आखिर क्यों कश्मीर में ‘सम्पत्ति खरीदना’ इतना आसान कार्य नहीं

punjabkesari.in Saturday, Nov 21, 2020 - 04:13 AM (IST)

मोदी सरकार द्वारा 12 कानूनों को निरस्त कर तथा 14 अन्य में संशोधन करने के बाद एक ही झटके में जम्मू-कश्मीर में भूमि, सम्पत्ति को खरीदने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। यह ऐसे लोगों के लिए है जो केंद्र शासित प्रदेश के स्थायी निवासी नहीं हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान प्रशासन ने आधिकारिक रूप से भूमि की कीमतों को दोगुना कर दिया है ताकि स्थानीय लोग अपनी भूमि को बेच सकें। अब नए बदलावों के साथ यह प्रक्रिया गति पकड़ती नजर आ रही है। जम्मू-कश्मीर से बाहर के लोगों तथा कारोबारियों के लिए घाटी के द्वार खोल दिए गए हैं। हालांकि ऐसा दावा किया जाता है कि कृषि भूमि जम्मू-कश्मीर से बाहर के लोगों के हाथों में नहीं जाएगी, ऐसे प्रावधान भी हैं कि दूसरे राज्यों के किसान यहां पर कृषि भूमि खरीद सकेंगे। 

औद्योगिक भूमि को अब लीज पर दिया, लिया तथा किसी भी स्थापित कार्पोरेशन को बेचा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर में पिछले एक वर्ष से हालांकि विशाल स्तर पर भूमि का रिकार्ड डिजिटलाइज किया जा रहा है। इसके तहत सम्पत्ति का अनुवाद किया जा रहा है जोकि पहले फारसी या फिर उर्दू में थे। उनका अब अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है। कश्मीर में अभी भी एक ही सम्पत्ति के कई दावेदार हैं। जबकि ज्यादातर लोगों ने नए कानूनों को अपने हिसाब से परिभाषित किया है कि कृषि भूमि को बाहरी लोगों को बेचा जा सकता है। बाहरी लोगों के लिए कश्मीर में कृषि भूमि खरीदना मुश्किल नहीं होगा। नए कानूनों के हिसाब से केंद्र शासित प्रदेश में कृषि भूमि किसी भी गैर-कृषि से संबंधित लोगों को हस्तांतरित नहीं की जा सकती। 

किसान को एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर परिभाषित किया गया है जो जम्मू-कश्मीर की भूमि पर खेती करता हो। निकट भविष्य में किसी एक किसान की शक्तियों को परिभाषित करना सरकार के अधिकार में है। प्रभावी तौर पर इसका मतलब यह है कि यदि अपेक्षित हो तो सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर किसी भी किसान या फिर भारत के किसी भी व्यक्ति को ‘एग्रीकल्चरलिस्ट’ का टाइटल दे सकती है। किसी भी कृषि भूमि को गैर-कृषि भूमि में सूचीबद्ध करना डिस्ट्रिक्ट कलैक्टर के हाथों में होगा। 

इससे पहले कश्मीर में कोई भी व्यक्ति 182 कनाल भूमि का हिस्सा रख सकता था जोकि 9 हैक्टेयर बनता है। बिग लैंडिड एस्टेट्स एबोलिशन एक्ट 1950 को खत्म करने के बाद मोदी सरकार ने किसी भी सीमा के बिना भूमि का अधिग्रहण का मार्ग प्रशस्त किया है। एक राजस्व बोर्ड की स्थापना भी की गई है ताकि कश्मीर में भूमि की हदबंदी की जा सके। घाटी में सम्पत्ति अधिकारों के लिए डोमीसाइल में सभी कानूनों को संशोधित किया गया है। प्रशासन ने इस वर्ष के शुरू में स्टाम्प ड्यूटी की दरों को 20 प्रतिशत तक बढ़ाया था जिसका अभिप्राय: यह है कि अब वहां पर भूमि खरीदना और ज्यादा महंगा पड़ जाएगा। सम्पत्तियों का पंजीकरण अब ऑनलाइन किया जा सकता है जैसे कि पूरे देश में होता है। 

हालांकि श्रीनगर में रियल एस्टेट एजैंटों का कहना है कि सम्पत्ति के रिकार्ड में अभी भी कई खामियां हैं और डुप्लीकेट रिकार्ड या फिर एक सम्पत्ति के अनेकों दावेदार अक्तूबर में एक नए विभाग का विशेष तौर पर गठन भूमि के पंजीकरण को लेकर किया गया था। खरीददारों के लिए और आसान कार्य बनाने के लिए झगड़े के प्रस्ताव की शक्तियों को निचली अदालतों से स्टेट कार्यकारी में स्थानांतरित किया गया है। इससे निश्चित तौर पर घाटी में सम्पत्ति के टाइटल के बारे में झगड़ों में गति आएगी। 

क्या कारोबारी कश्मीर में औद्योगिक भूमि खरीद सकते हैं?
न केवल स्थानीय या राज्य के निवासी घाटी में औद्योगिक भूमि खरीद सकते थे। यह स्थिति 2026 तक व्याप्त रहेगी। 2016 में जम्मू-कश्मीर औद्योगिक नीति खत्म हो गई थी। इस नीति के तहत इस भूमि का वर्गीकरण औद्योगिक भूमि के तौर पर हुआ है उसे 90 सालों के लिए अन्य को लीज पर दिया जा सकेगा। औद्योगिक तथा आई.टी. पार्कों को विकसित करने के लिए प्रशासन ने शहरी क्षेत्र से बाहर 2500 एकड़ की भूमि को चिन्हित किया है। इससे स्थानीय उद्योगपतियों को 5 एकड़ की एस्टेट तथा आई.टी. पार्कों को 2 एकड़ के कम से कम क्षेत्र के साथ विकसित करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। मगर इससे राज्य के बाहर के उद्योगपतियों को भूमि को लीज पर देने से मना नहीं किया गया।  वे इसे डिस्ट्रिक्ट कलैक्टर के माध्यम से कर सकते हैं।-साई मनीष


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