चर्च में होते यौन शोषण व भ्रष्टाचार जैसे अपराधों पर ‘दोहरे मापदंड’ क्यों

punjabkesari.in Friday, Feb 23, 2018 - 01:49 AM (IST)

भारत में अक्सर हिन्दुओं से संबंधित संस्थाएं-मंदिर, आश्रम, मठ और डेरे इत्यादि भ्रष्टाचार, यौनाचार, अनैतिक आचरण और रूढि़वादी प्रथाओं आदि के कारण चर्चा में आते रहते हैं। जब-जब साधु-संतों से जुड़े मामले प्रकाश में आए, तब-तब अधिकतर को समाचारपत्रों में बड़ी-बड़ी सुॢखयों के साथ शृंखलाबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है और कई दिनों तक यह न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो का मुख्य मुद्दा भी बना रहता है। आसाराम बापू, स्वामी नित्यानंद, रामपाल, बाबा गुरमीत राम रहीम, चंद्रास्वामी, भीमानंद जी महाराज, स्वामी परमानंद, ज्ञानचैतन्य, स्वामी सदाचारी आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 

यूं तो सभ्य समाज में कोई भी संस्था-चाहे वह बहुराष्ट्रीय कम्पनी हो, निजी कार्यालय हो, मॉल हो, सरकारी दफ्तर हो या फिर किसी का भी निजी आवास ही क्यों न हो, वहां किसी भी प्रकार का अपराध अस्वीकार्य और कानून-विरोधी है किन्तु जो संस्थाएं लोगों को अध्यात्म से जोडऩे का दावा करती हैं, वहां इस तरह का आचरण न केवल अशोभनीय बल्कि असहनीय भी है। ऐसा क्यों है कि जब भी हिन्दू साधु-संतों से जुड़ी आपराधिक खबरें सामने आती हैं, वे एकाएक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं किन्तु अन्य मजहबों से संबंधित मामलों में सन्नाटा पसरा मिलता है? 

गत दिनों भारत में किसी चर्च के वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा भारी भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ। अब क्योंकि मामला अधिकांश समाचारपत्रों और न्यूज चैनलों पर नहीं आया तो ऐसे में अधिकतर लोगों को इस मामले की जानकारी नहीं है। केरल के एर्नाकुलम में लाट पादरी के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जमीन समझौते के लेन-देन में चर्च की एक समिति को जांच में करोड़ों की वित्तीय गड़बडिय़ां मिली हैं। समिति ने चर्च प्रमुख जॉर्ज एलनचेरी के खिलाफ  चर्च और दीवानी कानूनों के अंतर्गत कार्रवाई करने की अनुशंसा की है। आरोपी जॉर्ज एलनचेरी भारत के उन चर्च प्रमुखों में से हैं, जो पोप का चुनाव करने की योग्यता रखते हैं इसलिए जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट रोम भेजी है। 

जांच रिपोर्ट के अनुसार, 5 भूमि सौदों में लाट पादरी को लगभग 27 करोड़ रुपए मिले थे, किन्तु उन्होंने 9 करोड़ रुपए मिलने की बात बताई। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘यह चर्च कानूनों का गंभीर उल्लंघन है, जोकि संपत्तियों के लिए आपराधिक दुव्र्यवहार और भरोसा तोडऩे का नग्न कृत्य है।’’ क्या लाट पादरी एलनचेरी के भ्रष्टाचार संबंधी मामले में उस प्रकार की उग्र मीडिया रिपोॄटग या फिर स्वघोषित सैकुलरिस्टों की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जैसा अक्सर अन्य साधु-संतों के मामलों में देखा जाता है? चर्चों में उपदेशों और व्यावहारिकता के बीच का अंतर केवल भ्रष्टाचार और काली कमाई अर्जित करने तक सीमित नहीं है।

अनगिनत बार ईसाइयों का यह पवित्रस्थल यौन उत्पीडऩ के मामलों से भी कलंकित हुआ है। हाल के वर्षों में भारत सहित शेष विश्व में जिस तीव्र गति से इस तरह के मामले सामने आए हैं, उससे स्पष्ट है कि रूढि़वादी सिद्धांत, परंपराओं और प्रथाओं के नाम पर चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाएं महिलाओं व बच्चों के यौन शोषण के अड्डे बन गए हैं। चर्च अपने पादरियों व ननों के ब्रह्मचर्यव्रती होने का दावा करता है, किन्तु यथार्थ यही है कि दैहिक जरूरतों की पूर्ति न होने के कारण अधिकतर कुंठित हो जाते हैं। यहां बाल यौन शोषण से लेकर समलिंगी यौन संबंध आम बात है। जब भी इस तरह की घटना जहां कहीं भी प्रकाश में आती है, चर्च अपने ब्रह्मचर्य विधान पर ङ्क्षचता करने के विपरीत उसे दबाने की कोशिश में जुट जाता है। 

हाल ही में पोप फ्रांसिस एक इसी तरह के मामले में आरोपी का पक्ष लेने के कारण चर्चा में आए। कड़ी प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। मामला चिली के पादरी फर्नांडो कार्डिमा से संबंधित है, जिन्हें वैटिकन द्वारा फरवरी 2011 में 1980 के दशक में चर्च के भीतर बच्चों का यौन शोषण करने के मामले में दोषी ठहराया गया था। मामले में बिशप जुआन बैरोस मैड्रिड का नाम भी प्रकाश में आया है, जो अपने संरक्षक कार्डिमा का पक्ष लेने और उनका बचाव करने के आरोपी हैं। 

इसी पृष्ठभूमि में गत दिनों एक पीड़ित व्यक्ति ने पोप फ्रांसिस को पत्र लिखा और कहा, ‘‘जब वह और पादरी कार्डिमा एक कमरे में होते थे, तब उन्हें चुंबन के लिए विवश किया जाता था। ऐसा उनके और उनके अन्य साथियों के साथ कई बार हुआ। जब भी कार्डिमा उनका यौन शोषण करते थे, तब बिशप जुआन बैरोस मैड्रिड न केवल वहीं खड़े होकर चुपचाप सब देखते रहते थे, बल्कि स्वयं भी पादरी कार्डिमा को चुंबन देते थे।’’ उलटा इसके पोप फ्रांसिस ने न केवल बैरोस को वैटिकन में पदोन्नत कर दिया, साथ ही उनके विरुद्ध सामने आए आरोपों को भी झूठा बता दिया। 

विश्व में कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीडऩ के मामले सामने आ चुके हैं। अकेले 2001-10 के कालखंड में 3 हजार पादरियों पर यौन उत्पीडऩ और कुकर्म के आरोप लग चुके हैं, जिनमें अधिकतर मामले 50 साल या उससे अधिक पुराने हैं। रोमन कैथोलिक चर्च एक कठोर सामाजिक संस्था है, जो हमेशा अपने विचार और विमर्श को गुप्त रखती है। अपनी नीतियां स्वयं बनाती है और मजहबी दायित्व की पूर्ति कठोरता से करवाती है। जब कोई पादरी कार्डिनल बनाया जाता है तो वह पोप के समक्ष वचन लेता है, ‘‘वह हर उस बात को गुप्त रखेगा, जिसके प्रकट होने से चर्च की बदनामी होगी या नुक्सान पहुंचेगा।’’ इन्हीं सिद्धांतों के कारण पादरियों, बिशप और कार्डिनलों द्वारा किए जाते यौन उत्पीडऩ के मामले दबे रह जाते हैं और चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाओं को बदनामी से बचाना मजहबी कत्र्तव्य बन जाता है। 

इस विकृति से भारत भी अछूता नहीं है। देश में ईसाइयों की आबादी लगभग 3 करोड़ है, जिसमें काफी बड़ी संख्या उन आदिवासियों और दलितों की है, जो मतांतरण से पहले हिन्दू थे। जिन राज्यों में ईसाई अनुयायी बड़ी संख्या में हैं, वहां सत्ता अधिष्ठानों और राजनीतिक व्यवस्था में कैथोलिक चर्च का व्यापक प्रभाव है। यही कारण है कि जब गत वर्ष केरल में एक पादरी द्वारा नाबालिग लड़की से बलात्कार का मामला प्रकाश में आया, तब आरोपी को बचाने के लिए सर्वप्रथम स्थानीय प्रशासन और चर्च ही सामने आया। पीड़िता के पिता ने भी चर्च और पादरी को बदनामी से बचाने के लिए बलात्कार का आरोप अपने सिर ले लिया।

प्रारंभिक काल में ‘गोपनीयता की संस्कृति’ से बंधी रही भारत में काम कर चुकी सिस्टर जेसमी ने कुछ वर्ष पहले अपनी पुस्तक द्वारा चर्च के भीतर के काले सच को सार्वजनिक किया है। ‘‘आमीन-द ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए नन’’ नामक पुस्तक  में सिस्टर जेसमी लिखती हैं कि एक पादरी द्वारा पहली बार यौन शोषण करने पर वह खामोश रह गई थीं किन्तु जब एक नन ने उनसे समलैंगिक संबंध बनाए तो उन्होंने इसकी शिकायत एक वरिष्ठ नन से की। तब जेसमी को सलाह दी गई कि ऐसे संबंध बेहतर हैं क्योंकि इससे गर्भवती होने का खतरा नहीं है। चर्च में बढ़ते यौन उत्पीडऩ के मामलों को लेकर सभी कैथोलिक संस्थाओं में महिलाओं को पुरुषों के समान भूमिका और अधिकार देने की मांग तेज हो गई है। जब भी विश्व में इस पर चर्चा होती है, बाईबल का उल्लेख कर महिलाओं को पादरी बनने से रोक दिया जाता है। 

पोप फ्रांसिस भी कह चुके हैं कि कोई भी महिला कभी भी रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी नहीं बन सकती। हिन्दू समाज में महिला संबंधी प्रथाओं और परंपराओं के परिमार्जन का एक लंबा व सफल इतिहास है। जिस प्रकार मुस्लिम समाज के भीतर से महिलाओं द्वारा मजहबी ट्रिपल तलाक से मुक्ति हेतु आवाज उठाई गई और उन्हें अंतत: न्यायिक सफलता भी मिली- उसी तरह ईसाई महिलाओं को भी इस ओर विचार करने की आवश्यकता है।-बलबीर पुंज


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