सब कानून तोड़ेंगे तो कहां रहेगा ‘कानून का राज’

punjabkesari.in Sunday, Sep 30, 2018 - 03:53 AM (IST)

दिल्ली देश की राजधानी है। यहां केंद्र और राज्य-दो सरकारें हैं। देश का सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट यहां पर है और इसी दिल्ली में कानून की धज्जियां उड़ाकर सबसे अधिक अवैध निर्माण हो रहे हैं। इस सबसे चिन्तित होकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘‘अवैध निर्माण और सिलिंग पर सभी कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं।’’ 

एक और टिप्पणी की, ‘‘यह कहने की आवश्यकता क्यों पड़ती है कि लोग कानून का पालन करें।’’ एक टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि, ‘‘अतिक्रमणों से दिल्ली रहने योग्य नहीं रही है, गैस चैम्बर बन गई है। सरकार कुछ करती नहीं, हम करते हैं तो यह कहा जाता है कि हम अपनी सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं।’’ दिल्ली में लगभग 51 हजार रिहायशी घरों में गैर कानूनी व्यापारिक गतिविधियां चल रही हैं। बहुत-सी सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किया जा चुका है। दिल्ली की 2200 किलोमीटर से अधिक सड़कों, फुटपाथों और गलियों में अवैध रूप से कब्जा किया गया है। यह लम्बाई नई दिल्ली से कन्याकुमारी के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस प्रकार की टिप्पणी की है, जिससे देश की राजधानी का एक भयावह चेहरा सामने आता है। 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कचरे के ढेर पर बैठी है। कूड़े-कचरे का ढेर एक पहाड़ बन गया है। सुप्रीम कोर्ट तक को पूछना पड़ा कि इसका प्रबंध करने की जिम्मेदारी किसकी है? देश की राजधानी में यदि कूड़ा-कचरा नहीं संभाला जा रहा है तो फिर सरकारें लोगों को कैसे संभालेंगी? देश के लगभग सभी राज्यों में भूमि अतिक्रमण की यही स्थिति है। हिमाचल प्रदेश में भी अतिक्रमण के ऐसे अनगिनत मामले अदालतों में लंबित पड़े हैं। जंगलों को काट कर घर, खेत, होटल और बगीचे बना लिए गए। असरदार लोगों के राजनीतिक संबंधों के कारण लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जब इस मामले में हस्तक्षेप किया तो कुल्लू-मनाली, कसौली और धर्मशाला आदि स्थानों पर बहुत से होटलों के अवैध निर्माणों को गिराने का आदेश दिया गया। होटल मालिकों ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा। गत वर्ष जब कसौली में एक होटल के अवैध निर्माण को गिराया जाने लगा तो विभाग की एक महिला अधिकारी की होटल मालिक के बेटे ने हत्या कर दी। 

हिमाचल प्रदेश में सभी अवैध निर्माण के मामलों को वैध करने के लिए विधानसभा में एक कानून बनाया गया। यह कानून बनाने के लिए सभी पाॢटयां एक साथ हो गईं। जो विधानसभा कानून बनाती है, वही कानून तोडऩे वालों के साथ खड़ी हो गई। जब यह बिल राज्यपाल महोदय के पास पहुंचा तो उन्होंने कुछ समय के लिए उसे रोका। सरकार से यह पूछा कि जिन अधिकारियों के होते हुए ये अवैध निर्माण हुए, उनके विरुद्ध सरकार ने क्या कार्रवाई की है? सरकार कोई उत्तर दे ही नहीं सकती थी क्योंकि ऐसी कार्रवाई कभी होती नहीं। अवैध कब्जा करने वाले इतने प्रभावशाली थे कि सभी पार्टियों के नेता राज्यपाल को मिले और उस बिल को कानून का रूप दिया गया। तब मैंने अपनी पार्टी के नेताओं से इस विषय पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था। मैंने कहा था इस निर्णय से भ्रष्टाचार को सम्मान मिलेगा और ईमानदार लोगों को ईमानदारी की सजा दी जाएगी। मुझे प्रसन्नता है कि उच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने के बाद इस कानून को रद्द कर दिया गया है। 

देश में बढ़ती हुई भीड़ की ङ्क्षहसा की घटनाओं से सभी चिंतित हैं। भीड़ तो भीड़ है, यदि देश के चुने हुए माननीय नेता भी कानून तोड़ते हैं और बार-बार तोड़ते हैं तो फिर भीड़ में खड़े आम आदमी को दोष कैसे दिया जा सकता है? संसद और विधानसभाओं में खुलेआम नियमों का उल्लंघन किया जाता है। लोकसभा में बात-बात पर कार्रवाई स्थगित की जाती है। महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा नहीं होती, केवल नारेबाजी में सारा समय बर्बाद हो जाता है। कई बार लोकसभा एक ‘शोर सभा’ बन जाती है। मंत्री जब मंत्री नहीं रहते तब भी सरकारी बंगलों में डटे रहते हैं। 

कानूनी कार्रवाई से मकान खाली करवाने पड़ते हैं। कुछ वर्ष पहले ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट के पास गया था। एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘‘यदि कानून बनाने वाले भी कानून का पालन नहीं करेंगे तो भगवान ही इस देश को बचाएगा।’’ कुछ वर्षों के बाद फिर ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट के पास गया। कोर्ट ने सरकार को पूछा था कि पूरे देश में ऐसे अवैध कब्जों के कितने मामले हैं? सरकार की ओर से कहा गया कि पूरी जानकारी नहीं मिल रही है। तब सुप्रीम कोर्ट ने एक और सख्त टिप्पणी की थी। ‘‘यदि अब भगवान भी आ जाए तो इस देश को नहीं बचा सकते।’’ सड़क पर भीड़ द्वारा कानून तोडऩे की बीमारी संसद से शुरू होती है। लाखों लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जब संसद में नियमों का पालन नहीं करते और पूरे देश में कानून तोडऩे वालों के साथ खड़े हो जाते हैं तो भीड़ की हिंसा को रोका नहीं जा सकता। 

इस सारी समस्या की जड़ में बढ़ती आबादी का विस्फोट है। बढ़ती आबादी के दबाव में अवैध निर्माण और अतिक्रमण होते हैं। यह दबाव इतना अधिक है कि इसके आगे सभी मर्यादाएं टूट जाती हैं। प्रशासन में भ्रष्टाचार है। वोट बैंक की राजनीति के कारण राजनीतिक दल सहायता करते हैं। इस प्रकार के गंभीर मामले तब तक प्रकाश में नहीं आते, जब तक न्यायालय की पहुंच नहीं होती। यदि न्यायपालिका न होती तो सरकार की सम्पत्ति कब की लूट ली गई होती। न्यायालय की भी एक सीमा है, उनके निर्णय का पालन तो प्रशासन ने करना है। पूरे देश के अधिकतर प्रदेशों में अतिक्रमण और अवैध कब्जों से एक भयंकर स्थिति बन गई है। अवैध घर ही नहीं, अवैध कालोनियां बनती हैं, बस जाती हैं। घरों में बिजली-पानी मिल जाता है, सड़कें भी बन जाती हैं। कई वर्षों बाद इन अवैध कालोनियों को वैध करने की कार्रवाई होती है।

मुझे हैरानी है कि मूल समस्या ‘बढ़ती आबादी का विस्फोट’ की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। राजनीति तो वोट बैंक के कारण चुप है परंतु देश का प्रबुद्ध मीडिया भी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा। जरा-जरा सी बात पर आवाज उठाने वाले बुद्धिजीवी भी चुप हैं। 34 करोड़ से बढ़कर हम 136 करोड़ हो गए। कुछ ही वर्षों में चीन को पीछे छोड़ कर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत बन जाएगा। विश्व में सबसे अधिक भूखे लोग भी भारत में हैं। आबादी बढऩे के साथ आर्थिक विषमता भी बढ़ती जा रही है। पिछले 4 वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विकास की नई ऊंचाई छूने की कोशिश कर रहा है। योजनाओं के लाभ भी आने शुरू हो रहे हैं, पर बढ़ती आबादी का दानव उनको एक सीमा तक निगलता भी जा रहा है। रोजगार भी मिल रहा है, पर बेरोजगारी भी बढ़ रही है। देश के मीडिया व बुद्धिजीवियों से मैं अपील करता हूं कि इस समस्या पर प्रबल जनमत जागृत करें। राजनीति को विवश करें। एक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बने और कानून से आबादी को रोका जाए। मैं जानता हूं प्रधानमंत्री भी चिन्तित हैं। इस समस्या का समाधान वह ही कर सकते हैं।-शांता कुमार


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Pardeep

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