सहारा के 25,००० करोड़ रुपयों का अब क्या होगा
punjabkesari.in Monday, Nov 20, 2023 - 04:55 AM (IST)
सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय की मौत के बाद सेबी के पास जमा 25,000 करोड़ रुपयों पर कानूनी बहस शुरू हो गई है। सन 80 के दशक में 2000 रुपए की पूंजी से व्यापार शुरू करने वाले सुब्रत रॉय का सहारा ग्रुप 2008 तक देश की सबसे बड़ी एन.बी.एफ.सी. बैंकिंग ग्रुप बन गया था। विदेशों में होटल, 10 हजार एकड़ की टाऊनशिप, एयर लाइन्स, जीवन बीमा कंपनी, क्रिकेट टीम, फिल्म स्टारों के ग्लैमर और नेताओं के रसूख में निवेश करने में सहारा ग्रुप की दिक्कतें आई.पी.ओ. लाने के इरादे के बाद शुरू हुईं।
कानून के अनुसार आई.पी.ओ. लाने वाले समूह को अपनी अन्य ग्रुप कंपनियों की वित्तीय स्थिति की पूरी जानकारी देनी पड़ती है। विवरण मिलने पर बाजार नियामक सेबी ने सहारा से 3 करोड़ ओ.एफ.एस.डी. निवेशकों के जमा कराए गए हजारों करोड़ रूपए की वापसी का आदेश दिया। विवाद बढऩे के बाद रिजर्व बैंक, सुप्रीम कोर्ट और अन्य नियामकों की नींद खुली तो देश के सबसे बड़े पोंजी घोटाले की परतें खुलना शुरू हो गईं। निवेशकों से एकत्र रकम को 15 फीसदी ब्याज के साथ वापस करने के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं करने पर सहारा प्रमुख सुब्रत राय और अन्य निदेशकों को सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जेल भेज दिया। कुछ साल बाद पैरोल पर उनकी रिहाई के बावजूद सहारा से जुड़े किस्सों और संपत्तियों की उलझनें खत्म नहीं हो रही हैं।
करोड़ों निवेशकों की रकम वापसी नहीं : सहारा ग्रुप में पिछड़े इलाकों के करोड़ों गरीब लोगों ने सुरक्षा और अच्छे रिटर्न के लिए पैसा लगाया था, लेकिन अब उनकी मूल धन की पूंजी भी डूब गई है। सहारा में निवेशकों को डूबी रकम वापस करने का मुद्दा मध्य प्रदेश चुनाव में प्रमुखता से उठाया गया। सहारा की रिपोर्ट में कुल 9 करोड़ निवेशकों का जिक्र है। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में 1.5 करोड़, उत्तर प्रदेश में 85 लाख, बिहार में 55 लाख, झारखंड में 24 लाख, राजस्थान में 18 लाख, उड़ीसा में 20 लाख, पश्चिम बंगाल में 14 लाख, गुजरात में 8 लाख, हरियाणा में 5 लाख, दिल्ली में 5 लाख तीन लाख निवेशकों का पैसा सहारा की पोंजी स्कीमों में डूब गया है।
सहारा समूह के अनुसार उन्होंने 95 फीसदी निवेशकों को प्रत्यक्ष तौर पर भुगतान कर दिया है लेकिन इसका कोई अधिकृत रिकॉर्ड नहीं है। सेबी की सालाना रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2023 तक कुल 19650 रिफंड आवेदन मिले, जिनमें से 17526 लोगों को 138 करोड़ का भुगतान कर दिया गया, जिसमें से 68 करोड़ रुपए ब्याज की रकम थी। दूसरी तरफ यह कहां जा रहा है, की कागजी कार्रवाई और तकनीकी आपत्तियों की वजह से लाखों लोगों के रिफंड क्लेम रिजैक्ट हो रहे हैं।
केंद्र सरकार ने मार्च 2023 में कहा था कि सहारा की चारों सहकारी समितियों के 10 करोड़ निवेशकों को 9 महीने में रकम लौटा दी जाएगी। उसके बाद जुलाई में सरकार ने रिफंड के लिए ऑनलाइन पोर्टल लांच किया। सरकार के अनुसार निवेशकों को 3 चरणों में रकम वापस की जानी है। पहले चरण में 15 नवंबर तक 5000 तक के क्लेम, दूसरे चरण में 25 नवंबर तक 20000 तक के क्लेम और तीसरे चरण में 20000 से ऊपर की रकम के क्लेम का निपटारा करना है, लेकिन उसके लिए तारीख की घोषणा अभी तक नहीं हुई है।
बेनामी और आपराधिक रकम और संपत्ति : सुप्रीम कोर्ट में कंटैम्प्ट याचिका फाइल होने के बाद साल 2013 में सहारा ने 127 ट्रकों में 31 हजार गत्तों के डिब्बों में तीन करोड़ निवेशकों के रिकॉर्ड भेजकर सेबी को डराने की कोशिश की थी। सहारा ग्रुप ने दावा किया कि उन्होंने 19 हजार करोड़ रुपए की रकम का भुगतान कर दिया है, इसलिए बैंक में जमा रकम सहारा को वापस की जाए। लेकिन इसका कोई ऑडिटिड रिकॉर्ड नहीं दिया गया। जबकि सेबी के अनुसार निवेशकों की रकम ब्याज सहित अब 48 हजार करोड़ रुपए हो गई है। इसके अलावा दूसरे सभी मामलों को मिलाकर सेबी को सहारा से 62602 करोड़ रुपए की रिकवरी करनी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार सहारा के दिए गए दस्तावेज अधिकांश गलत और फर्जी हैं। उनमें कलावती नाम की महिला का नाम 5984 बार आया है जबकि पता सिर्फ एक है। अगर यह पैसा आम निवेशकों का नहीं है तो हजारों करोड़ की रकम बेनामी और भ्रष्ट तरीके से अर्जित की गई थी। सहारा प्रमुख का अनिल अम्बानी, विजय माल्या और नरेश गोयल जैसे लोगों के साथ व्यापारिक नाता था। उनमें से एक दीवालिया हैं, दूसरे विदेश में भगौड़े हैं और तीसरे जेल में हैं। सहारा प्रमुख की पत्नी के अलावा उनके परिवार के अन्य सदस्य भारत से बाहर विदेशों में बस गए हैं। सहाराश्री की मृत्यु के बाद उनके पैसे से मालामाल नेता, खिलाड़ी और फिल्म स्टारों के किस्से अब इतिहास में दफन हो गए हैं।
सहारा ग्रुप से जुड़ी अनेक संपत्तियों पर कानूनी विवाद को खत्म करने के लिए सरकार इन्हें जब्त कर सकती है। सरकार के पास 25 हजार करोड़ की जो जमा रकम है, वह निवेशकों की है या फिर बेनामी, इसका कानूनी निर्धारण करना जरूरी है। अगर यह बेनामी और गलत तरीके से अर्जित है तो इस रकम को भारत की संचित निधि में जमा करके आमजन के कल्याण हेतु खर्च करना चाहिए।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)