आखिर क्यों नहीं साकार हो रही तीस्ता जल वितरण योजना

punjabkesari.in Thursday, Sep 28, 2023 - 05:55 AM (IST)

हाल ही में संपन्न जी-20 की नई दिल्ली में संपन्न बैठक में बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को उम्मीद थी कि तीस्ता नदी से उनके देश को पानी मिलने का रास्ता शायद साफ हो जाए। हालांकि हमारे विदेश मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने भी यह सिफारिश कर दी है कि लम्बे समय से लटके तीस्ता जल विवाद का समाधान कर हमें बंगलादेश से द्विपक्षीय संबंध प्रगाढ़ करना चाहिए। 

वैसे तो भारत और बंगलादेश की सीमाएं कोई 54 नदियों का जल सांझा करती हैं और पिछले साल अक्तूबर में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के भारत आगमन पर कुशियारा नदी से पानी की निकासी पर भारत सरकार और बंगलादेश के बीच समझोता भी हुआ था, जिसका लाभ दक्षिणी असम और बंगलादेश के सिलहट के किसानों को मिलना है, लेकिन तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे का मसला हर बार विमर्श में तो आता है लेकिन उस पर सहमति नहीं बन पाती, तीस्ता नदी हमारे लिए केवल जलापूर्ति के लिए ही नहीं, बल्कि बाढ़ प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण है। 

तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के हिमालयी क्षेत्र के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है। फिर पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और बाद में बंगलादेश  में रंगपुर से बहती हुई फुलचोरी में ब्रह्मपुत्र नदी में समाहित हो जाती है। तीस्ता नदी की लम्बाई 413 किलोमीटर है। यह नदी सिक्किम में 150 किलोमीटर, पश्चिम बंगाल के 142 किलोमीटर और फिर बंगलादेश में 120 किलोमीटर बहती है। तीस्ता नदी का 83 फीसदी हिस्सा भारत में और 17 फीसदी हिस्सा बंगलादेश में है। सिक्किम और उत्तरी बंगाल के 6 जिलों के कोई करीब एक करोड़ बाशिंदे खेती, सिंचाई और पेयजल के लिए इस पर निर्भर हैं। ठीक यही हाल बंगलादेश  का भी है  चूंकि 1947 में बंटवारे के समय नदी का जलग्रहण क्षेत्र भारत के हिस्से में आया था, सो इसके पानी  का वितरण बीते 75 साल से अनसुलझा है। 

सन् 1972 में पाकिस्तान से अलग होकर बंगलादेश  बना और उसी साल दोनों देशों ने सांझा नदियों के जल वितरण पर सहमति के लिए ‘संयुक्त जल आयोग’ का गठन किया। आयोग की पहली रिपोर्ट 1983 में आई , जिसके मुताबिक सन 1983 में भारत और बंगलादेश  के बीच तीस्ता नदी को लेकर एक समझौता हुआ। इसके तहत 39 प्रतिशत जल भारत को और बंगलादेश को 36 प्रतिशत जल मिलना तय हुआ। 25 प्रतिशत जल को यूं ही रहने दिया और बाद में भारत इसका इस्तेमाल करने लगा। इस पर बंगलादेश को आपत्ति रही लेकिन उसने भी सन 1998 अपने यहां तीस्ता नदी पर एक बांध बना लिया और भारत से अधिक पानी की मांग करने लगा। ठीक उसी समय भारत ने जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार उपखंड में नीलफामारी में तीस्ता नदी गजलडोबा बांध बना लिया। 

इससे तीस्ता नदी का नियंत्रण भारत के हाथ में चला गया। बांध में 54 गेट हैं जो तीस्ता की मुख्य धारा से पानी को विभिन्न क्षेत्रों में मोडऩे के लिए हैं। बांध मुख्य रूप से तीस्ता के पानी को तीस्ता-महानंदा नहर में मोडऩे के लिए बनाया गया था। सितंबर 2011 में, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब ढाका गए तो तीस्ता जल बंटवारा समझौता होना तय हुआ था। मसौदे के मुताबिक अंतरिम समझौते की अवधि 15 वर्ष थी और तीस्ता के 42.5 फीसदी पानी पर भारत का और 37.5 फीसदी पर बंगलादेश का हक होना था। उस समय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विरोध किया और समझौता हो नहीं पाया। फिर 2014 में, प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के दौरे पर आईं तो एक बार समझौते की उम्मीद बढ़ी। 

उस बार शेख हसीना ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात भी की लेकिन ममता बनर्जी असहमत रहीं। उनका कहना था कि इस समझौते से उत्तर बंगाल के लोगों का पानी छीन कर बंगलादेश को दिया जा रहा है। सन 2015 में ममता बनर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ढाका दौरे पर गईं। उन्होंने समझौते के प्रति सकारात्मक बयान भी दिए थे लेकिन बात फिर कहीं अटक गई। जान लें जब हम इस समय 62.5 फीसदी पानी का इस्तेमाल  कर ही रहे हैं तो  42.5 पर आना तो घाटे का सौदा ही लगेगा। विदित हो 5 जनवरी, 2021 को भारत-बंगलादेश संयुक्त नदी आयोग की तकनीकी समिति की संपन्न बैठक में बहुत-सी नदियों के जल वितरण के समझौते के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया। त्रिपुरा के सबरूम शहर में पानी के संकट को दूर करने के लिए फेनी नदी से 1.82 क्यूसेक पानी निकालने पर बंगलादेश ने मानवीय आधार पर सहमती भी दी लेकिन तीस्ता जल के वितरण का मुद्दा अनसुलझा ही रहा। 

यह तय है कि तीस्ता भी जलवायु परिवर्तन और ढेर सारे बांधों के कारण संकट में है। गजलडोबा बांध से पहले जहां तीस्ता बेसिन में 2500 क्यूसिक पानी उपलब्ध था, आज यह बहाव 400 क्यूसिक से भी कम है। नदी में जल कम होने का खामियाजा  डॉन तरफ के किसानों को उठाना पद रहा है। दुर्भाग्य है कि यह सदानीरा नदी गर्मी में बिल्कुल सूख जाती है और लोग पैदल ही नदी पार करते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि सलीके से वितरण, बाढ़ प्रबंधन  और बेसिन क्षेत्र में कम बरसात के चलते तीस्ता एक मृत नदी में बदल गई है। तीस्ता नदी में अपार संभावनाएं हैं। यदि तीस्ता जल-सांझाकरण समझौते या तीस्ता परियोजना का उचित कार्यान्वयन संभव हो जाता है तो न केवल तीस्ता तट या उत्तर बंगाल के लोग बल्कि पूरे बंगलादेश  को इसका लाभ मिलेगा। उत्तरी बंगाल की जनता के सार्वजनिक जीवन में बदलाव आएगा। पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ नियंत्रण होने से अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी।-पंकज चतुर्वेदी


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