पंचकूला व अन्य स्थानों पर हिंसक घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन

punjabkesari.in Wednesday, Aug 30, 2017 - 10:40 PM (IST)

25 अगस्त को डेरा सच्चा सौदा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम द्वारा डेरे में ड्यूटी करती साध्वियों के तौर पर जानी जाती युवा लड़कियों के साथ किए गए बलात्कार के दोषों में सी.बी.आई. अदालत की ओर से सजा सुनाए जाने (20 साल की कैद और 30 लाख रुपए जुर्माना) के विरोध में डेरा प्रेमियों द्वारा बड़े स्तर पर हिंसा व आगजनी की गई। इन घटनाओं में 38 लोगों की जान गई, लगभग 300 घायल हुए और करोड़ों रुपयों की सरकारी व निजी सम्पत्ति का नुक्सान हुआ। इसके अतिरिक्त जो लाखों लोगों को डर और दहशत के माहौल से गुजरना पड़ा और भारी मुश्किलें आईं, वह अलग। 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसी राज्य (हरियाणा) में रामपाल नामक संत की गिरफ्तारी के समय भी भारी उपद्रव हुआ था। अन्य कई तथाकथित धर्मगुरुओं को जब विभिन्न संगीन अपराधों, विशेषकर सैक्स स्कैंडलों में जेल में डाला गया, उस समय भी झूठी आस्था के प्रभाव के अन्तर्गत उनके समर्थकों व अनुयायियों ने अलग-अलग तरह की हिंसक कार्रवाइयां की थीं। इन उपरोक्त सभी घटनाओं के पीछे एक मूल कारण है धर्म को राजनीति के साथ गडमड करने की नीति। 

विभिन्न पूंजीपति-जागीरदार वर्गों की सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता (कम्युनिस्टों के बगैर) अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सदा से ही धर्म का इस्तेमाल करते आ रहे हैं और धार्मिक डेरों पर जाकर संबंधित धर्म गुरुओं के अनुयायियों की वोटें हासिल करने के लिए दंडवत होते हैं। इसके बदले में धार्मिक डेरों के प्रमुखों को राजनीतिक छत्रछाया, अन्य सरकारी सुविधाएं तथा दान की धनराशियां प्राप्त होती हैं। ये धर्म गुरु साधारण लोगों की गरीबी, मुश्किलों तथा समझ की कमी के कारण सुविधा अनुसार अपने अनुयायियों को वोटों के लिए विभिन्न राजसी दलों के पास बाजारी वस्तुओं की तरह बेच देते हैं। 

विभिन्न धार्मिक डेरों की ओर से शिक्षा, सेहत सेवाओं, खेलों, आर्थिक सहायता के रूप में प्रदान की जाती सेवाएं एक तो जरूरतमंदों की एक हद तक जरूरत पूरी कर देती हैं और दूसरे, धार्मिक प्रचार व कथाएं सुनकर सभी दुनियावी तंगियों व गरीबी को भुलाकर कुछ पलों के लिए झूठी शांति व तसल्ली का एहसास करवा देती है। ये लोग, जिनकी जिंदगी मरने तक तो नरक की तरह गुजरती है पर मरने के बाद किसी ख्याली स्वर्ग में नजारे प्राप्त होने की मृगतृष्णा बनी रहती है। हर धर्म ने मानवीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सभी धर्म ग्रंथों में बहुत से प्राचीन गलत रीति-रिवाजों का खंडन किया गया है और आगे सोचने के लिए भी कई रास्ते खोले गए हैं। 

किसी विशेष समय, विशेष परिस्थितियों में विभिन्न धर्मों ने अग्रगामी व मानववादी भूमिका निभाई है मगर जब यह धर्म ‘लुटेरे वर्गों’ के हाथों में चला जाता है तो वे समूचे धर्म को एक आस्था की प्रतिमा बनाकर इसके सकारात्मक पहलुओं को एक ओर रख देते हैं तथा अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए विचारवादी व चमत्कारी लेखनी के हिस्सों को मूल आधार बनाकर धर्म को विकास के रास्ते में रुकावट बना कर खड़ा कर देते हैं जबकि जरूरत समस्त समाज के कल्याण व विकास के लिए धर्म की मानववादी व अग्रगामी धारणाओं को उजागर करने की होती है ताकि लुटेरा स्थापना के विरुद्ध जन रोष उत्पन्न किया जा सके।

इन अवस्थाओं में ही समकालीन राजनेता व तथाकथित धर्मगुरु राजनीति व धर्म को गडमड करके अपना उल्लू सीधा किए जा रहे हैं। इस मिलीभगत के कितने भयानक परिणाम निकल सकते हैं, इसका अंदाजा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की गिरफ्तारी के बाद उत्पन्न अत्यंत चिंताजनक स्थितियों से लगाया जा सकता है।सी.बी.आई.कोर्ट के जज द्वारा सजा सुनाए जाने के समय डेरा सच्चा सौदा प्रमुख द्वारा सजा कम करने के लिए गिड़गिड़ाना व एक कायर की तरह आंसू बहाना बताता है कि लोगों को प्रचार के माध्यम से खुद को ‘बहादुर’ तथा ‘भगवान का दूत’ बताने वाले बाबे की हकीकत क्या है (क्योंकि वह एक बहुत ही बदनाम अपराध करके जेल गया) और दूसरी तरफ देश व मेहनती लोगों के लिए जूझने वाले शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह जैसे योद्धा सजा मिलने के समय साम्राज्य व उसकी अदालत के सामने अपने अपराध (वास्तव में जन सेवा) की स्वीकारोक्ति कर ‘गोली से उड़ाने’ की मांग करते थे।

एक अन्य दुखद बात यह है कि एक बेटी (निर्भया) का बलात्कार करने वाले दोषी को मौत की सजा दिलाने के लिए समाज के सूझवान हजारों लोग सड़कों पर निकलते हैं, वहीं इसके विपरीत 25 अगस्त को पंचकूला में हजारों लोग ‘बलात्कारी बाबा’ को बचाने के लिए दंगा करते हैं जिसके परिणामस्वरूप 38 लोगों की जान चली जाती है। सर्वाधिक गम्भीरता से विचार करने वाली बात यह है कि अब केन्द्र में शासित मोदी सरकार व उसका प्रेरणास्रोत आर.एस.एस. खुले रूप में देश को एक धर्म आधारित हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित करने की घोषणा कर रहे हैं। जिस देश में विभिन्न धर्मों जैसे कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तथा अन्य कई धार्मिक आस्थाओं के विचारों वाले पंथों से जुड़े करोड़ों लोग और इससे भी आगे परमात्मा के अस्तित्व में भरोसा न करने वाले नास्तिक भी रहते हों, जो विभिन्न भाषाएं बोलने वाले समुदायों से संबंधित हों, वहां एक विशेष धर्म आधारित देश का सपना लेना कितना खतरनाक हो सकता है, इसके परिणामों का अंदाजा लगाना भी असम्भव है। 

आज जहां भुखमरी, अनपढ़ता, कुपोषण, अत्यंत कठिन जीवन स्थितियों व गरीबी में रह रहे बेबस लोगों को एक जीने योग्य खूबसूरत जिंदगी देने की जरूरत है, वहीं विभिन्न धर्म गुरु व उनके द्वारा संचालित डेरे अपने साथ जुड़ी अथाह आस्था का नाजायज फायदा उठाकर उनको गंदगी में रेंगते कीड़ों जैसी जिंदगी बिताने को मजबूर कर रहे हैं। कभी किसी डेरे या धर्मगुरु को अपने अनुयायियों को तर्कशील बनाकर हर तरह के अन्याय के विरुद्ध जूझने तथा लूट-खसूट समाप्त करके सांझीवालता वाला समाज निर्मित करने की प्रेरणा देते नहीं देखा। इसीलिए धर्म व राजनीति का मिलाप लुटेरा वर्गों व स्वार्थी हितों को बहुत रास आता है। आज समय आ गया है कि सभी लोग, जिनमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं, एकजुट होकर आवाज बुलंद करें कि हम अपनी धार्मिक आस्था को राजनीतिक दलों के पास गिरवी नहीं रखने देंगे। 

यदि धार्मिक नेतृत्व देने वाला व्यक्ति विशेष अपने अनुयायियों को किसी विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान का हुक्म सुनाता है तो समझो वह वास्तविक धार्मिक होने की बजाय ढोंगी व विश्वासघाती ज्यादा है। इसी तरह जो राजनीतिक दल वोटों की खातिर धर्म व डेरों का इस्तेमाल करते हैं उनको भी अलग-थलग करने की जरूरत है। यह सोच अलग-अलग राजनीतिक विचारों के लोगों को अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी देगी और उनको गुमराह होने से बचाएगी। साथ ही सरकारों व राजनीतिक दलों द्वारा भी अपने स्वार्थी हितों के लिए धर्मों या डेरों का गलत इस्तेमाल करने पर रोक लगेगी।


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