नशे के कैंसर से देश को बचाने का दायित्व किसका?
punjabkesari.in Friday, Oct 27, 2023 - 04:54 AM (IST)

आज हमारे सामने सबसे बड़ी गम्भीर समस्या नशे की है। नशे का यह कैैंसर जिस तीव्रता से समाज में फैल रहा है, उसे देख-सुनकर आदमी सिहर उठता है और लगता है, जिस गति से नशा समाज को विनाश की गर्त में ले जा रहा है, उससे तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। प्रतिदिन नशे से होने वाली युवाओं की मौतों की खबरें और नशे की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने के समाचार डराते हैं। मानव समाज के अस्तित्व को खतरे में डालने वाला स्वयं मानव समाज ही है। आदमी पैसे के लालच में अन्धा होता जा रहा है।
एक समय था, जब तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी और अधिक से अधिक शराब को नशा माना जाता था। आज अफीम, चरस, गांजा, कोकीन, चिट्टा और न जाने कौन-कौन से नए नामों के साथ नशा समाज में तबाही मचा रहा है। इस धंधे में जो अन्धाधुंध कमाई हो रही है, उसके लालच में लोग इस दलदल में फंसते हैं और जो फंस गए, वे फिर निकल नहीं पाते। पुलिस प्रशासन और अन्य एजैंसियां, जिनको इस पर नियंत्रण करना है, वे भी रिश्वत के चक्कर में आंखें मूंद लेती हैं। इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि छोटे बच्चे, विद्यार्थी और युवा नशेड़ी बन जाते हैं। परिवार नियोजन के कारण बहुत सारे परिवारों में एक ही बच्चा, लड़का या लड़की होती है और वह मासूम जब नशे की लत का शिकार हो जाता है तो मां-बाप की जिन्दगी वैसे ही नरक बन जाती है। यदि युवा पीढ़ी नशेड़ी होगी तो न सेना के लिए वीर सैनिक मिलेंगे, न पुलिस प्रशासन में स्वस्थ जागरूक कर्मचारी, अधिकारी मिल पाएंगे, न ही कृषि-उद्योग का क्षेत्र और न ही सेवाओं का क्षेत्र बचेगा। नशे का यह जहर सारे समाज को खोखला करके समाप्त कर देगा।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि करें क्या? इस संकट को दूर करने के लिए कोई बाहर से आकर समाधान नहीं निकालेगा, हमें स्वयं प्रत्येक नागरिक को अपना अपने परिवार के प्रति, समाज के प्रति और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाना है। कुछ समय से मैं देख रहा हूं कि परिवार की परिभाषा पति, पत्नी और बच्चों तक ही सीमित हो गई है। समाज के अन्य लोगों का सुख-दुख हमारा अपना नहीं होता। इसी प्रकार से हमारा सुख-दुख समाज के लोगों का नहीं होता। इसी कारण मनुष्य कष्ट या समस्या के समय सामाजिक प्राणी होते हुए भी अपने आप को अकेला पाता है।कुछ समय पहले तक किसी का भी बच्चा अगर सिगरेट, बीड़ी या शराब आदि का नशा करते किसी को मिलता था तो प्रत्येक व्यक्ति अपना सामाजिक दायित्व समझते हुए उसे रोकता था। उसके परिवारजनों को सूचना देता था, तो एक प्रकार से कुरीतियों, दुष्प्रभावों पर पारिवारिक नियंत्रण के साथ-साथ सामाजिक नियंत्रण भी होता था। अब नशे की बात हो, महिलाओं से छेडख़ानी की या कोई दुर्घटना हो जाए, तो आंख बचाकर निकलने में ही भलाई समझी जाती है।
इसलिए पहले तो सभी अपना पारिवारिक दायित्व निभाएं, केवल बच्चे पैदा करना ही अपना दायित्व न समझें, बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार देना, बच्चों को समय देना और समाज को सुसंस्कृत, सभ्य नागरिक देना भी सभी का दायित्व है। नैतिक साहस अपने अन्दर पैदा करें और सामाजिक दायित्व को निभाएं, गलत किसी के साथ भी हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उठाएं। परिवार और समाज के साथ सरकार पर भी बहुत बड़ा दायित्व आता है। इन बुराइयों को कुचलने के लिए सरकार को सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है। इसमें वर्तमान कानूनों में अगर किसी संशोधन की आवश्यकता हो तो केन्द्र और प्रदेश की सरकारें मिलकर सख्त कानून बनाएं।
पुलिस प्रशासन के लोग अक्सर यह शिकायत करते हैं कि हम तो केस पकड़ते हैं लेकिन अदालत से लोग छूट जाते हैं क्योंकि पकड़ी गई नशे की खेप की मात्रा कम होती है। तो क्या अपराधी इतनी कम मात्रा में लाते हैं या पकडऩे वाले पकड़ी गई खेप की मात्रा कम दिखाते हैं। इसलिए सख्त कानून की आवश्यकता केवल धन के लालच में लगे समाज विरोधी ड्रग तस्करों के लिए ही नहीं, अपितु इसे बनाने वालों, प्रयोग करने वालों और पुलिस प्रशासन तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों समेत सब के लिए सख्त कानून की आवश्यकता है। इसके लिए सबको इन सभी समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त सभी लोगों के विरुद्ध सख्त दृष्टिकोण अपनाना होगा और सामान्य कानूनों के तहत मिलने वाले संरक्षण से इन्हें बाहर रखना होगा।
मुझे याद है 1995 में संसद की ‘पर्यटन और परिवहन’ की स्थायी समिति के सदस्य के तौर पर मुझे सिंगापुर जाने का अवसर मिला। उन दिनों अमरीका के दो नागरिक नशे की तस्करी के आरोप में सिंगापुर में पकड़े गए थे। अमरीका के राष्ट्रपति ने उन्हें छुड़ाने के भरसक प्रयास किए लेकिन प्रधानमन्त्री श्री ली ने एक न सुनी और 30 लाख की आवादी वाले सिंगापुर ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश के नशे के दो तस्करों को अपने देश के कानून के अनुसार फांसी पर लटका दिया। क्या 140 करोड़ की आबादी वाला नया भारत और यहां के विभिन्न दलों के शासक दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नशे के इस कैंसर से देश को मुक्त करने की इच्छाशक्ति दिखाएंगे और विश्वशक्ति बनने वाला भारत ‘नशा मुक्त’ होगा? यही हमारी सबसे बड़ी परीक्षा है और यदि यह पास कर ली तो सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।-प्रेम कुमार धूमल(पूर्व मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश)