क्यों मानसिक यातनाओं का शिकार हो रहे बुजुर्ग

punjabkesari.in Sunday, Apr 02, 2023 - 05:47 AM (IST)

हरियाणा के चरखी दादरी से मानसिक यातना के चलते बुजुर्ग दम्पति को जीवन लीला समाप्त करने के लिए मजबूर कर देने वाली खबर आई है। यहां एक बुजुर्ग दम्पति को उसके ही परिवार ने इतना सताया कि उन्होंने अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। इसमें हैरानी वाली बात यह थी कि करोड़ों की संपत्ति के मालिक और जिसका पोता आई.ए.एस. अफसर है, ऐसे दादा-दादी दाने-दाने को मोहताज हो गए। 

यातना सहते-सहते इतने टूटे गए कि खुद ही ईश्वर के पास चले गए। इन्होंने दुनिया छोडऩे से पहले लिखा कि मेरे बेटे के पास 30 करोड़ की सम्पत्ति है, लेकिन उसके पास मुझे देने के लिए दो रोटी नहीं हैं। मैं अपने छोटे बेटे के पास रहता था। 6 साल पहले उसकी मौत होने के बाद कुछ समय तक उसकी पत्नी ने खाना दिया लेकिन फिर मुझे पीटकर घर से बाहर निकाल दिया और बेटे बहू होने के बाद भी वृद्ध आश्रम में रहा। 

यह घटना अपने आप में हमारे समाज में बुजुर्गों के ऊपर परिवार के बंद दरवाजों में हो रही मानसिक और शारीरिक क्रूरता की शर्मनाक तस्वीर है। इस तरह की स्थितियों के क्या कारण हैं इस पर समाज और सरकारों को मंथन करने की जरूरत है। सब जानते हैं कि मां की उंगली पकड़कर चलते समय बेटे का पैर थोड़ा भी फिसल जाए तो मां के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं। उसे कहीं चोट न लगे इस डर से सारा सफर वह उसे गोद में लेकर तय करती है। लेकिन वही बेटा जब बुजुर्ग मां को जीवन के सफर में घर से बाहर कर दे तो उस मां के लिए इससे बड़ा दर्द कोई और नहीं हो सकता। बुजुर्ग पिता का दर्द भी कुछ ऐसा ही होता है। 

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बुजुर्गों की आबादी 10.38 करोड़ है। यह कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत है। भारत में बुजुर्गों की आबादी लगभग 138 मिलियन है और यह संख्या इसकी कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है। वृद्धि दर के आधार पर 2036 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी कुल आबादी के लगभग 14.9 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। हाल ही में एक गैर-सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि देश की राजधानी दिल्ली में ही 92 प्रतिशत युवा बुजुर्गों के साथ हो रहे दुव्र्यवहार में हस्तक्षेप की इच्छा नहीं रखते। बेशक उन्हें बुजुर्गों के प्रति दुव्र्यवहार का दोषी नहीं माना जा सकता लेकिन दुव्र्यवहार का मूकदर्शक बने रहना भी अपराध से कम तो नहीं। 

देश की राजधानी में बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार के प्रति ऐसी उदासीनता का भाव रखने वाले युवाओं का प्रतिशत इतना अधिक होना सभ्यता और शहरीकरण संबंधी सवालों को भी जन्म देता है। नि:संदेह इन युवाओं को शिक्षित करते समय इनको भारतीय संस्कृति की वह डोज नहीं मिल पाती जो उन्हें अपने बुजुर्गों के प्रति सम्मानजनक सलूक सिखा सकती है। हमें उन तमाम कमियों को समझना और दूर करना होगा जो हमारे बुजुर्गों को खुशहाल, स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने से रोकते हैं।

बुजुर्ग आज काम करने के इच्छुक हैं, परंतु केवल आश्रितों के रूप में नहीं बल्कि समाज के योगदानकत्र्ता के रूप में खुद को देखना चाहते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि गरीबों और वंचितों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ, हम वरिष्ठ नागरिकों के एक ऐसे बड़े वर्ग के लिए एक बेहतर और अनुकूल वातावरण तैयार करें, जो दीर्घायु का फायदा उठाते हुए समाज में अपनी ओर से योगदान देने के इच्छुक और सक्षम हैं। हमें बुजुर्गों की देखभाल करने वाले सामाजिक संगठनों का वित्तीय पोषण और समर्थन करना जारी रखना चाहिए। 

देश में बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन देने के लिए सामाजिक और नीति दोनों स्तरों पर कमियों को दूर करने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर बुजुर्गों की मौजूदा हालत को इस तरीके से बयां किया जा सकता है कि अकेले ही गुजरती है जिंदगी, लोग तसल्लियां तो देते हैं पर साथ नहीं।-डा. वरिन्द्र भाटिया
 


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