भारत आविष्कारों व नवोन्मेष के मामले में पिछड़ा क्यों है

punjabkesari.in Monday, Jul 08, 2019 - 03:44 AM (IST)

कुछ सप्ताह पूर्व भारत में स्मार्ट फोन उद्योग के बारे मैं कुछ रिपोर्टर्स प्रकाशित हुई थीं। यह बड़ी वाॢषक वृद्धि तथा बहुत बड़े आकार के साथ उपभोक्ता अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। भारत में स्मार्ट फोन मार्कीट की लीडर चीनी कम्पनी शाओमी है जिसकी 30 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है। दूसरे नम्बर पर 22 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ दक्षिण कोरिया की सैमसंग है। तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर भी चीनी कम्पनियां वीवो, ओप्पो तथा रियलमी हैं। भारत के बाजार में किसी अर्थपूर्ण उत्पाद के साथ कोई भी भारतीय कम्पनी नहीं है। 

मैंने हाल ही में फाऊंडिंग फ्यूल नामक एक वैबसाइट पर एक लेख पढ़ा था जिसमें इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि ‘गत 60 वर्षों में भारत में एक भी ऐसा आविष्कार नहीं हुआ है जो वैश्विक स्तर पर एक जाना-माना नाम बना हो।’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने कोई भी ‘ऐसा विचार नहीं पैदा किया जो वैश्विक नागरिकों को आनंद देने के लिए दुनिया को हिला कर रख देने वाले किसी आविष्कार का कारण बना हो।’ 

सच क्या है
हमें दो चीजों पर ध्यान देना चाहिए-पहली, क्या यह सच है? मैं किसी भी ऐसे आविष्कार अथवा उत्पाद के बारे में बेतकल्लुफी से नहीं सोच सकता लेकिन यदि दुनिया को हिला कर रख देने वाला कोई आविष्कार होता तो निश्चित तौर पर उसने उस कम्पनी को बहुत बड़ा बना दिया होता। अत: मैं 2018 में भारत की 10 सबसे बड़ी कम्पनियों की सूची पर नजर डालता हूं। वे हैं- इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओ.एन.जी.सी., स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, टाटा मोटर्स, भारत पैट्रोलियम, राजेश एक्सपोर्ट्स, टाटा स्टील तथा कोल इंडिया, इनमें से केवल दो, टाटा मोटर्स (आटोमोबाइल्स) तथा राजेश एक्सपोटर््स (ज्वैलरी) ने उपभोक्ता उत्पादों पर काम किया परंतु सूची में दुनिया को पछाडऩे वाला कोई उत्पाद नहीं था। अत: ऐसा लगता है कि मूर्ति ने जो कहा वह सही है। 

दूसरी चीज जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, वह यह कि ऐसा क्यों है? इसका उत्तर देना आसान नहीं है क्योंकि हम किसी ऐसी चीज में उलझ जाएंगे जो अनुमानों तथा सिद्धांतों पर आधारित है लेकिन हमें फिर भी प्रयास करना चाहिए। मूर्ति ने उसी साक्षात्कार में कहा कि ‘समझ तथा ऊर्जा के मामले में पश्चिमी विश्वविद्यालयों में अपने समकक्षों के बराबर होने के बावजूद हमारे युवाओं ने अधिक प्रभावशाली शोध कार्य नहीं किया है।’ उन्होंने कहा कि मैसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्रोलॉजी, जिसके आधार पर नेहरू ने आई.आई.टी. डिजाइन किया, ने माइक्रोचिप तथा ग्लोबल पोजीशङ्क्षनग सिस्टम्स (जी.पी.एस.) का आविष्कार किया और पूछा कि आई.आई.टी. का क्या योगदान रहा है। तथ्य यह है कि दिखाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। 

दुनिया में कहां खड़े हैं
अन्य चीजें भी हैं जो संकेत देती हैं कि आविष्कार तथा नवोन्मेष के मामले में बाकी दुनिया की तुलना में हम कहां खड़े हैं। गत वर्ष पहली बार चीन विश्व की सर्वाधिक रचनात्मक अर्थव्यवस्थाओं के शीर्ष 20 देशों की सूची में शामिल हुआ। इसका प्रकाशन संयुक्त रूप से वल्र्ड इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी आर्गेनाइजेशन ने किया और यह आविष्कारों तथा पेटैंट्स को देखती है। वैश्विक नवोन्मेषण सूची के शीर्ष 10 देशों में स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, ब्रिटेन, सिंगापुर, अमरीका, फिनलैंड, डेनमार्क, जर्मनी तथा आयरलैंड हैं। चीन की 17वीं रैंकिंग ‘एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करती है, जो तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रही है और जिसे सरकारी नीतियों द्वारा शोध प्राथमिकता तथा विकास-प्रोत्साहन-सरलता से मार्गदर्शन मिलता है।’ 

आज विश्व इतिहास में सबसे बड़े बदलाव से गुजर रहा है, क्योंकि डिजीटल आकाश फैल रहा है तथा कृत्रिम समझ क्षितिज पर मंडराती दिखाई देने लगी है। सैल्फ ड्राइविंग कारों तथा दवाओं व जैनेटिक्स में उपलब्धियों सहित दुनिया में सर्वाधिक हैरानीजनक चीजें विकसित की जा रही हैं। ऐसे समय में एक देश के नाते हमारा क्या योगदान है, जो सारी मानवता का छठा हिस्सा है। क्या यह ङ्क्षचताजनक नहीं कि हमारा योगदान बहुत कम अथवा बिल्कुल नहीं है?वैश्विक नवोन्मेषण सूची में भारत का स्थान 57वां था। इससे हम जैसे बहुतों को हैरानी होगी क्योंकि वे यह मानते हैं कि भारत सूचना तकनीक क्रांति के अग्रणियों में से एक है। तथ्य इसके उलट है और यही कारण है कि मूॢत ने जो कहा, वह गम्भीर कर देता है। 

पहचान क्यों नहीं मिलती
यदि भारतीय उतने ही बुद्धिमान हैं जितने विश्वविद्यालय में उनके समकक्ष और हमारे पास बराबर के अवसर हैं तो क्या कारण है कि हम गुणवत्तापूर्ण आविष्कार नहीं कर सकते, जिन्हें विश्व में पहचान मिले? क्यों, जैसा कि हम स्मार्टफोन्स के मामले में देखते हैं, हम अपने ही बाजारों में पीछे रह रहे हैं? एक कारण जो हम खुद को बता सकते हैं, वह यह कि चीनियों के पास अधिक पूंजी तथा अधिक सरकारी समर्थन है। मगर निश्चित तौर पर कुछ अलग भी है। एक समस्या इस बारे सोचने का प्रयास करना है कि क्यों हम संस्कृति के ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और अपनी शिक्षा को असहज बनाते हैं। क्यों यह एक ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर गम्भीर शोध की गई हो। आप कोई ऐसा अध्ययन नहीं पा सकते जो इस मुद्दे पर ध्यान दे, यहां तक कि जब यह एक स्पष्ट समस्या दिखाई देता हो। 

मैं नहीं समझता कि यह सरकार के लिए एक मुद्दा है, यह सरकार की असफलता से आया है चाहे हालिया समय में या अतीत से। इसका हमारे समाज तथा मूल्यों से सम्बन्ध है, जो हम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं। मैं यह भी समझता हूं कि यह एक ऐसी चीज है जिसे हम यह देखते हुए कि हमारे आसपास दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है, अधिक लम्बे समय तक नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि हमें बिना किसी योगदान और इसलिए बिना किसी दलील के बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसमें सुधार लाने के प्रयास में पहला कदम अपने खुद के साथ ईमानदार होना है। आप तभी किसी समाधान के बारे में सोच सकते हैं यदि आप समस्या को स्वीकार करें।-आकार पटेल


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