क्या भ्रष्टाचार के पर कतरे नहीं जा सकते?

punjabkesari.in Wednesday, Aug 14, 2024 - 06:30 AM (IST)

किसी भी व्यवस्था के लिए भ्रष्टाचार एक गंभीर संक्रमण है। यह पहले योग्यता को खत्म करता है, फिर सिस्टम को। इस तरह यह देश की जड़ों को खोखला करता है। भ्रष्टाचार प्रतिभा, न्याय की अवधारणा और शासन के सिद्धांतों को भी नकारता है। भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्थाएं समाज में असंतोष, जनाक्रोश पैदा करती हैं। बंगलादेश में जो भी हुआ, भ्रष्टाचार की एक परत का उबाल है।  देश की आजादी को पूरे 77 वर्ष होने जा रहे हैं। इससे  पावन और क्या  मौका हो सकता है, जो हम अपनी व्यवस्था की खामियों पर सिर्फ विचार ही नहीं करें, इसे खत्म करने के लिए कुछ सख्त कदम भी उठाएं। आज  की सच्चाई यह है कि हमारे सरकारी तंत्र के साथ-साथ सामाजिक तंत्र भी भ्रष्टाचार से सड़ रहा है। सरकारी दफ्तरों, स्थानीय निकायों और अदालतों के एक हिस्से में पैसा काम कराता है, फैसले कराता है और आम आदमी को तोड़ देता है। 

अगर पुल बनते-बनते गिर रहे हैं, सड़कें ढह रही हैं या टूट रही हैं, पेपर लीक हो रहे हैं, प्रशासनिक सेवाओं में ऐसे अयोग्य लोग आ रहे हैं जिन्हें बाद में उच्च अदालती आदेश से हटाना पड़ रहा है, तो इस सबके पीछे भ्रष्टाचार है। दूसरी तरफ आपको अपने मकान का नक्शा पास कराना हो, जमीन की रजिस्ट्री करानी हो या किसी भी विभाग में कोई भी काम करवाना हो, और तो और, पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज करानी हो, ज्यादातर जगह आपको सुविधा शुल्क चुकाना होगा, जो वास्तव में रिश्वत होती है। मकान बनाने में तो जब तक मकान बन नहीं जाता, नगर निगम वाले गिद्ध की तरह आंख गढ़ाए रहते हैं। सबसे आसान बताई जाने वाली कर प्रणाली में भ्रष्टाचार की परतें इतनी महीन होती हैं कि आप किसी वकील या दलाल के माध्यम से ही छुटकारा पाना ठीक मान बैठते हैं। दलाल अब हर विभाग के सूत्रधार बन गए हैं। 

पिछले पांच से अधिक दशकों में जिस तरह भ्रष्टाचार का सरकारीकरण हुआ है, वह बेहद चिंताजनक है। भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में भारत 85वें स्थान पर है। भारत में भ्रष्टाचार बढऩे के जो मुख्य कारण माने जाते हैं उनमें जटिल कर प्रणाली, अत्यधिक नियम, कई सरकारी विभागों को बहुत सी विवेकाधीन शक्तियां, जिनका दुरुपयोग होता है, शामिल हैं। नौकरशाही को पारदर्शिता पसंद नहीं और नेता को जो भी छन के आए, वही पसंद है। इस तरह मिलजुल कर भ्रष्टाचार का एक बड़ा नैक्सस तैयार होता है। बाबू किसी काम के लिए पैसे लेता है तो इसे रिश्वत या घूस कहा जाता है। अधिकारियों या सक्षम लोगों द्वारा अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों को सरकारी नौकरी या अन्य लाभ देना भाई-भतीजावाद कहलाता है। व्यापार में टैक्स चोरी भ्रष्टाचार का वह रूप है जिसे अनैतिक व्यापार कहा जाता है। सरकारी संपत्ति का गबन और चोरी भ्रष्टाचार का एक और रूप है, इसमें बिजली चोरी या सरकारी राशन को चोरी कर ब्लैक में बेचा जाता है। इस तरह के भ्रष्टाचार में सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मौजूद भ्रष्टतंत्र मुख्य भूमिका निभाता है। 

सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर कर किसी के हिस्से की नौकरी या अधिकार किसी को दे देना या फैसले देना जालसाजी कहलाता है। इस तरह का भ्रष्टाचार छोटी अदालतों, एस.डी.एम. और डी.एम. कार्यालयों में आपको देखने को मिलता है। भ्रष्टाचार का एक और बुरा रूप वह है, जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर या आपको फंसाने की धमकी देकर मोटी रकम ऐंठता है। इस तरह का भ्रष्टाचार अधिकारियों और कर्मचारियों का गैंग संगठित होकर चलाता है, इसलिए इसे संगठित भ्रष्टाचार कहा जाता है। देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पारदर्शिता बढ़ाने के साथ-साथ सख्त कानूनों की जरूरत है, यह हम सब कहते रहे हैं। दरअसल इस समाज में सरकार के साथ-साथ समाज खुद भ्रष्टाचार को स्वीकार करने लगा है, खासतौर से तब तक, जब तक उस पर नहीं पड़ती है। लेकिन गरीब और मध्य वर्ग क्या करें। गरीब को छोटी-मोटी जरूरतों में जब लेन-देन से जूझना पड़ता है तो वह टूट जाता है। निम्न मध्यम वर्ग और मध्य-मध्य वर्ग की इच्छाएं हर वर्ग की तरह ऊपर बढऩे की होती हैं, वह झुंझलाते हुए इनको उपकृत करता है। ऊपर का वर्ग झुंझलाता नहीं, बस अपने खर्चे और बढ़ा लेता है और बोझ हम सब पर आ जाता है। 

देश में भ्रष्टाचार की कहानियां इतनी हैं कि इनसे सरकारें बदल गईं लेकिन संस्थागत भ्रष्टाचार जस का तस ही नहीं, बेल की तरह बढ़ता ही जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दस साल पहले जब सत्ता में आए तो साथ बहुत सारी उम्मीदें भी लाए। बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार शायद कम भी हुआ हो। यह भी सच है कि डी.बी.टी. (डायरैक्ट बैनिफिश्यरी ट्रांसफर) से बहुत फायदा भी हुआ, लेकिन रोजमर्रा के विभागों में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। आज यह समझने की जरूरत है कि इन विभागों से भ्रष्टाचार दूर करने की कोशिश नहीं की जा रही है या फिर उन पर पर्दा डाला जा रहा है। सवाल है कि जो सरकार अपने वोटबैंक या गरीबों के लिए तमाम योजनाएं लाती है, लागू भी करा लेती है, क्या वह कुछ ऐेसे विभागों को नहीं चुन सकती, जहां ऐसे काम होते हों। क्या वह तमाम राज्य सरकारों में ऐसे चुनिंदा ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति नहीं कर सकती जो पारदर्शिता से काम करने और कराने की जिम्मेदारी लें, मॉनिटरिंग बड़े स्तर पर करें और खेल करने वाले अफसरों-कर्मचारियों से मुक्ति पाएं। 

सिंगल विंडो सिस्टम हो और वहीं काम हो। सही समय पर काम न हो तो शिकायत की दूसरी खिड़की हो और उसका तत्काल काम हो। यह प्रक्रिया सरकारों की छवि भी चमकाएगी, पर यह करेगा कौन, यह बड़ा सवाल है। रेवडिय़ां बांटने से अच्छा है कि भ्रष्टाचार से मुक्त कर आसान जिंदगी जीने की ओर प्रेरित किया जाए। यूं भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र एजैंसी की स्थापना की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार को खत्म करने में जनता की जागरूकता सबसे जरूरी है। उसे व्हिस्ल ब्लोअर की भूमिका निभानी चाहिए। आम आदमी भी दो बार जिद करके देखे तो। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। भ्रष्टाचार को कम करने में तकनीकी ज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सारा लेन-देन और सेवाएं ऑनलाइन करके भ्रष्टाचार की संभावना को सीमित किया जा सकता है।-अकु श्रीवास्तव


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News