क्या भाजपा-शिवसेना ‘सरकार’ बनाएंगी

punjabkesari.in Monday, Nov 04, 2019 - 02:36 AM (IST)

महाराष्ट्र में चुनावों के नतीजे आए 8 दिन हो चुके हैं लेकिन सरकार के गठन की दिशा में बात किसी नतीजे तक नहीं पहुंच रही है और भाजपा के प्रभावशाली नेताओं ने केन्द्रीय नेतृत्व पर सरकार के गठन के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया है और वे गतिरोध के लिए देवेन्द्र फडऩवीस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार इस स्थिति को देखते हुए देवेन्द्र फडऩवीस ने भाजपा की ताजा पेशकश के साथ अपना दूत उद्धव ठाकरे के आवास पर भेजा है। इसके जवाब में उद्धव ने फडऩवीस के साथ मुलाकात की इच्छा जाहिर की है ताकि मामले को आगे बढ़ाया जा सके। इन दोनों के बीच यह मुलाकात किसी भी समय हो सकती है।

शुरू में भाजपा ने यह संकेत दिया था कि वह शिवसेना को 13 से 15 मंत्री पद और उपमुख्यमंत्री का पद देने के लिए तैयार है जबकि 27 से 29 मंत्री पद वह अपने लिए और छोटे सहयोगियों के लिए रखना चाहती है लेकिन अब फडऩवीस शिवसेना के 50-50 शेयर के दबाव के चलते कुछ अतिरिक्त महत्वपूर्ण मंत्रालय शिवसेना को देने को तैयार है। 

शिवसेना के सूत्रों के अनुसार केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार में एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री समेत दो अतिरिक्त मंत्रालयों की मांग रखी है। इसके अलावा उसने शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के लिए दो राज्यों में राज्यपाल का पद भी मांगा है। उद्धव ने प्रदेश सरकार द्वारा संचालित निगमों में भी 50-50 शेयर के लिए दबाव डाला है। अब यह सब कुछ उद्धव और फडऩवीस के बीच होने वाली मुलाकात पर निर्भर है। इस बीच शरद पवार विपक्षी नेताओं सहित सोमवार को सोनिया गांधी से मिलेंगे और राजनीतिक विचारकों के अनुसार यह मुलाकात महाराष्ट्र सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। 

हरियाणा में कौन होगा जाट मंत्री
हरियाणा में मुख्यमंत्री के तौर पर मनोहर लाल खट्टर और उपमुख्यमंत्री के तौर पर दुष्यंत चौटाला द्वारा शपथ लेने के बाद अब मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल की घोषणा करेंगे। ऐसे में अब लोगों की निगाहें इस बात पर हैं कि कौन-कौन से जाट विधायकों को कैबिनेट में शामिल किया जाता है। पिछली खट्टर सरकार में कोई भी जाट कैबिनेट मंत्री नहीं था लेकिन इस बार दोनों जाट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और ओम प्रकाश धनकड़ चुनाव हार चुके हैं। हालांकि भाजपा ने 20 सीटों पर जाट उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन इनमें से केवल 5 ही जीत प्राप्त कर सके।

हालांकि दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री हैं और जाट समुदाय से आते हैं लेकिन भाजपा निश्चित तौर पर जाटों को सकारात्मक संकेत देना चाहती है और इसलिए महीपाल ढांडा, कमलेश ढांडा, जे.पी. दलाल, प्रवीण, निर्मल रानी में से किसी एक को मंत्री बनाया जा सकता है। महीपाल ढांडा एकमात्र उम्मीदवार हैं जो दो बार जीते हैं। इस बीच कुछ ऐसे जाट विधायक भी हैं जो भाजपा के बागियों के तौर पर आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते हैं। दूसरी तरफ कविता जैन चुनाव हार चुकी हैं इसलिए निर्मल रानी को महिला और जाट मंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। 

और मजबूत हुए गहलोत
राजस्थान में दो विधानसभा उपचुनावों के नतीजों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार के हौसले में वृद्धि हुई है। भाजपा के कब्जे वाली झुंझुनू जिले की मांडवा सीट कांग्रेस की रीता चौधरी ने जीत ली है लेकिन उसकी सहयोगी आर.एल.पी. ने नागौर की खिंसवार विधानसभा सीट बरकरार रखी है। 

संसदीय सीट जीतने के बाद हनुमान बेनीवाल ने खिंसवार विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था और इस उपचुनाव में उन्होंने अपनी सीट अपने भाई नारायण बेनीवाल को दे दी है। भाजपा-आर.एल.पी. ने यह चुनाव एक साथ मिलकर लड़ा और नारायण बेनीवाल ने कांग्रेस के हरेन्द्र मिर्धा को 4540 वोटों से हराया। चुनाव के बाद अशोक गहलोत विधानसभा में और मजबूत हो गए हैं। दूसरी तरफ भाजपा-आर.एल.पी. का गठबंधन आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए टूट चुका है। इसकी घोषणा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने की है क्योंकि हनुमान बेनीवाल ने भाजपा उम्मीदवार की हार के लिए वसुंधरा राजे को दोषी ठहराया है।

भाजपा पर जद (यू) का दबाव
हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद हरियाणा में सरकार के गठन और महाराष्ट्र में शिवसेना द्वारा 50-50 शेयर की मांग के बाद अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी केन्द्र सरकार में लोकसभा में अपनी पार्टी के सदस्यों की संख्या के आधार पर सरकार में पार्टी के शेयर की मांग रख दी है। शुरू में जब केन्द्र सरकार बनी थी तो नीतीश कुमार ने कैबिनेट में शामिल होने से इंकार कर दिया था क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने जद (यू) के लिए केवल एक मंत्री पद की पेशकश की थी। लेकिन अब जद (यू) सूत्रों का कहना है कि नीतीश ने बिहार सरकार में भाजपा को न केवल उपमुख्यमंत्री का पद बल्कि और भी कई मंत्री पद दिए हैं। 

ऐसा लगता है कि पिछले दिनों दिल्ली में हुए पार्टी के सम्मेलन में जद (यू) द्वारा केन्द्र सरकार में हिस्सेदारी की मांग भाजपा पर दबाव डालने के लिए की गई है। लेकिन तथ्य यह है कि लोकसभा में भाजपा के पास 300 से अधिक सीटें हैं और उसे वहां किसी अन्य दल के समर्थन की आवश्यकता नहीं है। जबकि नीतीश को बिहार में अपनी सरकार के लिए भाजपा के समर्थन की जरूरत है। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त सम्मेलन में नीतीश द्वारा तेवर दिखाना अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा पर दबाव डालने की रणनीति का हिस्सा है।-राहिल नोरा चोपड़ा


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