन्ना और दत्ता की बैंच ने जमानत पर रिहा किया तो एक भाजपा नेता ने यहां तक सुझाव दिया कि माननीय न्यायाधीश चल रहे लोकसभा चुनावों में पक्ष ले रहे थे। वह अनुमान बहुत खराब स्वाद का था। न्यायाधीशों ने विस्तार से बताया कि उन्होंने ऐसा निर्णय क्यों लिया। न्यायाधीशों ने जो कहने से परहेज किया, लेकिन शायद उनके दिमाग में यह बात थी, कि ई.डी. आम आदमी पार्टी जैसी उभरती हुई पार्टी के नेता की गिरफ्तारी के लिए लगभग 2 साल तक इंतजार करके चुनाव में पक्ष ले रही थी। ई.डी. ने गिरफ्तारी से पहले केजरीवाल को 9 बार सम्मन जारी किया था। तीसरे सम्मन का अनादर होने के बाद यह गिलोटिन लगा सकती थी लेकिन नहीं, ई.डी. का इरादा स्पष्ट रूप से अधिक बड़ा था। चुनाव की अवधि के लिए केजरीवाल को रिहा करके न्यायाधीशों ने गलती सुधारी, जो ई.डी.ने की थी। बैंच के फैसले ने न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों का विश्वास बहाल किया, जो दुर्भाग्य से हाल ही में सवालों के घेरे में था। एक अन्य प्रतिष्ठित संस्था, ई.सी.आई. को सर्वोच्च न्यायालय से सीख लेनी चाहिए और एक स्वतंत्र, निष्पक्ष निकाय के रूप में अपना सम्मान और प्रतिष्ठा हासिल करनी चाहिए जो केवल भारत के संविधान और अपनी अंतरात्मा की आवाज पर काम करता है। 

इस देश के वरिष्ठ नागरिक के रूप में प्रधानमंत्री को मानक तय करने चाहिएं। राजस्थान में सभी मुसलमानों को घुसपैठिए और बच्चे पैदा करने वाली मशीन करार देने वाला उनका आक्रोश चुनावी दौर में सुने गए सबसे खराब नफरत भरे भाषणों में से एक था। इस सारी बुराई के बीच, कर्नाटक में भाजपा के सांझेदार, पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की जद (एस) ने उस महत्वपूर्ण (भाजपा के लिए) राज्य के चुनावी परिदृश्य में मसाले का एक मोटा टुकड़ा डाला। जब बुजुर्ग के पोते प्रज्वल की कहानी ने मोदी की पार्टी को तोड़ दिया तो उन्होंने तुरंत ही खुद को उस युवा व्यक्ति के समर्थकों से दूर कर लिया। लेकिन कुछ दाग तो रह ही जाएंगे। 

यदि प्रज्वल रेवन्ना का कथित पलायन पर्याप्त नहीं था, तो निराशा का प्याला तब भर गया जब राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा पश्चिम बंगाल में एक वरिष्ठ संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए। हालांकि राज्यपाल उत्तराखंड के अति-सैक्सी बूढ़े कांग्रेसी की तरह ‘फ्लैगरेंटे डेलिक्टो’ में नहीं फंसे थे, जो तब आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे, जब उनके बिस्तर पर दो महिलाओं की तस्वीर खींची गई थी। यदि आर.एस.एस., जैसी कि अफवाह है, का राज्यपालों की नियुक्ति में अधिकार है, को आनंद बोस को लोकसभा चुनाव की शेष अवधि के लिए कम सक्रिय रहने की सलाह देनी चाहिए, ताकि भाजपा को शॄमदा न होना पड़े, जितना वह पहले ही कर चुके हैं, उससे कहीं अधिक। जिन केंद्रों पर मतदान के 4 दौर पूरे हो चुके हैं, वहां से खबरें उस पार्टी के लिए उत्साहजनक नहीं हैं, जिसने ए.डी.ए. के लिए 400 की संख्या की बात कही थी और अकेली भाजपा् के लिए 370 की । फिलहाल, वह करीबी मुकाबले में मामूली जीत के लिए पूरी तरह से बैकफुट पर है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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