क्या ट्रम्प अपने फैसलों से आतंकवाद पर रोक लगा सकेंगे

punjabkesari.in Saturday, Feb 18, 2017 - 12:10 AM (IST)

एक लोकतांत्रिक राजनीति में प्रशासन के दो मूल नियमों को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। पहला, किसी भी प्रमुख नीति परिवर्तन से पहले उसके सभी पहलुओं पर बारीकी से ध्यान देना जरूरी है।

दूसरा, किसी बहुमुखी समस्या को एक कार्यकारी आदेश के द्वारा नहीं निपटना चाहिए, जैसा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 7 इस्लामिक देशों के मुसलमानों के अमरीका में दाखिल होने पर प्रतिबंध लगाकर किया है और वह भी बिना उसके मूल, 9/11 के बाद से फैल रहे आतंकवादी संगठनों की रेंज तथा पहलुओं, जिनमें अत्यंत खतरनाक इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) भी शामिल हैं, की समीक्षा किए बिना।

सीरिया तथा ईराक में बैठे आई.एस. के संचालक इंटरनैट के माध्यम से ही हजारों किलोमीटर दूर अमरीका, यूरोप तथा एशिया में आतंकी हमले करवा रहे हैं, लक्ष्य निर्धारित करते हैं और हथियार व बम खरीदते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प अपने विवादास्पद प्रशासनिक आदेश को जारी करने से पूर्व कम से कम इतना तो कर सकते थे कि इस्लामिक आतंकवाद में विशेषज्ञ कुछ अमरीकी तथा भारतीय जानकारों से सलाह कर सकते थे।

भारत कई दशकों से पाकिस्तान के हाथों अलकायदा तथा तालिबानी आतंकवादी समूहों के विभिन्न रूपों में कश्मीर तथा देश के अन्य भागों में आतंकवाद को झेलता आ रहा है। अमरीकी प्रशासन ने तब कभी भी भारत की परेशानियों की परवाह नहीं की थी।

इस्लामाबाद तब अफगान-पाक पट्टी में वाशिंगटन का पसंदीदा सैन्य सहयोगी था। यह कोई रहस्य नहीं कि इन पाकिस्तानी आतंकी गतिविधियों के लिए कोष के स्रोत अमरीका के पैट्रो डालर के संबंध में उसके सहयोगी सऊदी अरब तथा अन्य पश्चिमी एशियाई देश थे। मगर वाशिंगटन ने कभी भी आतंकवाद को लेकर दिल्ली की चेतावनियों की परवाह नहीं की थी, जबतक कि अमरीका खुद 11 सितम्बर को इसका शिकार नहीं बन गया, जिसने न्यूयार्क के ट्विन टावर्स तथा वाशिंगटन के पास सैन्य संस्थान को नेस्तनाबूद कर दिया था।

ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प को अब 7 मुस्लिम देशों के नागरिकों के प्रवेश पर प्रबंध को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई में उलझना पड़ेगा। यहां तक कि एप्पल तथा गूगल सहित कई अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इस कार्रवाई का विरोध किया है।आप्रेशनल तौर पर, इस कार्रवाई में कई खामियां हैं क्योंकि इसमें आतंकवादी संगठनों को धनापूॢत करने वाले स्रोतों तथा उनके संचालकों को शामिल नहीं किया गया। यदि राष्ट्रपति ट्रम्प कुछ परिणाम चाहते तो उन्हें पहले चुपचाप इस मोर्चे पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। मगर क्या वह यह कर सकते थे? क्या वह सऊदी अरब के शेखों तथा अन्य पश्चिमी एशियाई देशों के सहयोगियों को नियंत्रित करेंगे, जो अपने पैट्रो डालर्स के माध्यम से इस्लामिक आतंकवाद का निर्यात करते हैं?

पाकिस्तान का ही मामला लें, जो अपनी राष्ट्रीय नीति के तहत भारत तथा अफगानिस्तान के खिलाफ आतंकवाद चला रहा है। अब इस्लामाबाद कुछ हद तक चौकस है। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की आतंकवाद निर्यात करने वालों की सूची में शामिल होने के डर से पाकिस्तान सरकार ने मुम्बई हमलों में मास्टरमाइंड हाफिज सईद को लाहौर में ‘तथाकथित’ नजरबंदी में डाल दिया  है।पाकिस्तानी सेना दावा करती है कि यह उनके देश का नीति निर्णय है मगर हम निश्चित तौर पर जानते हैं कि यह पूरी कार्रवाई एक बड़ा मजाक है। पाकिस्तानी सेना और इसकी संचालक शाखा आई.एस.आई. में कोई हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है। वे लश्कर-ए-तोएबा के संस्थापक जमात-उद-दावा (जे.यू.डी.) के प्रमुख को भारत में आतंकवादी कार्यों के लिए एक ‘रणनीतिक पूंजी’ के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

जे.यू.डी. अब नए नाम तहरीक आजादी जम्मू-कश्मीर के नाम से कार्रवाईयां कर रहा है। फर्जी नामों का इस्तेमाल करके लश्कर आतंकी समूह आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान में बैंक अकाऊंट भी आप्रेट कर रहे हैं। ये आतंकवादी कार्रवाइयों के बड़े तथ्य हैं, जिन्हें राष्ट्रपति ट्रम्प ने नजरअंदाज कर दिया।आतंक आतंक ही होता है। इस्लामिक आतंकवादी पहले ही पाकिस्तान के गैर जेहादी तत्वों के साथ-साथ अल्पसंख्यक ईसाइयों तथा हिन्दुओं को अपना निशाना बना रहे हैं। फंड उनके लिए कोई समस्या नहीं है। वह उनके लिए उनके भाइयों- सऊदी अरब के वहाबियों तथा पश्चिम एशिया में अन्य इस्लामिक सूत्रों से पहुंच रहे हैं।

मैं निश्चित नहीं हूं कि आतंकवाद पर ट्रम्प का कार्यकारी आदेश कितना प्रभावी होगा। यह एक एकल सुरक्षा एजैंडा नहीं हो सकता। आतंकवाद एक बहुमुखी समस्या है, जिसके लिए इस्लामिक इतिहास, इसके तुलनात्मक धार्मिक व राजनीतिक पहलुओं, मध्यपूर्व के पैट्रो डालरों से समृद्ध शासकों की दोहरी मानसिकता के साथ-साथ दशकों से अमरीकी शासकों के पाकिस्तानी सेना पर वरदहस्त की समझ चाहिए।

दरअसल, पश्चिमी एशियाई शेख तथा एशिया तथा अन्य स्थानों पर सैन्य तानाशाह वाशिंगटन के विश्वव्यापी हितों के लिए इसके रणनीतिक सहयोगी तथा सांझेदार रहे हैं। यहां तक कि कश्मीर तथा अन्य स्थानों परभारतीय लोगों की परेशानियों का कारण पाक-अफगान पट्टी में अमरीका की अव्यवस्थित नीतियां तथा रणनीतियां ही हैं।         


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