2019 के लोकसभा चुनाव में क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा

punjabkesari.in Saturday, Mar 31, 2018 - 03:45 AM (IST)

2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकता के सूत्रधार जय प्रकाश नारायण नहीं होंगे। न ही 1989 जैसे हालात होंगे कि कोई वी.पी. सिंह जैसा प्रधानमंत्री चेहरा विपक्ष को मिल सकेगा। लालू प्रसाद जेल में, नीतीश कुमार मोदी खेमे में। शरद पवार अस्वस्थ, चंद्रबाबू नायडू पैकेज के इंतजार में। तेलंगाना के मुख्यमंत्री का राजनीतिक कद नहीं, ममता बनर्जी का एकता का स्वभाव नहीं। शरद यादव को नीतीश टिकने नहीं देंगे तो करुणानिधि बिस्तर से उठ नहीं पाएंगे। 

यू.पी. में मायावती पर विपक्ष को विश्वास नहीं और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव सिर्फ दो लोकसभा के उपचुनावों पर इठलाने लगे हैं। फिर अखिलेश जी अपने पिता मुलायम सिंह यादव से तो पूछ लें कि विपक्ष में नेता कौन होगा? कम्युनिस्ट राजनीति की ढलान पर और कांग्रेस धरातल की तलाश पर। दूसरी तरफ राजनीतिक क्षितिज पर चमक रहे दो सितारे, नक्षत्र बनते नजर आ रहे हैं। दक्षिण भारत के सिने स्टार रजनीकांत और कमल हासन नरेन्द्र भाई मोदी के निमंत्रण की प्रतीक्षा में हैं। स्वर्गीय जयललिता की पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम बिखराव पर। उनकी सखा शशिकला नरेन्द्र भाई मोदी की शरण में, जेल में। विपक्ष यह भी तो जान ले कि 21 राज्य भारतीय जनता पार्टी के झंडे तले आ चुके हैं। 

कर्नाटक आने वाला है। बोलो, 2019 के लोकसभा चुनाव में है कोई मोदी को चुनौती देने वाला? मुझे लगता है विपक्ष को 2019 के चुनाव में 2014 की तनख्वाह पर ही काम करना पड़ेगा। कुछ पाठक प्रश्र कर सकते हैं कि शायद मैं ज्योतिषाचार्य हो गया हूं। विपक्षी एकता के पक्षधर यह भी कहेंगे कि मैं राजनीति की अंधी गली से निकलने के लिए नरेन्द्र मोदी को महिमा-मंडित कर रहा हूं। राजनीतिक प्रसाद मोदी से प्राप्त करना चाहता हूं। नहीं। नरेन्द्र भाई मोदी की हस्तरेखा में ही किसी को माफ करना नहीं लिखा। जिस पर उंगली कर दी भस्म। यही कारण है कि नरेन्द्र भाई मोदी विपक्ष को एकजुट क्यों होने देंगे? उन्होंने तो कसम खाई है कांग्रेस मुक्त भारत, कम्युनिस्ट मुक्त भारत। निर्णय विपक्ष कर ले कि वह मोदी के कोपभाजन से कैसे बच सकता है? 2019 का लोकसभा चुनाव तो आया और मुझे तो विपक्ष की एकता दूर की कौड़ी नजर आ रही है। 

संक्षेप में विपक्ष की एकता का गणित देख लेते हैं : राहुल गांधी प्लस सीताराम येचुरी या प्रकाश कारत बराबर हैं- 2019 तक इक्कठे न होना। लालू  प्रसाद यादव प्लस ममता बनर्जी प्लस शरद पवार प्लस शरद यादव प्लस तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव बराबर हैं- कभी हां, कभी न। सुश्री मायावती प्लस अखिलेश यादव बराबर हैं-अविश्वास यानी दूध का जला छाछ को भी फूंक मार-मार कर पीता है। हां, नरेन्द्र भाई मोदी इनके लिए सांझा डर हैं। डर आदमी को या राजनीति को जोड़ता नहीं, भगाता है। विपक्ष के सभी नेता मोदी से डरे हुए, सहमे हुए हैं। भागेंगे कि मिलेंगे? या डर के कारण की शरण लेंगे? 2019 के लोकसभा चुनाव तक तो किसी की समझ में नहीं आएगा। एकता-एकता का राग अलापते-अलापते सभी विपक्षी नेता बिखर जाएंगे। 

विपक्ष दुहाई दे रहा है-सारे राजनीतिक घटक तो एन.डी.ए. को छोड़ रहे हैं। शिवसेना गई, तेलुगू देशम गई, अन्नाद्रमुक गई, नैशनल कांफ्रैंस गई, पासवान जाने के बहाने तलाश रहे हैं। रहा कौन है एन.डी.ए.में? पंजाब का शिरोमणि अकाली या पूर्वांचल में छिटपुट नगण्य प्रादेशिक राजनीतिक दल? और कौन-सी पार्टी है जो मोदी के साथ रहना चाहती है? कोई नहीं। दूसरा आक्षेप विपक्ष मोदी पर यह आयद करता है कि मोदी ने देश में आर्थिक अव्यवस्था फैला दी है। नोटबंदी और जी.एस.टी. ने जरूरी चीजों को गरीब आदमी से छीन लिया है। और भी इल्जाम कि मोदी हिटलर की मानिंद सरकार और देश को चला रहे हैं। जीवनोपयोगी वस्तुओं की कीमतें आसमान को छूने लगी हैं। मान लो विपक्ष के आरोप सही हैं परन्तु जीत तो मोदी हर प्रदेश में रहे हैं। लोग तो मोदी से नाराज नहीं? चुनाव में जो जीता वही सिकंदर। फिर जीतने वाला अपना एजैंडा लागू करेगा कि नहीं? 

आरोप तो हारों से निराश नेता लगा रहे हैं। साधारण जनता 2019 में भी मोदी का ही साथ देगी। विपक्ष में ऐसा नेता ही नहीं है जिसे सभी  पाॢटयां स्वीकार कर लें। मोदी का विकल्प राहुल गांधी नहीं। राहुल को कांग्रेस बलात नेता बना रही है। बेचारा शरीफ आदमी नरेन्द्र मोदी के प्रहारों को नहीं सह सकता। राहुल की नॉन-पॉलीटिकल इमेज ही राजनीतिक पटल पर मोदी की स्ट्रैंथ बन रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव आते-आते राहुल गांधी चुनावी असफलताओं का मुजस्समा बन जाएंगे। 

विपक्ष के धुरंधर नेता किसी कीमत पर भी राहुल को विपक्ष का नेता मानने को तैयार नहीं। फिर एकता कैसी? फिर मोदी पर आरोप क्यों? चलो कोई बात नहीं- राहुल गांधी किसी अन्य विपक्षी नेता पर हाथ रख दें कि कांग्रेस अमुक व्यक्ति पर अपना विश्वास व्यक्त करती है। कम से कम महाराष्ट्र में शरद पवार तो कांग्रेसी ही हैं उन्हें राहुल गांधी विपक्ष का नेता मान लें, उसी के झंडे तले सब इक्कठे हो लें। पर मुझे लगता नहीं कोई भी पक्ष अपना हठ छोड़ किसी एक को अपना नेता मान ले। व्यक्ति नहीं तो कम से कम किसी एक अन्य पार्टी के झंडे तले विपक्ष इकट्ठा हो जाए। यह भी नहीं होगा। तो फिर विपक्ष माथापच्ची न करे। मोदी को ही नेता मान कर चले। इसी तनख्वाह पर काम विपक्षी दल करें। 

मैं निष्कर्ष पर आता हूं। विपक्ष एकता के लिए किसी जय प्रकाश नारायण को ढूंढे, जिसकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं न हों जिसमें देश के युवाओं को रोजगार दिलाने का दर्द दिखे, उस व्यक्ति को विपक्ष तलाशे जो भारत के संघीय ढांचे को बनाए रखे जिसे देश के संविधान की मर्यादाओं पर नाज हो। आज विपक्ष में एकता के लिए न वी.पी. सिंह हैं, न आई.के. गुजराल, न चंद्रशेखर। सब विपक्षी नेता अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। फिर मोदी विरुद्ध एकता विपक्ष की कैसी?-मा. मोहन लाल पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री, पंजाब


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