शहीद भगत सिंह के बलिदान पर क्यों उठ रहे सवाल

punjabkesari.in Sunday, Nov 17, 2024 - 06:04 AM (IST)

किसी वक्त केन्द्रीय जेल का हिस्सा रहे शादमान चौक लाहौर का नामकरण शहीदे आजम भगत सिंह के नाम पर करने के लिए लंबे संघर्ष के बाद भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन लाहौर के पक्ष में उच्च न्यायालय ने आदेश तो जारी कर दिए लेकिन उसकी पालना करने की बजाय अवमानना का सामना कर रहे लाहौर नगर निगम ने अब एक रिपोर्ट पेश की है जिसे किसी सेवानिवृत्त सैनिक अधिकारी द्वारा लिखा हुआ बताते हैं। इस रिपोर्ट ने न केवल पाकिस्तान बल्कि पूरे विश्व में बहस को जन्म दिया है। 

भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन लाहौर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना-पहचाना नाम है। इसके अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरैशी ने तर्क दिया कि अविभाजित ङ्क्षहदुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न समुदायों, विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया। क्रांतिकारी आंदोलन के अलावा कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने विदेशी दासता को समाप्त करने के लिए भी आंदोलन शुरू किए। इनमें कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना भी थे, जिनकी बदौलत पाकिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश के रूप में उभरा है। कुरैशी के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील जुलकारनैन और मनव्वर हुसैन खोखर ने शादमान चौक का नामकरण भगत सिंह के नाम पर करने के आदेश को रद्द करने वाले पंजाब सरकार के दस्तावेज के जवाब में कहा है कि पाकिस्तान की जनता अच्छी तरह जानती है कि ये सब इतिहास में दर्ज तथ्य हैं और हम इन्हें नकार नहीं सकते। हम इस तथ्य से भी इंकार नहीं कर सकते कि स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के बलिदान ने ब्रिटिश शासन को कड़ी चुनौती दी थी, जिनमें से पाकिस्तान में जन्मे भगत सिंह का नाम पूरी दुनिया जानती है और उनके विचारों को लोक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण मानती है। 

कायदे आजम ने 1929 में  सैंट्रल असैंबली दिल्ली में क्रांतिकारी युवाओं द्वारा किए गए विस्फोटों के बाद दिए भाषण में न केवल भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानी व्यक्तित्व की प्रशंसा की थी बल्कि मजबूत इरादे से उनके समर्थन में खड़े भी हुए और ब्रिटिश कानून व्यवस्था और सिद्धांतों पर सवाल उठाए। लाहौर हाईकोर्ट ने शादमान चौक को भगत सिंह चौक बनाने का फैसला दिया लेकिन नहीं बनाया गया। अदालत की अवमानना के सवाल पर पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट को जो जवाब दिया, वह काफी हास्यास्पद, इतिहास से छेड़छाड़ और इस्लामी नजरिए को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाला है। सरकार की ओर से हाईकोर्ट को ऐसा जवाब तब दिया गया, जब बीते शुक्रवार उन्हें अवमानना मामले में जवाब देने का आखिरी मौका दिया गया था।

फाऊंडेशन का कहना है कि भगत सिंह एक क्रांतिकारी सपूत थे जो पाकिस्तान की धरती पर पैदा हुए। अब हम छद्म राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अपने देश के इतिहास को नष्ट नहीं होने दे सकते। शहीद भगत सिंह चौक के निर्माण के खिलाफ कोई ठोस रुख पेश करने के बजाय पंजाब सरकार ने गंभीर आरोप लगाए हैं। पंजाब सरकार की ओर से सहायक महाधिवक्ता असगर लेघारी ने अपने जवाब में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है और उनका मानना है कि देश के संविधान और इतिहास की जांच किए बिना, उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीशों ने शादमान चौक का नाम शहीद भगत सिंह चौक रखने का फैसला दे दिया। पंजाब सरकार के अनुसार भगत सिंह कोई क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और शहीद नहीं थे, बल्कि आज की परिभाषा में एक अपराधी और आतंकवादी थे। फाऊंडेशन कहती है कि अगर ऐसा था तो कायदे आजम उनके बचाव में अपने विचार क्यों रखते। यहां यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में भगत सिंह के बारे में जो दृष्टिकोण कभी औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार का था, लगभग वही दृष्टिकोण वर्तमान पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों का भी है।

पंजाब सरकार पाकिस्तान में जन्मे महान क्रांतिकारी की स्मृति को संरक्षित करने की योजना को घृणित बता रही है। ऐसा करके वह लाहौर के इतिहास पर सवालिया निशान लगा रही है और हर उस चीज के प्रति नफरत का संदेश भेज रही है जिसने आज के पाकिस्तान के क्षेत्र में इतिहास की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। लाहौर सैंट्रल जेल अपने आप में दुनिया के इतिहास का एक महत्वपूर्ण पन्ना है क्योंकि भगत सिंह और उनके 2 साथियों को समय से पहले ही वहां फांसी दे दी गई थी।
फाऊंडेशन को आपत्ति है कि पंजाब सरकार ने तर्क दिया है कि 23 साल की उम्र में कोई क्रांतिकारी नहीं बनता। यह बयान बिल्कुल हास्यास्पद है। बहुत कम उम्र में कई क्रांतिकारी हुए हैं और कई धार्मिक हस्तियों ने भी बहुत कम उम्र में ज्ञान का प्रसार किया। फाऊंडेशन की याचिका को खारिज करवाने के लिए 16 पेज का उत्तर लिखने वाले सरकारी प्रतिनिधियों को इतिहास की जानकारी नहीं है। क्या फिलिस्तीन में युवा लड़ाकों को अपराधी कहा जा सकता है? जबकि इसराईली शासक उन्हें अपराधी और आतंकवादी मानते हैं।

पंजाब सरकार का कहना है कि भगत सिंह खुद को नास्तिक कहते थे और इस संदर्भ में उन्हें शहीद कहना उन्हें इस्लाम के लिए शहीदों के बराबर बताना है। यह अवधारणा पंजाब सरकार की देन है, भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन ने कभी ऐसी तुलना नहीं की। इस्लाम के संदेश पर चलकर मानवता की भलाई और शांति की राह पर कुर्बानी देना ही शहादत है। भगत सिंह के लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ में साफ लिखा है कि हमारे समाज में जिस तरह का भेदभाव और अपराध है, वह धर्म के खिलाफ है। उस लेख का चौक का नामकरण नकारने के लिए बहाना बनाना गलत है, इसके लिए समाज में मौजूद व्यवस्था और शासक जिम्मेदार हैं। पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों को भगत सिंह के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने और समझने की जरूरत है। एक तरफ तो सरकार कहती है कि भगत सिंह 2 समुदायों की सर्वोच्च शख्सियतों के अनुयायी थे और दूसरी ओर उन्हें नास्तिक बता रही है।-राज सदोष   
 


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