खौफ में क्यों है ‘आम नागरिक’

punjabkesari.in Monday, Sep 09, 2019 - 03:27 AM (IST)

हाल ही में मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कुछ लोग इसे एक अच्छी पहल बता रहे हैं तो वहीं पर दूसरे लोग इसे जनता के बीच खौफ पैदा करने का एक नया तरीका। कुछ तो इसे यातायात पुलिस में भ्रष्टाचार बढ़ाने का एक नया औजार भी बता रहे हैं। मोटर नियम को सख्त बनाकर मोदी सरकार के परिवहन विभाग ने यातायात नियम का उल्लंघन रोकने की कोशिश तो जरूर की है लेकिन इसे कामयाब बनाने के लिए केवल जुर्माने की राशि पांच से सौ गुना तक बढ़ा देने से कुछ नहीं होगा। 

मौजूदा नियमों को अगर काफी सख्ती से लागू किया जाता और जुर्माने की राशि को दोगुना या तिगुना किया जाता, तो काफी सुधार हो सकता संभव था। उदाहरण के तौर पर आपको याद दिलाना चाहेंगे कि जब भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ था तो दिल्ली में एक लेन केवल खिलाडिय़ों की बस और आपातकालीन वाहनों के लिए निर्धारित की गई थी। यातायात पुलिस के कर्मी इस व्यवस्था को काफी अनुशासन और कड़ाई से लागू करते दिखे थे और नागरिकों ने भी नियमों का पालन किया था। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि अगर पुलिस प्रशासन अपना काम कायदे से करे तो जनता को नियमों का पालन करने में कोई भी दिक्कत नहीं होगी। 

ऐसा देखा गया है कि जब भारतीय कभी भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तो वहां के नियमों का पालन निष्ठा से करते हैं  लेकिन अपने ही देश में नियमों की धज्जियां इसी उम्मीद में उड़ाई जाती हैं कि ‘जो होगा देखा जाएगा’। पुलिस अधिकारियों की सुनें तो उनके अनुसार नए नियमों के तहत जो भी चालान किए जा रहे हैं उनको कोर्ट में भेजा जा रहा है क्योंकि अभी सड़क पर तैनात अधिकारियों को इतनी बड़ी राशि के चालान काट कर जुर्माने की रकम लेने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। लेकिन इतना जरूर है कि इतने भारी जुर्माने की खबर सुन कर सभी शहरों में वाहन चालकों के खौफ  का अंदाजा पैट्रोल पम्पों पर गाडिय़ों में प्रदूषण की जांच करवाने की लम्बी कतारों से लगाया जा सकता है, जोकि समय पर नहीं कराई गई थी। ऐसा तभी हुआ जब पुलिस प्रशासन ने नियम उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध अपना शिकंजा कसा।

पुलिस ने नियम तोड़ा तो दोगुना जुर्माना
सोशल मीडिया में कुछ ऐसा भी देखा गया है जहां पर कुछ लोग, जिन्हें भारी जुर्माने का चालान दिया गया तो उनका ग़ुस्सा भी फूटा। मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई पुलिस कर्मी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए पाया जाता है तो उसे जुर्माने के रूप में दोगुनी राशि का भुगतान करना होगा। सरकार की यह पहल केवल पुलिस अधिकारियों पर नहीं, बल्कि सभी सरकारी गाडिय़ों के चालकों पर लागू होनी चाहिए। 

उदाहरण के तौर पर, दिल्ली की सड़कों पर चलने वाली डी.टी.सी. की बसों के ड्राइवर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं और पुलिस अधिकारी उनका चालान नहीं करते। मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद भी, इस आरोप को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। डी.टी.सी. की बसों के ड्राइवर न तो सीट बैल्ट का उपयोग करते हैं और न ही अपनी बसों को सही लेन में चलाते हैं। इतना ही नहीं, वे बसों को सड़क के बीचों बीच इस कदर रोक देते हैं कि जाम लग जाता है। यदि कोई इनकी शिकायत दिल्ली यातायात पुलिस को करे तो उनका चालान करने की बजाय यह जवाब मिलता है कि इस लापरवाही की शिकायत वे परिवहन विभाग को भेज देंगे। इस दोहरे मापदण्ड को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं। 

नए नियमों का प्रचार
जानकारों की मानें तो इन सभी नियमों को लागू करने से पहले सरकार को नए जुर्माने का प्रचार उसी तरह से करना चाहिए था जिस तरह से नियम के लागू करने के बाद, भारी जुर्माने के शिकार हुए नागरिकों की प्रतिक्रिया का किया जा रहा है। जानकारी के अभाव में नागरिकों को दंडित किए जाने से बेहतर होता कि सरकार जगह-जगह आधार कार्ड या वोटर कार्ड बनवाने जैसे अभियान चला कर जनता को नए नियमों से वाकिफ करवाती। इस अभियान के तहत लगने वाले कैम्प पर प्रदूषण की जांच से लेकर वाहन बीमा करने की भी व्यवस्था रहती तो नोटबंदी के दौरान बैंकों के बाद पैट्रोल पंपों पर लगने वाली क़तार शायद छोटी होती। 

कुल मिलाकर देखा जाए तो इस समय सभी नागरिक इस खौफ में या तो अपने वाहन चला नहीं रहे या मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद भारी जुर्माने से बचने के लिए अपने वाहन के सभी जरूरी दस्तावेज दुरुस्त कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं था कि जनता को इन नियमों का ज्ञान पहले नहीं था, सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर तो सबको दिखता है लेकिन जब तक उस पत्थर से ठोकर खा कर चोट न खा लें, तब तक कोई सीखता नहीं है। विपक्ष की मानें तो यह कदम मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसा ही है जिसमें जनता को सुकून का सपना दिखा कर खौफ में जीने को मजबूर किया जा रहा है। लेकिन यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि यह कदम फायदे का था या नहीं।-विनीत नारायण 


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