भारत में क्यों नाकाम हैं गठबंधन सरकारें
punjabkesari.in Wednesday, Jul 10, 2019 - 03:28 AM (IST)

आमतौर पर भारत में गठबंधन सरकारें क्यों सफल नहीं होतीं। केंद्र और राज्यों के स्तर पर इनके असफल रहने के अनेक कारण रहे हैं। ऐतिहासिक तौर पर यह कई बार साबित भी हो चुका है। इस संबंध में ताजा मामला एच.डी. कुमारस्वामी नीत कर्नाटक सरकार का है जो टूट की कगार पर है लेकिन इसमें कुछ भी हैरानीजनक नहीं है। सख्त दल-बदल विरोधी कानून के बावजूद देश की राजनीति में ‘आया राम, गया राम’ का चलन जारी है और खरीदो-फरोख्त पर भी कोई रोक-टोक नहीं है। विधायकों को अपने पाले में रखने के लिए उन्हें रिजॉटर््स में ले जाया जाता है।
कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन शुरू से ही कमजोर रहा है हालांकि एक साल पहले कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में लगभग सारा विपक्ष उमड़ा था। उस समय यह माना जाने लगा था कि शायद यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्ष की एकजुटता की शुरूआत है लेकिन आखिर में विपक्ष विभाजित ही रहा।
कर्नाटक के प्रयोग के असफल रहने का एक कारण यह है कि स्थानीय कांग्रेस और जद (एस) के नेता आपस में ही भिड़े रहते थे। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया उनकी नापसंद के नेता कुमारस्वामी के सी.एम. बनने के समय से ही असहज थे। दूसरे यह आरोप लगते रहे हैं कि भाजपा लगातार कांग्रेस और जद (एस) के विधायकों को तोडऩे के लिए प्रयासरत रही है। तीसरे यह गठबंधन भी अप्राकृतिक है क्योंकि इसमें बड़ा दल यानी कांग्रेस छोटे दल जद (एस) का समर्थन कर रहा है। पिछले एक वर्ष में बेंगलूर से कई बार ये खबरें आईं कि सरकार अस्थिर है। इसलिए देर-सवेर इसका टूटना तय माना जा रहा था।
कब-कब बनी गठबंधन सरकारें
अब यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारें क्यों कामयाब नहीं होती हैं। दरअसल वे अपने अंतॢवरोधों के कारण ही धराशायी हो जाती हैं। दोनों राष्ट्रीय पाॢटयां कांग्रेस और भाजपा पहले भी गठबंधन के प्रयोग में असफल रही हैं। कांग्रेस ने गठबंधन सरकार को समर्थन देने और फिर अपनी मर्जी से उसे गिरा देने का खेल खेला जबकि भाजपा ने कुछ मौकों पर गठबंधन का प्रयोग किया। केंद्र में 1989, 1990, 1996, 1997, 1998, 1999 तथा 2004-2009 में विभिन्न पाॢटयों की ओर से गठबंधन सरकारों का गठन किया गया। अपना कार्यकाल पूरा करने वाली पहली गठबंधन सरकार अटल बिहारी वाजपेयी नीत एन.डी.ए.-1 की सरकार थी जो 6 साल तक सत्ता में रही क्योंकि इसे भाजपा की ओर से मजबूत आधार प्रदान किया गया। यू.पी.ए. की सरकार एक दशक तक कुछ अलग कारणों से सत्ता में रही क्योंकि इसने अपने सहयोगियों को उनके मंत्रालयों से पैसे बनाने की छूट दी।
1977 का इंदिरा विरोधी गठबंधन
1977 में इंदिरा विरोधी ताकतें उन्हें सत्ता से बाहर कर खुद सत्तासीन हुईं लेकिन विशाल बहुमत के बावजूद यह सरकार केवल तीन वर्ष तक ही सत्ता में रह सकी। 1989 में बनी वी.पी. सिंह सरकार को वाम और दक्षिणपंथी दलों का समर्थन हासिल था जो कुछ महीनों में ही गिर गई। कांग्रेस की ओर से बाहर से समर्थन प्राप्त यूनाइटेड फ्रंट की दो सरकारें भी दो साल के भीतर धराशायी हो गईं।
राज्य के स्तर पर गठबंधन सरकार का पहला प्रयोग 1967 में संयुक्त विधायक दल की सरकार के तौर पर हुआ जिसमें जनसंघ भी सहयोगी था। 1995 में उत्तर प्रदेश में बनी भाजपा-बसपा की सरकार अपने अंतर्विरोधों के कारण चार महीने में ही गिर गई। 1997 और 2002 में बनी भाजपा-बसपा सरकारें भी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाईं। यहां तक कि कर्नाटक में भी 2006 में भाजपा-जद (एस) गठबंधन की सरकार बनी जो लंबे समय तक नहीं चल सकी। जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पी.डी.पी. गठबंधन की सरकार (2015 से 2018) केवल तीन साल तक चली। यहां भाजपा ने सरकार से हाथ खींच लिए। केरल में यूनाइटेड डैमोक्रेटिक फ्रंट (यू.डी.एफ.) की सरकार इसलिए टिकी हुई है क्योंकि इसमें दो अल्पसंख्यक समुदायों मुसलमानों और ईसाइयों के हित निहित हैं।
न्यूनतम सांझा कार्यक्रम का अभाव
गठबंधन सरकारें क्यों फेल होती हैं? आम तौर पर वे इसलिए स्थायी नहीं होतीं क्योंकि उनके पास दूसरे प्रशासनिक आयोग के सुझाव के अनुसार कोई न्यूनतम सांझा कार्यक्रम नहीं होता है। दूसरे, दल-बदल आम तौर पर वहां होता है जहां राज्यपाल की भूमिका अहम होती है और सरकारिया आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए। राज्यपाल के कार्यालय को राजनीति से मुक्त रखा जाना चाहिए। तीसरे, भारत में गठबंधन अस्थिरता का द्योतक है क्योंकि सत्ताधारी दल को सहयोगी दलों की जरूरतों का ध्यान रखना पड़ता है। गठबंधन सरकार को चलाना मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की क्षमता पर निर्भर करता है। राजनीतिक दलों को एक-दूसरे की उम्मीदों के बारे में स्पष्ट होना चाहिए।
केंद्र या राज्यों के स्तर पर गठबंधन की कोई भी सरकार तभी कामयाब होगी जब उसका नेतृत्व किसी राष्ट्रीय दल की ओर से किया जाएगा जो इसे जोडऩे वाली शक्ति के रूप में कार्य करेगा। हो यह रहा है कि राजनीतिक दल केवल सत्ता हासिल करने के लिए एक साथ आते हैं और यही उन्हें जोड़े रखने वाली चीज होती है। सहयोगियों के बीच एक सामान्य अनुबंध होना चाहिए वरना गठबंधन सरकारों की अस्थिरता बनी रहेगी।-कल्याणी शंकर