क्यों हो रहे लोग अकेलेपन का शिकार

punjabkesari.in Tuesday, Mar 28, 2023 - 05:29 AM (IST)

ताजा खबरों के मुताबिक पंजाब के अमृतसर शहर की दो अधेड़ उम्र की बहनों ने अकेलेपन का शिकार होने के डर से जिंदगी को अलविदा कह दिया। अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए दोनों बहनों ने शादी नहीं की थी। इस खबर ने समाज का ध्यान इस तरफ लगाया है कि अकेलापन इंसानी जिंदगी का खतरनाक और काला पक्ष है। आइए इंसानी अकेलेपन के बिन्दुओं का विश£ेषण करें। 

बॉलीवुड के एक मशहूर गीत के कुछ बोल हैं, ‘अकेले हैं, चले आओ कहां हो’, इससे हम समझ सकते हैं कि अकेलापन मनुष्य की लाइफ में कितना ज्यादा खालीपन पैदा कर देता है। जरूरत से ज्यादा तकनीक का प्रयोग, मोबाइल से हर समय चिपके रहना, संयुक्त परिवार सिस्टम का टूट जाना, पैसे कमाने की दौड़ में हर समय भागे फिरना, स्वार्थी और शक की प्रवृत्ति होना, अवसादग्रस्त होना इत्यादि अकेलेपन के कारक बन गए हैं। हमारे समाज में 50 से ज्यादा की उम्र के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। समाज शास्त्री भी इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं। 

मनोविज्ञान कहता है कि सुकून के कुछ पल पाने के लिए कभी-कभी तो अकेलापन ठीक है, लेकिन अकेले रहने की आदत ‘लाइफस्टाइल डिसऑर्डर’ है, जो दिलो-दिमाग को बीमार बना देती है। अकेलापन आपको न सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी बीमार बना सकता है। लंबे समय तक अकेले रहने से मैटाबॉलिज्म पर विपरीत असर पड़ता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी बुरी तरह प्रभावित होती है। यहां तक कि आप दिल संबंधी बीमारियों के शिकार भी हो सकते हैं। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन के अनुसार, सामाजिक तौर पर सबसे मिलने-जुलने और साथ रहने वाले लोग अकेलेपन के शिकार लोगों की तुलना में अधिक जीते हैं। 

मनोविज्ञान के अनुसार, अपनी इच्छा से अकेले रहना अलग बात है और समूह में रहते हुए भी अकेलापन महसूस करना पूरी तरह से एक अलग बात है। हालांकि, शोधकत्र्ता यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि अकेलापन शरीर पर ऐसा क्या असर डालता है, जो लोगों को बीमारी और मौत की ओर धकेल देता है। शिकागो यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने तो एक शोध में पाया कि सामाजिक रूप से अलग-थलग लोगों की प्रतिरोधक क्षमता में बदलाव आने लगता है। 

अकेले रहने से मैटाबॉलिज्म बिगड़ जाता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही, शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसे लोगों का शारीरिक क्रियाकलाप कम हो जाता है। दिमाग के काम करने का अलर्टनैस, ध्यानपूर्वक काम करने की क्षमता आदि प्रभावित होती है। ऐसा व्यक्ति अपने आसपास के सामाजिक वातावरण से कट जाता है। समय, स्थान या व्यक्ति विशेष से उसका संबंध खत्म हो जाता है। ऐसा व्यक्ति खुद में ही सीमित होता है। अकेलेपन के शिकार व्यक्ति में कोर्टिसोल नामक हार्मोन का निर्माण ज्यादा होता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। 

अकेले होने का मतलब शारीरिक रूप से अकेले होना नहीं बल्कि जुड़ाव महसूस न होना या परवाह न किया जाना भी है। हमें अपने आसपास अकेलेपन के शिकार लोगों की मदद का तरीका ढूंढना होगा। अकेलापन कई कारणों से जन्म लेता है। कई बार अपनों का साथ छोड़ जाने, तो कई बार अपने छोड़ जाने के कारण व्यक्ति अकेला हो जाता है। अगर ऐसी समस्या है, तो नए दोस्त बनाएं, संवाद और बातचीत न होने से अकेलेपन की समस्या गहरा जाती है। दिल की बात शेयर न करने से मानसिक स्थिति बिगड़ सकती है। क्या उन्मुक्त हो रहे देशी समाज में अकेलेपन को जन्म देने वाली संवादहीनता को दूर करने के लिए महिला मित्र या फिर पुरुष मित्र का होना बुरी बात है ? 

याद रहे कि अपनी सोच को सकारात्मक रखने से अकेलेपन से पैदा हुए डिप्रैशन से और तनाव से भी निजात मिलेगी। कुछ सुझाव हैं इसके लिए क्यों न हम मनपसंद संगीत सुनें, नए दोस्त बनाएं, सगे-संबंधियों से मिलते-जुलते रहें, टहलने जाएं, एक्सरसाइज करें, संयुक्त परिवार की प्रथा पर वापस आएं, काम में मन लगाएं और आप जो काम करते हैं उसमें अपना मन अच्छे से लगाएं। 

कल की चिंता यदि ऊपर वाले पर थोड़ा-बहुत छोड़ दें तो कोई नुक्सान नहीं होने वाला और छोटी-छोटी बातों को दिल पर न लगाएं, क्योंकि इससे डिप्रैशन बढ़ेगा और अकेलेपन की प्रवृत्ति में बढ़ौतरी होगी। इंसानी जिंदगी में आध्यात्मिक पहलू की मौजूदगी अकेलेपन को कम कर सकती है। कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता है चाहे आप नौकरी करते हैं या व्यापार। अगर आप उसे मन लगाकर करेंगे तो आपका दिमाग यहां-वहां नहीं भटकेगा और आप अकेलेपन की समस्या से भी छुटकारा पाएंगे।-डा. वरिन्द्र भाटिया 
 


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