वैवाहिक दुष्कर्म : सरकार और विधायिका पहल क्यों न करें

punjabkesari.in Saturday, May 14, 2022 - 03:54 AM (IST)

7 साल पहले वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों की बैंच ने खंडित फैसला दिया है। सीनियर जज शकधर ने कहा कि आई.पी.सी. की धारा-375 के अपवाद-2 और धारा-376 (ई) के दो प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14, 19 (1)और 21 के खिलाफ होने के कारण रद्द होने चाहिएं। उन्होंने यह भी कहा कि सैक्स वर्कर को न करने का अधिकार है तो फिर पत्नी को यह अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले पर अपील होगी, तो ऐसी बातों से अनेक विवाद हो सकते हैं। 

खंडपीठ के दूसरे जज जस्टिस हरिशंकर ने असहमति जताते हुए कहा कि कानून बनाने या रद्द करने का अधिकार अदालत की बजाय जनता द्वारा चुनी गई सरकार और संसद को है। 50 साल पहले सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की बैंच ने केशवानन्द भारती मामले में ऐतिहासिक फैसले में इसे पुष्ट किया था। इसलिए जस्टिस हरिशंकर का फैसला संवैधानिक व्यवस्था के अनुकूल है। 

कई लोग इस मामले को समलैंगिकता (धारा 377) और व्यभिचार (धारा 497)पर सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों से जोड़कर देख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 2018 के फैसले से  समलैंगिकता को अनापराधिक बना दिया था। उस मामले में भी अदालत के अधिकार क्षेत्र पर विवाद हुआ था। प्राइवेसी पर 9 जजों के फैसले को नजीर मानते हुए अदालत ने कहा कि संसद द्वारा निर्णय नहीं लेने की वजह से लोगों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायिक आदेश से कानून को रद्द करना जरूरी है। अपराध के दायरे से बाहर आना किसी भी व्यक्ति का अधिकार हो सकता है। लेकिन बेवजह किसी को अपराधी ठहराना, किसी का कानूनी हक नहीं हो सकता। इसलिए वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करना, पी.आई.एल. के तहत न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। 

भारत में लड़कियों की शादी की उम्र के बारे विरोधाभासी कानूनी प्रावधान हैं। आई.पी.सी. की धारा-375 के संदर्भ में पत्नी की उम्र को 15 वर्ष तक माना गया है, जबकि देश में शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। केन्द्र सरकार इसे बढ़ाकर 21 साल करने पर विचार कर रही है। देश के अनेक गरीब और पिछड़े इलाकों में अभी भी बाल विवाह का प्रचलन है। इस तरीके के शादी-ब्याह के सिविल मामलों में कानून और जेल की सजा का प्रावधान होने पर मुकद्दमेबाजी बढ़ेगी, जो परिवार, समाज और देश सभी के लिए खतरनाक हो सकती है। पत्नी के साथ बलात्कार करने वाले किसी भी पति को वहशी मानते हुए उसका तिरस्कार होना चाहिए। 

इस प्रकार की शारीरिक हिंसा और उत्पीडऩ करने वाले पति से निपटने के लिए डोमैस्टिक वायलैंस एक्ट के तहत महिलाओं को अनेक प्रकार की कानूनी सुरक्षा मिली है। बलात्कार करने वाले पति के साथ कोई भी महिला रहने से मना करके कानून के तहत तलाक के साथ गुजारा भत्ता भी हासिल कर सकती है। 

बैडरूम में घटित ऐसे मामलों में पत्नी के अलावा सबूत और प्रमाण कैसे मिलेंगे: याचिकाकत्र्ताओं की मांग को यदि मान भी लिया जाए तो कानून में बदलाव के बाद आरोपी पति को सजा दिलाना मुश्किल होगा। बैडरूम में घटित ऐसे मामलों में पत्नी के अलावा सबूत और प्रमाण कैसे मिलेंगे? विवाह एक सिविल कानून है जिसमें आपराधिकता के पहलू को शामिल करने से झूठे मामलों की बाढ़ आ सकती है। अगस्त 2017 में केन्द्र सरकार ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इससे विवाह और परिवार की संस्था अस्थिर हो सकती है। लेकिन उसके बाद इस मामले को राज्य सरकारों के पाले में ठेल दिया गया। लेकिन अनेक संगठनों ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि कानून में बदलाव होने से पुरुषों का उत्पीडऩ बढऩे के साथ झूठे मुकद्दमों की बाढ़ आ जाएगी। 

सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और अन्य महिला कानूनों के दुरुपयोग पर कई बार चिंता जाहिर की है। इसलिए वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने की पहल करने से पहले सरकार और सुप्रीम कोर्ट को इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षात्मक प्रावधान करना जरूरी होगा। 

इस मामले में सबसे दिलचस्प अर्जी सितंबर 2017 में लगाई गई। इसके अनुसार आई.पी.सी. की धारा 375 और 376 के तहत बलात्कार के मामलों को जैंडर न्यूट्रल यानी ङ्क्षलग निरपेक्ष बनाना चाहिए। इस मांग के अनुसार महिलाओं के ऊपर भी बलात्कार का मामला दर्ज करने के लिए कानून होना चाहिए। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अक्तूबर 2018 में दायर जवाब से इस मांग का विरोध किया। सरकार के अनुसार महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे यौन अपराधों के लिए सख्त कानून हैं। लेकिन पुरुषों के हक में ऐसे किसी कानून को मान्यता नहीं दी जा सकती। लेकिन याचिकाकत्र्ता के अनुसार 18 साल से कम उम्र के लड़के के साथ यौन अपराध होने पर पॉक्सो कानून के तहत आपराधिक मामला चलता है तो फिर व्यस्क पुरुषों के साथ यौन अपराध होने पर भी बलात्कार यानी रेप का क्यों नहीं बनना चाहिए? 

दोनों पक्षों के वकीलों ने प्राइवेसी पर सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के फैसले को ढाल बनाया। उसके अनुसार,सहमति के बगैर, किसी के शरीर पर हमला या खिलवाड़ नहीं हो सकता। जैंडर न्यूट्रल कानून की मांग से जस्टिस शकधर ने इत्तेफाक रखते हुए कहा कि इस बारे में विधायिका को कानून बनाना चाहिए। उनके तर्क को सही माना जाए तो फिर मैरिटल रेप के बारे में भी न्यायपालिका की बजाय, सरकार और विधायिका को पहल क्यों नहीं करनी चाहिए?-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News