क्या तमिल राजनीति में चलेगा कमल हासन का ‘सिटीजन के’ ब्रांड

punjabkesari.in Friday, Nov 17, 2017 - 02:04 AM (IST)

तमिलनाडु के सिने सुपरस्टार कमल हासन जिन्होंने स्वयं को ‘सिटीजन के’ ब्रांड के तहत एक अलग किस्म के राजनीतिज्ञ के तौर पर प्रमाणित करके राजनीति में कदम रखा है। यह कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी कि तमिलनाडु की राजनीति की दिशा आगामी महीनों में बदल जाएगी। 

हालांकि कमल में सफलता के सभी गुण एवं विलक्षणता के तत्व हैं। वर्तमान में राज्य की राजनीति दिवंगत जयललिता के निधन के पश्चात मंझधार में है। हालांकि दूसरी ओर लोकप्रिय अभिनेता रजनीकांत भी जनसाधारण में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में हैं। इससे राज्य के वरिष्ठ नेता करुणानिधि की पार्टी डी.एम.के. एवं जयललिता की अन्ना डी.एम.के. बीच के महासंग्राम को नया रोचक मोड़ देगा। उक्त दोनों पार्टियों का अपना अच्छा-खासा जनाधार नैटवर्क है। तमिलनाडु की राजनीति दशकों से इन्हीं दोनों पटलों के आसपास घूमती रही है। इस चरण पर यह कहना कठिन है कि इन दोनों मशहूर अभिनेताओं की एंट्री क्या परिवर्तन लाती है या मौजूदा समीकरणों को कैसे बिगाड़ती है? हम जानते हैं कि राजनीति सम्भव को असम्भव करने की एक कला है। 

यह एक तरह से सुरक्षित भी हो सकती है क्योंकि आज की पीढ़ी के युवा मतदाता राजनीतिक संस्कृति एवं आदर्शों के सभी तथ्यों में बेहतरी के लिए बदलाव की ओर देख रहे हैं। नई राजनीति की पठकथा रूढि़वाद पर आधारित नहीं है। यह लोगों से किए वायदों को निभाने एवं अच्छी कारगुजारी सुनिश्चित करना चाहती है। इस संबंध में तमिलनाडु की राजनीति बेहतरी के लिए आशावादी ढंग से बदलाव के लिए तैयार है। कमल हासन को एक लाभ यह है कि उनकी जनसाधारण में छवि बहुत साफ है, कोई घोटाला या स्कैंडल नहीं है।

आज की धूमिल राजनीति में यह बहुत बड़ा तथ्य है। तमिल राजनीति का इस संबंध में ट्रैक रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है, चाहे द्रमुक हो या अन्नाद्रमुक। इसलिए अब तमिलनाडु के राजनीतिक रंगमंच में नया सितारा आया है। राज्य की संकीर्ण राजनीतिक अवस्थापनाओं में स्थान बनाना इतना भी आसान नहीं होगा। सैद्धांतिक रूप से केजरीवाल ऐसा कर पाए थे। परंतु चेन्नई केजरीवाल की दिल्ली नहीं है। तमिलनाडु में लोगों का रुख कड़ा है इसलिए यह कमल व रजनीकांत दोनों के लिए ही मुश्किल होगा। 

63 वर्ष की आयु में कमल हासन ने लोगों में अपने दिमाग से सोचने वाले व्यक्ति के तौर पर अपनी छवि बनाई है। वह अपनी राजनीतिक मजबूती लोगों के मन से बनाना चाहते हैं। वह लोगों की समस्याओं और अपेक्षाओं को समझने के पश्चात औपचारिक रूप से अपनी पार्टी भी बनाएंगे। विविध अभिनय करने में माहिर कलाकार कमल परम्परागत हिंदू परिवार से संबंध रखते हैं। वह स्वयं को ‘तर्कवादी’ कहते हैं। मेरा मानना है कि हिंदुत्व व तर्कवाद दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। परम्पराओं में अंधविश्वास, छुआछूत जैसी कुछ कुरीतियों ने हिंदू विचारधारा को प्रभावित किया है परंतु ये तथ्य विचारों की वैदिक शुद्धता एवं मूल्यों की समझ को प्रदूषित नहीं कर सकते। 

कमल को एक लाभ नई पीढ़ी के मतदाताओं में विचारों व तथ्यों में नएपन से भी मिल रहा है। वह कहते हैं कि ‘यदि आपने एक अच्छा काम किया है तो इसके बोए बीज से अन्य अच्छे कार्यों का एक वृत बन जाता है।’ ‘वह आगे कहते हैं कि लोगों के दिल में जगह बनाना आसान है परंतु इसे बरकरार रख सकना आसान नहीं है। उनका मानना है कि यह चक्र प्रदूषित हो गया है और इसे दुष्चक्र से निकालना होगा। हालांकि कमल की ये बातें राजनीतिक विभिन्नता को विभिन्न श्रेणी में ला रही हैं। उक्त बातों के अतिरिक्त कुछ हिंदुत्व संगठन उनकी हिंदू आतंकवाद की टिप्पणी पर उनसे खासे नाराज हैं। तमिल साप्ताहिक आनंदा विकांतन के साप्ताहिक कॉलम में हासन ने लिखा है ‘पहले हिंदूवादी संगठन हिंसा में शामिल नहीं होते थे। बल्कि अपने तर्क-वितर्क से विपक्षी पार्टियों से बातचीत करते थे परंतु अब ये हिंसा में शामिल हो चुके हैं।’ इसी के अन्य भाग में उन्होंने कहा है ‘कोई भी यह नहीं कह सकता है कि अब हिंदू आतंक नहीं है।’ 

कमल ने हिंदू आतंक के शब्दों का प्रयोग ऐच्छिक रूप से नहीं किया था परंतु हिंदू समाज में इसकी बड़े स्तर पर आलोचना हो रही है। हालांकि  कमल ने बाद में अपने इस बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि उनकी वास्तविक इच्छा हिंसा को हिंदुत्व से अलग करने की थी। अब आगे देखना होगा कि तमिल राजनीति की दलदल में कमल हासन का ‘तर्कवाद’ क्या मोड़ लेता है।-हरि जयसिंह


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